23 दिसंबर 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

AI से सहमे सियासी दल, ‘डीपफेक’ न्यूज के बाढ़ की आशंका से छूट रही झुरझुरी!

Artificial Intelligence: देश में होने वाले आम चुनाव और उससे पहले हो रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक पार्टियां 'डीपफेक' न्यूज की बाढ़ आने से आशंकित हो चली हैं।

3 min read
Google source verification
 indian Political parties scared to artificial inteliligence

नई दिल्ली। सोशल मीडिया की सीढ़ी के सहारे सत्ता के गलियारों तक पहुंचने को आतुर रहने वाले सियासी दल आने वाले चुनाव में व्हाट्सऐप जैसे इंसटेंट मैसेजिंग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) की मदद से बनी 'डीपफेक' न्यूज की बाढ़ आने की आशंका से सहम गए हैं। इन्हें डर है कि चुनावी मौसम में कहीं डीपफेक वीडियो किसी के लिए वरदान तो किसी के लिए 'भस्मासुर' का कड़ा नहीं बन जाए।

IT मंत्रालय ने उठाए कदम

केंद्र सरकार ने भी इस आशंका को भांप लिया है। इसके चलते केंद्रीय सूचना तकनीक (आइटी) मंत्रालय ऐसे डीपफेक वीडियो पर अंकुश व जवाबदेही तय करने के लिए आइटी नियम 2021 के ट्रैसेबिलिटी प्रावधान (मूल स्रोत का पता लगाना) का इस्तेमाल करने की तैयारी कर रहा है। इसमें सोशल मीडिया प्लेटफार्म को उस व्यक्ति की पहचान बतानी होगी, जिसने सबसे पहले ऐसा संदेश अपलोड किया था। इसके आधार पर सरकार संदेश भेजने वाले को नोटिस देकर कानूनी प्रक्रिया शुरू करेगी।

14 नेताओं ने सुंदर पिचाई लिखी चिट्ठी

चुनाव के दौरान सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के कथित पूर्वाग्रह को लेकर विपक्षी दलों का गठबंधन 'इंडिया' भी पिछले सप्ताह आशंका जता चुका है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे व एनसीपी नेता शरद पवार समेत 'इंडिया' के 14 नेताओं ने इस मामले में फेसबुक व वाट्सऐप संचालित करने वाले मेटा ग्रुप के सीईओ मार्क जुकरबर्ग व यूट्यूब संचालक गूगल के प्रमुख सुंदर पिचाई को पत्र लिखकर 'सांप्रदायिक नफरत को बढ़ावा देने' में उनके सोशल मीडिया प्लेटफार्म की कथित भूमिका का जिक्र करते हुए चुनाव के दौरान तटस्थ रहने का आग्रह किया है।

इसलिए छूट रही झुरझुरी

दरअसल, फेक न्यूज का दायरा अब फोटोशॉप व वीडियो एडिटिंग से काफी आगे निकल गया है। एआइ को किसी की भी फोटो व आवाज भेजकर हूबहू दिखने वाला वीडियो तैयार किया जाने लगा है। पिछले दिनों एक अंतरराष्ट्रीय यू-ट्यूबर व एक वैश्विक न्यूज चैनल के दो एंकर के डीपफेक वीडियो के जरिए धोखाधड़ी की कोशिश हो चुकी है।

वहीं केरल में एआइ की मदद से परिचित का चेहरा लगाकर वीडियो कॉलिंग फ्रॉड का मामला दर्ज हुआ है। ऐसे में चुनाव के दौरान डीपफेक वीडियो के जरिए दुष्प्रचार की आशंका बढ़ गई है। केंद्र सरकार तक कई नेताओं के ऐसे डीपफेक वीडियो सोशल मीडिया पर फैलने की बात पहुंची है। इसके बाद से ही आइटी मंत्रालय ने इसका तोड़ निकालने की कवायद शुरू की है।

आसान नहीं है कानूनी हथियार

जानकारों का कहना है कि ट्रैसेबिलिटी प्रावधान का इस्तेमाल आसान नहीं है। इसे लागू करने के लिए कई शर्तें भी हैं। वाट्सऐप ने इसी आधार पर इसे दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी है कि उसके प्लेटफार्म पर चलने वाले मैसेज 'एंड टू एंड इंक्रिप्टेड' (ईटूईई) होते हैं। यानी वाट्सऐप समेत किसी तीसरे को पता नहीं चलता कि मैसेज किसने और किसे भेजा है। ईटूईई सिस्टम खत्म होने से यूजर की निजता प्रभावित हो सकती है।

निकल सकता है बीच का रास्ता

आधिकारिक सूत्रों के अनुसार उलझन में फंसी केंद्र सरकार बीच का रास्ता निकालने पर भी सोच रही है। इसके तहत सोशल मीडिया साइट्स के लिए मैसेज के साथ 'डिस्क्लेमर' लगाना जरूरी किया जा सकता है कि यह संदेश 'फैक्ट चैक्ड (जांचा नहीं गया) है...' यानी पढ़ने वाला अपने विवेक से फैसला करे। फैसला क्या होगा, इस पर सभी मौन हैं, लेकिन आइटी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने जरूर संकेते दिया था कि डीपफेक मैसेजिंग पर अंकुश के लिए ट्रैसेबिलिटी का प्रावधान लागू किया जाना चाहिए।

-सुरेश व्यास की रिपोर्ट

ये भी पढ़ें: Israel के दौरे पर जाएंगे अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने दी जानकारी