
ISRO's Cartosat-2 buried in Indian Ocean: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के कार्टोसैट-2 ने कार्यकाल खत्म होने के बाद पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश किया और हिंद महासागर में समा गया। इसरो के अधिकारियों ने बताया कि कार्टोसैट-2 सैटेलाइट को नियंत्रित तरीके से वायुमंडल में प्रवेश कराया गया, ताकि कचरा कम फैले और किसी तरह का नुकसान न हो। देश की हाई-रेजोल्यूशन तस्वीरें लेकर सडक़ें और नक्शे बनाने के मकसद से कार्टोसैट-2 को 10 जनवरी, 2007 को लॉन्च किया गया था। इसके पांच साल तक काम करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन यह अंतरिक्ष में 12 साल सक्रिय रहा। सैटेलाइट को 2019 में डिएक्टिवेट कर दिया गया था।
यह हाई-रेजोल्यूशन इमेजिंग सैटेलाइट सीरीज की दूसरी पीढ़ी का पहला सैटेलाइट था। इसका वजन 680 किलोग्राम था। इसे पृथ्वी से 635 किलोमीटर की ऊंचाई पर सन-सिनक्रोनस पोलर ऑर्बिट में तैनात किया गया था। इसने देश की बेहतरीन तस्वीरें भेजीं।
इसरो टेलिमेट्री ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क सेंटर के सिस्टम फॉर सेफ एंड सस्टेनेबल स्पेस ऑपरेशंस की टीम ने जब कार्टोसेट-2 की समुद्र में सफल लैंडिंग कराई तो यह पृथ्वी से 130 किलोमीटर ऊपर था। यह धीरे-धीरे पृथ्वी की तरफ आया और हिंद महासागर में समा गया।
इसरो के वैज्ञानिकों को उम्मीद थी कि कार्टोसेट-2 स्वयं 30 साल में पृथ्वी पर गिरेगा, लेकिन बाद में इसमें बचे ईंधन का इस्तेमाल कर इसे पृथ्वी पर गिराने का फैसला किया गया। जिससे निष्क्रिय सैटेलाइट अंतरिक्ष में किसी अन्य सैटेलाइट से न टकराए और न ही स्पेस स्टेशन के लिए खतरा न बने। वायुमंडल पार करते समय इसके ज्यादातर हिस्से जलकर नष्ट हो गए थे।
Published on:
17 Feb 2024 06:42 am
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