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Dussehra 2025: भारत के वे स्थान, जहां नहीं होता रावण दहन, जानिए पौराणिक कारण और मान्यताएं

उत्तर प्रदेश से लेकर हिमाचल तक देश के कई हिस्सों में रावण को विद्वान, शिवभक्त और कुलदेवता मानकर पूजा या सम्मान दिया जाता है। जानिए कहां-कहां होती है शिवभक्त रावण की पूजा।

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भारत

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Devika Chatraj

Oct 01, 2025

यहां नहीं होता रावण दहन (AI)

Dussehra 2025: भारत के वे स्थान, जहां नहीं होता रावण दहन, जानिए पौराणिक कारण और मान्यताएंविजयादशमी का पावन पर्व, जिसे दशहरा के नाम से जाना जाता है, इस बार 2 अक्टूबर को मनाया जाएगा। पूरे देश में भगवान राम की रावण पर विजय का उत्सव धूमधाम से होता है, जहां रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के विशाल पुतलों का दहन किया जाता है। यह प्रथा अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक है। लेकिन भारत की सांस्कृतिक विविधता का अनोखा नजारा तब दिखता है जब कुछ स्थानों पर रावण को विलेन नहीं, बल्कि विद्वान, शिवभक्त और यहां तक कि कुलदेवता के रूप में पूजा जाता है। यहां रावण दहन के बजाय पूजा, शोक या सम्मान की परंपराएं जीवित हैं। आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ प्रमुख स्थानों के नाम।

बिसरख, उत्तर प्रदेश

ग्रेटर नोएडा के पास स्थित बिसरख गांव को रावण का जन्मस्थान माना जाता है। रामायण में भी इसका उल्लेख है कि रावण के पिता ऋषि विश्वश्रवा का आश्रम यहीं था। यहां रावण मंदिर मौजूद है, जहां दशहरा पर रावण दहन नहीं, बल्कि यज्ञ और शांति पूजा होती है। ग्रामीण रावण को 'महाब्राह्मण' कहते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए नवरात्रि भर प्रार्थनाएं करते हैं। मान्यता है कि रावण दहन करने से ब्रह्महत्या के समान पाप लगता है।

कांगड़ा का बैजनाथ, हिमाचल प्रदेश

हिमाचल के कांगड़ा जिले में स्थित बैजनाथ शिव मंदिर रावण की शिवभक्ति की याद दिलाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, रावण ने कैलाश पर्वत से शिवलिंग लाते समय यहां प्यास बुझाने के लिए रुके थे, जहां शिवलिंग धरती में धंस गया और अर्धनारीश्वर रूप प्रकट हुआ। रावण की इस भक्ति के सम्मान में दशहरा पर रावण का पुतला नहीं जलाया जाता। स्थानीय मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान शिव क्रोधित हो जाएंगे। कुछ कथाओं में कहा जाता है कि ऐसा प्रयास करने वालों को असमय मृत्यु मिली थी।

कुल्लू, हिमाचल प्रदेश

हिमाचल का प्रसिद्ध कुल्लू दशहरा सात दिनों तक चलने वाला अनोखा उत्सव है, लेकिन यहां रावण दहन का कोई स्थान नहीं। यह पर्व स्थानीय देवताओं की परंपराओं पर केंद्रित है, जहां भगवान राम की पूजा तो होती है, लेकिन रावण को जलाने के बजाय बलि और लोक नृत्यों पर जोर दिया जाता है। यूनेस्को की सांस्कृतिक धरोहर घोषित यह उत्सव रावण की बजाय देवी-देवताओं की जयकारा से गूंजता है।

कानपुर, उत्तर प्रदेश

कानपुर के शिवाला इलाके में स्थित दशानन मंदिर रावण की पूजा के लिए विख्यात है। यहां रावण की मूर्ति शिवलिंग के साथ स्थापित है और मंदिर दशहरा के दिन ही खुलता है। भक्त 'जय लंकेश' का जाप करते हुए रावण को शिवभक्त और चिन्नमस्ता देवी के उपासक के रूप में पूजते हैं। मान्यता है कि रावण की नाभि पर तेल लगाने से विवाह और संतान सुख मिलता है।

विदिशा का रावंग्राम, मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के रावंग्राम में रावण को 'रावण बाबा' कहा जाता है। यहां 10 फुट की शयन मुद्रा वाली रावण की मूर्ति की पूजा होती है। ग्रामीण खुद को रावणवंशी मानते हैं और दशहरा पर उनकी पूजा करते हैं। विवाह जैसे अवसरों पर रावण को आमंत्रित करने की परंपरा भी है।

गढ़चिरौली, महाराष्ट्र

महाराष्ट्र के आदिवासी बहुल गढ़चिरौली में गोंड जनजाति रावण को शिवभक्त और विद्वान मानती है। वे तुलसीदास की रामचरितमानस के बजाय वाल्मीकि रामायण पर भरोसा करते हैं, जहां रावण का चरित्र संतुलित है। दशहरा पर रावण दहन के बजाय उनकी भक्ति के यज्ञ किए जाते हैं।

मंडोर, राजस्थान

राजस्थान के जोधपुर जिले में स्थित प्राचीन मंडोर गांव में यह पर्व एक अलग ही रूप धारण कर लेता है। यहां रावण को लंकेश या अधर्म का प्रतीक नहीं, बल्कि दामाद और शिवभक्त के रूप में पूजा जाता है। दशहरा के दिन रावण दहन के बजाय शोक मनाया जाता है, क्योंकि कई स्थानीय मान्यताओं के अनुसार मंडोर को रावण की पत्नी मंदोदरी का मायका माना जाता है।

मंदसौर, मध्य प्रदेश

कुछ ग्रंथों और स्थानीय लोगों के अनुसार, मंदसौर को रावण की पत्नी मंदोदरी का जन्मस्थान माना जाता है, जिसकी वजह से रावण यहां दामाद के रूप में सम्मानित है। मान्यता है कि मंदोदरी की विदाई के बाद रावण ने यहां के ब्राह्मणों को आशीर्वाद दिया था। दशहरा के दिन रावण के 35 फुट ऊंचे पुतले का निर्माण तो होता है, लेकिन उसे जलाने के बजाय पूजा की जाती है। इसके अलावा, शहरवासी रावण की मृत्यु पर शोक मनाते हुए अपने घरों के लाइट बंद कर देते हैं। यह परंपरा रावण के विद्वान और शिवभक्त स्वरूप को दर्शाती है।

कांकेर, छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में यह उत्सव एक अलग ही रंग में रंगा होता है। यहां रावण को अधर्म का प्रतीक नहीं, बल्कि कुलदेवता और पूर्वज के रूप में पूजा जाता है। दशहरा के दिन रावण दहन के बजाय उनकी पूजा, आरती और लोक नृत्यों का आयोजन होता है। कांकेर को रावण वंशियों का अभयारण्य माना जाता है, जहां स्थानीय जनजातियां और ब्राह्मण समुदाय रावण को 'भरतेश्वर' या 'रावण बाबा' कहकर सम्मानित करते हैं।

बेंगलुरु, कर्नाटक

कर्नाटक के बेंगलुरु में एक अनोखे अंदाज में मनाया जाता है। हालांकि, बेंगलुरु में रावण दहन की परंपरा मौजूद है, लेकिन यह उत्सव मुख्य रूप से मां चामुंडेश्वरी की पूजा और मैसूर दशहरा की सांस्कृतिक भव्यता से जुड़ा है। बेंगलुरु में रावण को केवल खलनायक नहीं, बल्कि एक विद्वान और शिवभक्त के रूप में भी सम्मान दिया जाता है, और कुछ समुदायों में उसकी पूजा की परंपरा भी देखने को मिलती है।