
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को लोकसभा में विपक्ष को सलाह दी कि विदेश नीति में रुचि रखने वालों को 'जेएफके फॉरगॉटन क्राइसिस: तिब्बत, सीआइए एंड साइनो-इंडियन वॉर' पुस्तक पढ़नी चाहिए। जानते हैं इस पुस्तक के बारे में और मोदी का इशारा किन टिप्पणियोंं पर था…
यह किताब पूर्व सीआइए एजेंट ब्रुस रीडेल ने लिखी है जो अब अमरीकी थिंक टैंक ब्रुक्रिंग्स में सीनियर फैलो हैं। रीडेल ने इस पुस्तक में तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति जॉन एफ.कैनेडी के समय तिब्बत संकट और भारत-चीन युद्ध के समय की घटनाओं का विवरण दिया है। यह किताब 2015 में आई थी।
किताब में जिक्र किया गया है कि अपनी आदर्शवादी विदेश नीति के चलते तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने दोनों महाशक्तियों अमरीका और सोवियत संघ से समान दूरी की नीति अपनाई। चीन ने अप्रत्याशित रूप से भारत पर हमला किया तो नेहरू ने भारत में अमरीकी राजदूत कैनेथ गेलब्रेथ से अमरीका से सैन्य सहायता मांगी। वे अपना आदर्शवाद नहीं छोड़ना चाहते थे लेकिन अमरीका और ब्रिटेन ने भारत की मदद की।
किताब में 1961 में नेहरू की अमरीका यात्रा और राष्ट्रपति कैनेडी से मुलाकात का जिक्र किया गया है। मुलाकात के बाद कैनेडी ने राजदूत गैलब्रेथ को नेहरू से मुलाकात को 'सबसे खराब अनुभव' बताते हुए कहा कि भारतीय प्रधानमंत्री की उनसे (कैनेडी से) बातचीत के बजाय जैकी (राष्ट्रपति कैनेडी की पत्नी जैकलिन) से चर्चा में ज्यादा रुचि थी।
रीडेल ने नेहरू-कैनेडी मुलाकात के बारे में गैलब्रेथ की डायरी के हवाले से लिखा कि बातचीत में नेहरू थके हुए थे और एक-दो शब्द या वाक्य ही बोल रहे थे। कैनेडी को यह अच्छा नहीं लगा। रीडेल ने कैनेडी के सलाहकार टेड सोरेंसन के कथन को उद्धरित किया कि उस बैठक ने उन्हें यह विश्वास दिला दिया कि नेहरू कभी भी भरोसेमंद और मजबूत आधार नहीं बन पाएंगे।
Published on:
05 Feb 2025 07:59 am
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