
बिहार के जमुई लोकसभा क्षेत्र (सुरक्षित) से चिराग पासवान ने पिछले दो चुनावों में एनडीए का 'चिराग' जलाए रखा है, लेकिन इस लोकसभा चुनाव में लोजपा (रामविलास) और विपक्षी दलों के महागठबंधन में शामिल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के बीच कड़ा मुकाबला माना जा रहा है। नक्सल प्रभावित रहे जमुई सीट का महत्व यूं तो बिहार की आम लोकसभा सीटों की तरह रहा है, लेकिन इस चुनाव में लोजपा के संस्थापक रामविलास पासवान के बेटे और निर्वतमान सांसद चिराग पासवान की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।
लोजपा (रा) के प्रमुख चिराग ने इस चुनाव में अपने बहनोई अरुण भारती को चुनाव मैदान में उतारा है। उनका मुख्य मुकाबला महागठबंधन की ओर से राजद प्रत्याशी अर्चना रविदास से माना जा रहा है।
दो गुटों में बंट गई है लोजपा
पिछले चुनाव के बाद लोजपा दो गुटों में बंट गई थी। इसमें से लोजपा (रामविलास) का नेतृत्व चिराग कर रहे हैं। वॉलीवुड से राजनीति में आए चिराग लोकसभा चुनाव 2014 में यहां से राजद के सुधांशु शेखर को पराजित कर पहली बार लोकसभा पहुंचे थे। इसके बाद 2019 में चिराग ने रालोसपा के प्रत्याशी भूदेव चौधरी को हराया था। लोकसभा चुनाव 2009 में एनडीए के प्रत्याशी भूदेव चौधरी ने राजद उम्मीदवार श्याम रजक को 29,747 मतों से पराजित किया था। इस तरह तीन चुनावों से इस सीट पर एनडीए का कब्जा रहा है। लेकिन इस बार चुनाव में बिहार में राजनीतिक समीकरण बदले हैं।
पिछले चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा जहां महागठबंधन में थी, वहीं अब कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा एनडीए के साथ है। जमुई क्षेत्र के महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रधानंमत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार में अपने चुनावी अभियान की शुरुआत यहीं से की है। तारापुर, शेखपुरा, सिकंदरा, जमुई, झाझा और चकाई जैसे छह विधानसभा वाले इस लोकसभा क्षेत्र में मतदाताअेां की कुल संख्या करीब 17 लाख है। बिहार के अन्य लोकसभा क्षेत्रों की तरह इस सीट पर भी जातीय समीकरण से चुनाव परिणाम प्रभावित होते रहे हैं।
लोजपा (रा) का दावा मिल रहा सभी जातियों का समर्थन
हालांकि लोजपा (रा) इस परंपरा को दरकिनार करती है। लोजपा (रा) के प्रत्याशी अरुण भारती कहते हैं, मुझे सभी जातियों का समर्थन मिल रहा है। पिछले 10 वर्षों के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए कार्यों को लेकर ही हम लोग मतदाताओं के बीच जा रहे हैं और लोग समर्थन भी दे रहे हैं।
80 प्रतिशत से ज्यादा कृषि पर आधारित रहने वाले लोगों का यह संसदीय क्षेत्र भले ही अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो, लेकिन सभी प्रत्याशियों की नजर सवर्ण मतदाताओं को आकर्षित करने में लगी है। जंगल, पहाड़ और नदियों से घिरे जमुई संसदीय क्षेत्र में कई क्षेत्रीय समस्याएं हैं। यह क्षेत्र कई वर्षों तक नक्सल प्रभावित रहा है। विकास की दौड़ में पीछे रहने का मुख्य कारण, इस क्षेत्र में लंबे समय तक नक्सलियों का पैठ माना जाता है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों से नक्सली गतिविधियों में कमी आई है। इस क्षेत्र में 19 अप्रैल को पहले चरण के तहत मतदान होना है।
ये भी पढ़ें:
Updated on:
11 Apr 2024 02:31 pm
Published on:
11 Apr 2024 02:27 pm
बड़ी खबरें
View Allबिहार चुनाव
राष्ट्रीय
ट्रेंडिंग
