
छत्तीसगढ़ में लंबे समय से चले आ रहे नक्सलवाद के खिलाफ केंद्र और राज्य सरकार के ताबड़तोड़ अभियानों ने नक्सलियों को बैकफुट पर ला दिया है। CPI (माओवादी) संगठन के केंद्रीय कमेटी के प्रवक्ता अभय ने एक प्रेस नोट जारी कर ऐलान किया है कि वे हथियार छोड़ने और सरकार के साथ शांति वार्ता करने को तैयार हैं। संगठन ने एक महीने के सीजफायर (युद्धविराम) की मांग की है, साथ ही वीडियो कॉल के जरिए बातचीत शुरू करने का प्रस्ताव रखा है।
इस ऐलान को नक्सलियों की कमजोरी का संकेत माना जा रहा है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पहले ही 31 मार्च 2026 तक देश को नक्सलमुक्त बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया था। जनवरी 2024 से सुरक्षा बलों की कार्रवाइयों में तेजी आई है, जिससे नक्सलियों के कई दलों का सफाया हो चुका है।
बस्तर और अन्य नक्सल प्रभावित इलाकों में ऑपरेशन तेज होने से नक्सली संगठन दबाव में आ गया लगता है। प्रेस नोट में प्रवक्ता अभय ने कहा, "हम विकास और शांति चाहते हैं। हथियारबंद संघर्ष को अस्थायी रूप से रोकने और राजनीतिक दलों व संघर्षरत संस्थाओं के साथ मिलकर काम करने को तैयार हैं।" संगठन ने जेल में बंद अपने साथियों से चर्चा की अनुमति और पुलिस कार्रवाइयों पर रोक की भी मांग की है।
छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से इस पत्र की प्रामाणिकता की जांच पर जोर दिया जा रहा है। उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने कहा, "वायरल लेटर की सत्यता की जांच जरूरी है। अगर नक्सली सच्चे मन से शांति चाहते हैं, तो पहले हथियार छोड़कर आत्मसमर्पण करें। उसके बाद बातचीत संभव है।" सरकार ने अप्रैल 2025 में 'छत्तीसगढ़ नक्सलवादी आत्मसमर्पण, पुनर्वास एवं राहत नीति-2025' लागू की है, जिसमें आत्मसमर्पण करने वालों को सुरक्षा, रोजगार, प्रशिक्षण और 120 दिनों के अंदर पूर्ण पुनर्वास की गारंटी दी गई है।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने भी हिंसा छोड़ने वालों को मुख्यधारा में लौटने का आह्वान किया है। यह विकास नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति की नई उम्मीद जगा रहा है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह नक्सलियों की रणनीति भी हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने भी हाल ही में नक्सल अभियानों पर हस्तक्षेप से इनकार कर दिया था, जो सरकार की सख्त नीति को मजबूती देता है।
Published on:
17 Sept 2025 09:07 am
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