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दिल्ली दंगे के 17 केसों में पुलिस ने रची ‘मनगढ़ंत कहानी’, गवाह मुकरे तो जज ने लगाई फटकार, रिपोर्ट में किया दावा

दिल्ली दंगों के 93 मामलों में से 17 में पुलिस की जांच पर अदालत ने सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने पुलिस द्वारा गढ़े गए सबूत और गवाहों पर दबाव डालने के आरोपों पर 17 आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर आपत्ति जताई है, जबकि 19 मामलों में दोषसिद्धि हुई है।

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भारत

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Mukul Kumar

Sep 17, 2025

प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर। (फोटो- IANS)

दिल्ली दंगों से जुड़े 93 मामलों में से 17 में अदालत ने पुलिस जांच पर सवाल उठाए हैं। इसके साथ, कोर्ट ने पुलिस को फटकार लगाते हुए आरोपियों को बरी कर दिया है। अपने आदेश में अदालत ने कहा कि इन मामलों में पुलिस ने गढ़े हुए सबूत पेश किए और गवाहों पर दबाव भी डाला।

वहीं, अदालत ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सख्त टिप्पणी की। फैसला सुनाते हुए कहा कि कई मामलों में गवाहों के बयान पुलिस द्वारा जबरन लिखवाए गए प्रतीत होते हैं।

दरअसल, यह सभी मामले फरवरी 2020 में दर्ज हुए थे। जब उत्तर-पूर्वी दिल्ली में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध में हिसंक प्रदर्शन हुआ था। जिसमें 53 लोगों की जान चली गई थी और 700 से अधिक घायल हुए थे।

19 मामलों में दोषसिद्धि भी हुई

93 में से 19 मामलों में दोषसिद्धि भी हुई है। अदालती रिकॉर्ड के अनुसार, जिन 17 मामलों में अदालत ने पुलिस पर 'मनगढ़ंत कहानी' रचने को लेकर सवाल उठाए हैं। उनमें दयालपुर पुलिस स्टेशन में पांच मामले दर्ज थे।

इसके अलावा, खजूरी खास और गोकलपुरी में चार-चार मामले दर्ज थे। वहीं, ज्योति नगर, भजनपुरा, जाफराबाद और न्यू उस्मानपुर में एक-एक मामले दर्ज किए गए थे।

सभी 17 मामलों में, कड़कड़डूमा अदालत के न्यायाधीशों ने कई तरह की गड़बड़ी पाईं। दो मामलों में एक जैसे निष्कर्ष सामने आए।

दोनों मामलों में फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि दलीलों से स्पष्ट हो रहा कि आरोपी को फंसाने के लिए पुलिस ने मनगढ़ंत कहानी बनाई है।

कोर्ट ने कहा- गवाह और सबूत दोनों बनावटी

वहीं, 17 में से 12 मामलों में, अदालतों ने पाया कि पुलिस ने 'बनावटी' गवाह या सबूत पेश किए थे, जो पूरी तरह से गढ़े हुए लग रहे थे। दो मामलों में, गवाहों ने खुद कह दिया कि उनके बयान अपने नहीं थे, बल्कि पुलिस ने दबाव डालकर उनसे ऐसा करवाया।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश परवीन सिंह ने पिछले महीने न्यू उस्मानपुर पुलिस स्टेशन के एक मामले में छह आरोपियों को बरी करते हुए एक आदेश में कहा कि जांच अधिकारी द्वारा सबूतों को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है।

जज ने आगे कहा कि इसके परिणामस्वरूप उन आरोपियों के अधिकारों का गंभीर हनन हुआ है, जिनके खिलाफ संभवतः केवल यह दिखाने के लिए आरोप पत्र दायर किया गया था कि यह मामला सुलझा लिया गया है। ऐसे मामलों से जांच प्रक्रिया और कानून से लोगों का विश्वास गंभीर रूप से कम होता है।

किन मामलों में कोर्ट ने क्या कहा?

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में दंगों से संबंधित केस और उनपर कोर्ट द्वारा सुनाए फैसलों के बारे में भी विस्तार से बताया गया है। उदाहरण के रूप में बता दें कि साल 2020 में ज्योति नगर थाने में दंगे को लेकर एक मामला दर्ज किया गया था।

जिसपर 16 दिसंबर, 2022 को फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि मोहम्मद असलम नामक गवाह का अस्तित्व ही संदेह के घेरे में है और उसके काल्पनिक व्यक्ति होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

वहीं, खजूरी खास पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर 223/20 पर फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि पुलिस ने शिकायतकर्ता को झूठे गवाह के रूप में पेश किया और आरोपी को अपराधी के रूप में पहचानने के लिए उसका बयान झूठा और देरी से हासिल किया गया।

इसी तरह दयालपुर पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर 79/20 पर फैसला सुनाते हुए अदालत ने आरोपी को बरी कर दिया। इसके साथ कहा कि जांच अधिकारी और अभियोजन पक्ष के गवाह द्वारा दिए गए बयान बनावटी प्रतीत होते हैं।

गोकलपुरी पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर 95/2020 पर फैसला ने अदालत ने कहा कि पुलिस गवाहों की गवाही में चूक और उनके बयानों में समानता की संभावना है, जो कृत्रिम दावे की ओर इशारा करती है। इसी तरह, दिल्ली में दंगों के 97 केसों में से 17 मामलों में अदालत ने पुलिस को फटकार लगाई।