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Karnataka Result: भाजपा की वो 10 गलतियां जिसने ‘भगवा’ को दक्षिण से किया Out

Karnataka Assembly Election Result 2023: आखिरकार वही हुआ जिसकी संभावना जताई जा रही थी। कर्नाटक में भाजपा को करारी हार झेलनी पड़ी। कर्नाटक की हार के साथ भाजपा दक्षिण से Out हो चुकी है। भाजपा की हार के बाद अब इसके कारण तलाशे जा रहे हैं।  

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भाजपा की वो 10 गलतियां जिसने 'भगवा' को दक्षिण से किया Out

भाजपा की वो 10 गलतियां जिसने 'भगवा' को दक्षिण से किया Out

Karnataka Assembly Election Result 2023: 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले आज भाजपा को कर्नाटक में बड़ा झटका लगा है। दक्षिण का द्वार कहलाने वाले इस राज्य में भाजपा ने अपनी सत्ता गंवा दी है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया है। इस चुनाव में सबसे बड़ा नुकसान भाजपा को उठाना पड़ा। अभी तक की वोटों की गिनती के अनुसार 224 सीट वाले कर्नाटक में कांग्रेस 137 सीटों पर आगे चल रही है। जिसमें कई सीटों पर कांग्रेस ने बड़ी जीत भी हासिल कर ली है। दूसरी ओर भाजपा 63 सीटों पर आगे चल रही है। अब तक नतीजे बता रहे है कि पिछली बार की तुलना में भाजपा को कर्नाटक में 41 सीटों का नुकसान उठाना पड़ेगा। जबकि कांग्रेस 2018 की तुलना में 57 सीटों पर आगे चल रही है। कांग्रेस की जीत और भाजपा की हार के बाद अब नतीजों के विश्लेषण का समय है। भाजपा की हार के कारण तलाशे जा रहे हैं। आइए जानते हैं भाजपा की हार के10 प्रमुख कारणों को-

कर्नाटक में भाजपा की 10 बड़े कारण

1. गले की फांस बनी भ्रष्टाचार

कर्नाटक में भाजपा की हार की सबसे बड़ी कारण भ्रष्टाचार बनी। कर्नाटक की भाजपा सरकार में करप्शन चरम पर था। हर काम के लिए कमीशन देना पड़ता था। भाजपा की इस कमजोर नब्ज को कांग्रेस ने समय रहते पहचाना और फिर करप्शन पर जमकर हमला बोला।

'40 परसेंट कमीशन वाली सरकार' का नारा देकर कांग्रेस ने जनता का ध्यान राज्य में चल रहे करप्शन के खेल को उजागर किया। चुनाव के ठीक पहले भाजपा के एक विधायक के घर से 8 करोड़ से ज्यादा कैश बरामद हुए। जिसने कांग्रेस के दावों को सच कर दिया।


2. हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण का दांव हुआ फेल

कर्नाटक में भाजपा ने हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण का पूरा दांव चला था। लेकिन यह दांव यहां बिल्कुल फेल कर गया। ध्रुवीकरण की जमीन चुनाव से काफी पहले से शुरू कर दी गई थी। हिजाब, हलाला के बाद चुनाव की तारीख नजदीक आते-आते मुस्लिम आरक्षण समाप्त कर भाजपा ने हिंदू वोटरों को लुभाने की भरपुर कोशिश की। लेकिन यह दांव फिट नहीं बैठा।


3. एंटीइनकमबेंसी को खत्म नहीं कर सकी पार्टी

कर्नाटक एक ऐसा राज्य है, जहां पिछले 34 साल से सत्ताधारी दल वापसी नहीं कर सकी है। 2018 की हंग एजेंबली के बाद भाजपा ने यहां जोड़-तोड़ के दम पर सरकार बना ली थी। सत्ता में आने के बाद से भाजपा ने कई ऐसे फैसले लिए, जिसने कर्नाटक के एक समुदाय को परेशानी में डाला। भाजपा सरकार अपनी नीतियों के कारण जनमानस से उतरती गई। जिसका तोड़ पार्टी नहीं तलाश सकी।


4. कर्नाटक में मजबूत चेहरा की तलाश नहीं कर पाना


कर्नाटक में सीएम बासवराज बोम्मई भाजपा के चेहरा थे। लेकिन उनके मुकाबले कांग्रेस की तरफ से सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार का प्रभाव ज्यादा व्यापक साबित हुआ। येदियुरप्पा के बाद भाजपा कर्नाटक में उनके जैसा कोई मजबूत चेहरा नहीं तलाश सका। जिसका खामियाजा पार्टी को चुनाव में उठाना पड़ा।


5. येदियुरप्पा को साइड लाइन करना


बीएस येदियुरप्पा को कर्नाटक में भाजपा के सबसे बड़ा चेहरा माना जाता है। उन्हीं के दम पर भाजपा ने पहली बार दक्षिण में प्रवेश किया था। लेकिन करप्शन के मामले में फंसने के बाद येदियुरप्पा को साइड लाइन होना पड़ा। बाद में भाजपा ने फिर उनपर भरोसा जताया। लेकिन अब येदियुरप्पा की उम्र आड़े आ गई। कर्नाटक चुनाव से पहले येदियुरप्पा को भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर की जिम्मेदारी दे दी।


6. सियासी समीकरण को नहीं भांप सकी पार्टी


भाजपा इस चुनाव में सियासी समीकरण नहीं भांप सकी। उम्मीदवारों के चयन में भी भाजपा ने बड़ी तेजी की थी। कर्नाटक की अधिसंख्य आबादी लिंगायत और वोक्वालिंगा समुदाय का विश्वास भाजपा जीत नहीं सकी। मुस्लिम, दलित और आदिवासी वोटरों ने भी भाजपा से दूरी बनाई। जिससे दक्षिण भारतीय राज्य से भगवा को आउट होना पड़ा।

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7. मुस्लिम आरक्षण समाप्त करना

चुनाव से ठीक पहले भाजपा ने चार प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण समाप्त करने का फैसला लिया था। इस चार प्रतिशत आरक्षण को दो-दो प्रतिशत लिंगायत और वोक्कालिंगा समुदाय में बांटा गया था। यह फैसला अभी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। भाजपा को उम्मीद थी कि इस फैसले का फायदा उसे मिलेगा। लेकिन सियासी समीकरण में भाजपा फेल हो गई।


8. ऐन चुनाव के समय पार्टी में बगावत


कर्नाटक विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा को बगावत की मार भी झेलनी पड़ी। पार्टी के कद्दावर नेता और पूर्व सीएम रहे जगदीश शेट्टार, पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी सहित कई बड़े नेताओं ने इस्तीफा दे दिया। जगदीश शेट्टार को भले ही हार का सामना करना पड़ा हो लेकिन पार्टी के बड़े नेताओं की बगावत भाजपा को भारी पड़ी।

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9. बजरंग दल को बजरंग बलि से जोड़ना


भाजपा ने ‘बजरंग बली’ को बंद करने का मुद्दा उठाया, जिसे जनता ने नकार दिया। जबकि कांग्रेस पार्टी ने बजरंग दल को बैन करने की बात अपने घोषणापत्र में कही है। हिजाब विवाद भी भाजपा की हार के लिए जिम्मेदार बना है। भाजपा हिजाब पर प्रतिबंध लगाना चाहती थी, जिसे राज्य की जनता ने नकार दिया। साथ ही भाजपा ने टीपू सुल्तान की छवि खराब करने की भी कोशिश की। ये सब रणनीतियां भाजपा को भारी पड़ी।


10. पीएम मोदी पर अति आश्रित होना


पीएम मोदी भाजपा सबसे बड़े स्टार प्रचारक हैं। कर्नाटक में मोदी की कई रैलियां हुई। इनमें भीड़ भी खूब जुटी लेकिन पीएम मोदी करप्शन वाली भाजपा सरकार के लिए पर्याप्त वोट नहीं जुटा सके। भाजपा अब तक वोट के लिए पीएम मोदी पर आश्रित है। लेकिन कर्नाटक के नतीजे बता रहे हैं कि अब मोदी का तिलिस्म टूट रहा है।

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