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गुलामी की एक और निशानी होगी खत्म, एक जुलाई से लागू होंगे नए दंड कानून

बड़ा बदलाव: केंद्र सरकार ने जारी की अधिसूचना, 164 साल पुरानी संहिता से मुक्ति  

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गुलामी की एक और निशानी होगी खत्म, एक जुलाई से लागू होंगे नए दंड कानून

गुलामी की एक और निशानी होगी खत्म, एक जुलाई से लागू होंगे नए दंड कानून

नई दिल्ली. देश में अंग्रेजों की गुलामी के दौर से शुरू होकर आजादी के 76 साल बाद भी लागू दंड कानून आगामी एक जुलाई से इतिहास की बात हो जाएंगे। केंद्र सरकार ने शनिवार को अधिसूचना जारी की कि पुराने दंड कानूनों के स्थान पर नए भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम एक जुलाई से लागू होंगे। नए कानूनों के लिए विधेयकों को संसद के शीतकालीन सत्र में पारित किया गया था और राष्ट्रपति ने भी इन्हें मंजूरी दे दी थी। गुलामी के प्रत्येक चिन्ह को खत्म करने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद 164 साल पुराने दंड कानूनों को बदलना ऐतिहासिक कार्य माना जा रहा है। केंद्र सरकार ने कहा है कि नए कानूनों के बारे में पुलिसकर्मियों व वकीलों को प्रशिक्षण के लिए मॉड्यूल और कार्यक्रम तैयार किए जा रहे हैं ताकि इन्हें लागू करने में कोई व्यावहारिक कठिनाई नहीं हो। विशेषज्ञों के अनुसार नए दंड कानून आतंकवाद, मॉब लिंचिंग और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने वाले अपराधों के लिए सजा को और अधिक सख्त बना देंगे। साथ ही नए प्रावधानों से आम तौर पर अदालतों से जल्दी न्याय मिलने का रास्ता सुगम होगा।

किसमें क्या बदला?

1. न्याय संहिता: आइपीसी में 511 धाराएं थीं, जबकि बीएनएस में 358 धाराएं होंगी। इसमें 21 नए अपराध जोड़े गए हैं। 41 अपराधों में कारावास की अवधि बढ़ाई गई है और 82 अपराधों में जुर्माना बढ़ाया गया है। 25 अपराधों में जरूरी न्यूनतम सजा शुरू की गई है। 6 अपराधों में दंड के रूप में सामुदायिक सेवा की व्यवस्था की गई है। 19 धाराएं खत्म की गई हैं।

2. नागरिक सुरक्षा संहिता: पुरानी सीआरपीसी में 484 धाराएं थीं, अब नागरिक सुरक्षा संहिता में 531 धाराएं होंगी। 177 धाराओं को बदल दिया गया है, 9 नई धाराएं जोड़ी गईं हैं और 14 को खत्म किया गया है।

3. साक्ष्य अधिनियम: पुराने एविडेंस एक्ट में 167 धाराएं थीं, नए साक्ष्य अधिनियम में 170 धाराएं होंगी। 24 धाराओं में बदलाव किया गया है, दो नई धाराएं जुड़ीं हैं और छह धाराएं खत्म की गई हैं।

क्या-क्या है नया

पहली बार आतंकवाद को परिभाषित किया गया: बीएनएस में पहली बार धारा 113 (1) के तहत आतंकवाद को दंडनीय अपराध बनाकर इसे परिभाषित किया गया है। ऐसा कृत्य जो भारत की एकता, अखंडता और सुरक्षा को खतरे में डालने, आम जनता या उसके एक वर्ग को डराने या सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने के इरादे से देश या विदेश में कोई काम करता है तो वह आतंकवाद है। इस परिभाषा में संपत्ति को नुकसान, नकली मुद्रा व तस्करी भी शामिल है। ऐसा अपराध मृत्युदंड या पैरोल के बिना आजीवन कारावास से दंडनीय है। आतंकी की संपत्ति कुर्क भी हो सकती है।

राजद्रोह के बजाय देशद्रोह: बीएनएस में राजद्रोह को समाप्त कर देशद्रोह को दंडनीय अपराध बनाया गया है। इसकी परिभषा में देश की एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों को शामिल किया गया है।

महिलाओं और बच्चों के लिए खास प्रावधान: बीनएस में 'महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध' का अलग अध्याय। नाबालिग महिला के सामूहिक बलात्कार से संबंधित प्रावधान को पोक्सो के अनुरूप बनाया गया है। 18 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं के साथ बलात्कार से संबंधित मामलों में आजीवन कारावास या मौत की सजा, बलात्कार पर कम से कम 10 साल से आजीवन कारावास व जुर्माने की सजा। सामूहिक बलात्कार के लिए 20 वर्ष या आजीवन कारावास की सजा। शादी, नौकरी, प्रमोशन के बहाने या पहचान छिपाकर महिलाओं का यौन शोषण भी अपराध।

संगठित अपराध का दायरा बढ़ाया: संगठित अपराध को बीएनएस की धारा 111 (1) के तहत पहली बार परिभाषित किया गया है। सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक अभियान, अलगाववादी गतिविधियां और भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरा पैदा करने वाले किसी भी कार्य को भी इसकी परिभाषा में शामिल किया गया है। इसके लिए मृत्युदंड, आजीवन कारावास, जुर्माना या सात साल तक की जेल शामिल है।

'मॉब लिंचिंग' के लिए सजा में बढ़ोतरी: पहली बार मॉब लिंचिंग और हेट क्राइम को अलग-अलग प्रकार की हत्या के रूप में वर्गीकृत किया गया। मॉब लिंचिंग जैसे अपराधों के लिए अधिकतम मृत्युदंड की सजा का प्रावधान।

तारीख पर तारीख से मुक्ति, तीन साल में न्याय

नए कानूनों को प्रमुख उद्देश्य शीघ्र न्याय मिलना भी है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि इन कानूनों के लागू होने के बाद 'तारीख-पे-तारीख' युग का अंत सुनिश्चित होगा और पीडि़त को तीन साल में न्याय दिया जाएगा। इसके लिए कई प्रावधान किए गए हैं।

-90 दिन में चार्जशीट दाखिल करनी होगी, कोर्ट खास परििस्थति में 90 दिन और बढ़ा सकता है।

- पुलिस को 90 दिनों के भीतर किसी मामले पर स्थिति अपडेट प्रदान करना होगा।

- सुनवाई के बाद 30 दिन में फैसला देना होगा। एक सप्ताह में आदेश ऑनलाइन अपडेट होगा।

- तीन साल से कम सजा वाले मामलों में संक्षिप्त सुनवाई पर्याप्त।

- घटना पर जीरो एफआईआर का प्रावधान जिससे कहीं भी दर्ज हो सकती एफआईआर।

- पीड़ित को एफआईआर की मुफ्त प्रति। उसे 90 दिनों में बतानी होगी जांच की प्रगति।

- त्वरित न्याय के लिए विशेष अदालतों का प्रावधान