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Independence day 2025: लाखों अंग्रेजों पर भारी थे भारत के ये जांबाज, जानें स्वतंत्रता सेनानियों की कहानी

भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई एक लंबा और कठिन सफर था, जिसमें लाखों लोगों ने हिस्सा लिया। इस खबर में हम उन स्वतंत्रता सेनानियों की कहानी बताएंगे, जिन्होंने देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी। 

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भारत

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Ashib Khan

Aug 12, 2025

भारत के स्वतंत्रता सेनानी (Photo-X @ShubhamKayat8)

Independence day 2025: 15 अगस्त 2025 को भारत अपना 79वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा। यह दिन न केवल ब्रिटिश शासन से आजादी की याद दिलाता है, बल्कि उन अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान और साहस की गाथा को भी जीवंत करता है, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना देश को आजाद कराने का संकल्प लिया। भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई एक लंबा और कठिन सफर था, जिसमें लाखों लोगों ने हिस्सा लिया। इस खबर में हम उन स्वतंत्रता सेनानियों की कहानी बताएंगे, जिन्होंने देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी।

1- भगत सिंह

23 मार्च 1931 को लाहौर जेल में केवल 23 वर्ष की आयु में फांसी पर चढ़ने वाले भगत सिंह भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रख्यात क्रांतिकारियों में से एक हैं। 28 सितंबर 1907 को जन्मे भगत सिंह ने कम उम्र में ही देश की आजादी के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। 

1928 में भगत सिंह ने अपने साथियों सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या की। इसके बाद 1929 में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंका और क्रांतिकारी नारे लगाए थे। 

उनका नारा “इंकलाब जिंदाबाद” आज भी युवाओं में जोश भरता है। भगत सिंह का मानना था कि आजादी केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक समानता भी है। 

2- सुभाष चंद्र बोस

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है। 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में जन्मे सुभाष चंद्र बोस ने अहिंसा के रास्ते से अलग हटकर सशस्त्र क्रांति के जरिए आजादी हासिल करने का मार्ग चुना।

उनकी प्रसिद्ध नारे, “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा,” ने लाखों भारतीयों को प्रेरित किया। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बने और सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया। सुभाष चंद्र बोस ने 1943 में सिंगापुर में आजाद हिंद फौज (Indian National Army - INA) का गठन किया और “दिल्ली चलो” का नारा दिया।

3- चंद्रशेखर आजाद

चंद्रशेखर आजाद का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक ऐसे नायक के रूप में गूंजता है, जिन्होंने कभी भी गुलामी स्वीकार नहीं की। 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के भाबरा गांव में जन्मे चंद्रशेखर ने कम उम्र में ही स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। लोग इन्हें आजाद कहकर भी बुलाते थे। चंद्रशेखर आजाद 1920-21 में गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े। 

चंद्रशेखर आजाद 27 फरवरी 1931 को प्रयाग के अल्फ्रेड पार्क में अपने साथियों से बातचीत कर रहे थे। इस दौरान भारी पुलिस फोर्स ने चंद्रशेखर आजाद को चारों ओर से घेर लिया था। तब आजाद ने गोली चलाई। इसमें तीन पुलिसकर्मियों की मौत हो गई। 

जब आजाद की बंदूक में एक गोली बची थी तब आजाद ने अंग्रेजों के हाथों मरने की बजाय खुद को गोली मार ली और देश के लिए शहीद हो गए। जब आजाद शहीद हुए उस समय उनकी उम्र महज 25 साल की थी। 

4- मंगल पांडे

मंगल पांडे का भारत की आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान रहा। वे 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (जिसे सिपाही विद्रोह या गदर भी कहा जाता है) के पहले नायकों में से एक थे। उनके विद्रोह ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ एक व्यापक आंदोलन की शुरुआत की। 22 साल की उम्र में मंगल पांडे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हो गए थे। 

मंगल पांडे बैरकपुर (पश्चिम बंगाल) में 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री के सिपाही थे। पांडे ने अंग्रेजों द्वारा दी गई नई एनफील्ड राइफल के कारतूसों का विरोध किया। इन कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी का उपयोग किया जाता था, जो हिंदू और मुस्लिम सिपाहियों की धार्मिक भावनाओं के खिलाफ थी। 

29 मार्च 1857 में अंग्रेज अफसर मंगल पांडे से उनकी राइफल छीनने लगे। इस दौरान पांडे ने अंग्रेज अफसर ह्यूसन को मार डाला। इसके अलावा उन्होंने अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेन्ट बॉब को भी मार डाला। मंगल पांडे को अंग्रेजों को मारने के चलते 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी गई थी। उस समय मंगल पांडे की उम्र महज 30 साल थी।