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बरसात की तरह भूकम्प-भूस्खलन की मिलेगी सटीक चेतावनी, निसार जल्द शुरू करेगा काम

30 जुलाई को दोनों ने मिलकर निसार (नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार) को श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया था। इस मिशन पर करीब 13 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए। इसमें से एक हजार करोड़ इसरो और शेष राशि नासा ने खर्च की है।

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भारत

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Siddharth Rai

Oct 03, 2025

Earthquake in Afghanistan

बरसात की तरह भूकम्प-भूस्खलन की मिलेगी सटीक चेतावनी(Photo - Washington Post)

जिस तरह बरसात की सटीक जानकारी लोगों को मिल रही है, उसी तरह आने वाले समय में भूकंप आने और भूस्खलन होने से पहले सटीक जानकारी मिल सकेगी। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के संयुक्त मिशन निसार से संभव होने जा रहा है। इसरो के वैज्ञानिकों ने बताया कि करीब 750 किमी की यात्रा पूरी करने के बाद अपनी कक्षा में स्थापित हो चुका है। जल्द ही यह काम करना शुरू कर देगा। इसरो के वैज्ञानियों का दावा है कि भूकम्प, भूस्खलन और ज्वालामुखी विस्फोट की जानकारी पहले से मिल सकेगी। माना जा रहा है कि इन सभी के बारे में दो घंटे से लेकर 24 घंटे तक जानकारी मिल सकेगी।

दरअसल, 30 जुलाई को दोनों ने मिलकर निसार (नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार) को श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया था। इस मिशन पर करीब 13 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए। इसमें से एक हजार करोड़ इसरो और शेष राशि नासा ने खर्च की है।

ये भी फायदा होगा

हिमखंडों के टूटने और समुद्री सतह के उतार-चढ़ाव की निगरानी संभव होगी। यह उपग्रह हर 12 दिन में पृथ्वी की पूरी सतह को स्कैन करेगा और उच्च-रिलॉॅल्यूशन डेटा प्रदान करेगा। दोनों देश अमरीका और भारत को डेटा मिलेगा। अन्य देशों से भी साझा करे सकेंगे।

सेना के साथ खड़ा है इसरो

केंद्र सरकार भारतीय अंतरिक्ष नीति-2023 लेकर आई। इसके बाद निजी क्षेत्रों में काम शुरू हुआ है। इसरो वैज्ञानिकों का दावा है कि अभी देश भर में 300 से अधिक कम्पनियां, स्टॉर्टअप स्पेस क्षेत्र में काम कर रही हैं। इसरो के एक बड़े अधिकारी की मानें सेना के लिए स्पेस बेस्ड सर्विलांस-3 (एसबीएस-3) तैयार करवा रहा है। इसके लिए निजी क्षेत्र से करीब 31 सर्विलांस तैयार करवाए जा रहे हैं। अगले चार वर्ष में ये तैयार हो जाएंगे। इसमें करीब 26 हजार करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है।

विश्व स्तर पर चलाया जाएगा ऑपरेशन बर्न आउट

अंतरिक्ष में ऐसे सैटेलाइट को खत्म करने की तैयारी शुरू की जा रही है, जो उपयोगी नहीं रहे। इनको जापान इस प्रक्रिया में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। इसरो के वैज्ञानिकों का दावा है कि इन अनुउपयोगी सैटेलाइट को बर्न आउट करने की तैयारी चल रही है। ये सैटेलाइट 100 वर्ष से लेकर 500 वर्ष तक घूमते रहते हैं और नए सैटेलाइट के पहुंचने पर हादसे की संभावना बनी रहती है।

बच्चों में जागरुकता के लिए कार्यशाला

इसरो के कामकाज को बच्चे समझें, इसके लिए सेंटर में अलग से विक्रम साराभाई स्पेस एग्जिबिशन सेंटर है। यहां सैटेलाइट, लॉन्च व्हीकल से लेकर थ्री डी शो देखने को मिलते हैं। इस क्षेत्र में छात्र-छात्राओं का प्रवेश नि:शुल्क होता है। स्कूल में भी एग्जिबिशन लगाई जाती हैं।