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क्या इंदिरा गांधी को था अपनी मौत का पूर्वाभास? जानिए सालों पहले आज के दिन क्या हुआ था

भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 31 अक्टूबर 1984 को उनके ही बॉडीगॉर्ड्स ने हत्या कर दी थी। ‘आयरन लेडी’ कही जाने वाली इंदिरा को अपनी मौत का पूर्वाभास था, जिसे उनके आखिरी भाषण और व्यवहार में महसूस किया जा सकता था।

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भारत

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Devika Chatraj

Oct 31, 2025

इंदिरा गांधी (ANI/Patrika)

Indira Gandhi Death Anniversary: आज भारत की पहली और अब तक की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) की 41वीं पुण्यतिथि है। 'आयरन लेडी' के नाम से मशहूर इंदिरा गांधी की हत्या 31 अक्टूबर 1984 को उनके ही सिख बॉडीगॉर्ड्स ने कर दी थी। लेकिन कई इतिहासकारों और करीबियों का मानना है कि इंदिरा को अपनी मौत का पूर्वाभास पहले से ही हो चुका था। उनके आखिरी दिनों के भाषण, पत्र और परिवार के साथ व्यवहार इसकी गवाही देते हैं। आइए, जानते हैं उस काले दिन की पूरी कहानी और उन संकेतों को जो मौत की आहट दे रहे थे।

आखिरी भाषण में परिवार को दी चेतावनी

इंदिरा गांधी को ऑपरेशन ब्लू स्टार (जून 1984) के बाद से ही सिख समुदाय से जान का खतरा महसूस हो रहा था। खुफिया एजेंसियों ने सिख गार्डों को उनकी सुरक्षा से हटाने की सिफारिश की थी, लेकिन इंदिरा ने इसे ठुकरा दिया। उन्होंने कहा, "हम धर्मनिरपेक्ष हैं, सभी धर्मों के लोग मेरे लिए बराबर हैं।" फिर भी, उनके मन में मौत का डर मंडराने लगा था।

30 अक्टूबर 1984 का आखिरी भाषण

हत्या से ठीक एक दिन पहले भुवनेश्वर (ओडिशा) की रैली में इंदिरा ने अप्रत्याशित रूप से भावुक होकर कहा, "मैं आज यहां हूं, शायद कल न रहूं। मुझे चिंता नहीं, मैं रहूं या न रहूं। मेरा लंबा जीवन रहा है और मुझे गर्व है कि मैंने इसे लोगों की सेवा में बिताया। जब मेरी जान जाएगी, तो मेरे खून का हर कतरा भारत को मजबूत बनाएगा।" भाषण सुनने वाले राज्यपाल बिशंभरनाथ पांडे ने बाद में कहा कि ये शब्द हिंसक मौत का संकेत दे रहे थे। इंदिरा ने जवाब दिया, "मैं तो बस ईमानदार बात कह रही थी।"

परिवार के साथ आखिरी पल

31 अक्टूबर की सुबह इंदिरा अपनी पोती प्रियंका को स्कूल के लिए तैयार कर रही थीं। वे प्रियंका को इतनी देर तक गले लगाए रहीं कि बच्ची परेशान हो गई। इंदिरा ने पोते राहुल से कहा, "अगर मुझे कुछ हो जाए, तो तुम्हें रोना नहीं है।" इससे पहले भी वे अक्सर मौत का जिक्र करती रहती थीं। एक पत्र में उन्होंने लिखा था, "अगर मुझे हिंसक मौत मिले, तो हिंसा हत्यारे के विचारों में है, मेरी मौत में नहीं। मेरा प्यार देश के लिए इतना गहरा है कि कोई नफरत उसे दबा नहीं सकती।"

31 अक्टूबर 1984 की कहानी

सुबह करीब 9:20 बजे, नई दिल्ली के 1 सफदरजंग रोड स्थित आधिकारिक निवास से इंदिरा बाहर निकलीं। वे ब्रिटिश अभिनेता पीटर उस्तीनोव के साथ एक डॉक्यूमेंट्री इंटरव्यू के लिए अपने कार्यालय (1 अकबर रोड) जा रही थीं। लाल साड़ी, काले सैंडल और लाल बैग लिए इंदिरा लॉन से गुजर रही थीं। छाता थामे हेड कांस्टेबल नारायण सिंह उनके साथ थे।

बॉडीगॉर्ड ने मारी गोली

तभी उनके बॉडीगॉर्ड बेअंत सिंह ने रिवॉल्वर से पहली गोली मारी। पास खड़े सतवंत सिंह ने स्टेन गन से 30 राउंड फायर किए। कुल 31 गोलियां चलीं, जिनमें से 30 इंदिरा को लगीं 23 शरीर से पार हो गईं, 7 अंदर रह गईं। उन्हें तुरंत एम्बुलेंस में AIIMS ले जाया गया। डॉक्टरों ने घंटों सर्जरी की, लेकिन दोपहर 2:23 बजे वे शहीद हो गईं।

बदले की आग में हत्या

बेअंत और सतवंत ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेना चाहते थे, जिसमें अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पर सेना का हमला हुआ था। सिखों को अपमान लगा। बेअंत को तुरंत गोली मार दी गई, सतवंत को गिरफ्तार किया गया (उन्हें 1989 में फांसी दी गई)।

सिख विरोधी दंगे

इंदिरा की मौत की खबर शाम को दूरदर्शन पर आई। देश स्तब्ध था। लेकिन दिल्ली, कानपुर समेत कई शहरों में सिखों पर हमले शुरू हो गए। तीन दिनों में 3,000 से ज्यादा सिख मारे गए। राजीव गांधी ने कहा, "जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है, तो धरती हिल जाती है।" उसके बाद वे उसी शाम प्रधानमंत्री बने।