केरल सरकार मोदी सरकार द्वारा रोके गए 1,500 करोड़ रुपये के फ़ंड के फैसले के खिलाफ न्यायिक हस्तक्षेप चाहती है। सरकार का तर्क है कि केंद्र-राज्य सहयोग आधारित योजनाओं में विचारधारा के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।
Kerala government to approach the Supreme Court against the Centre Government: केरल सरकार ने केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि उसने राज्य को विभिन्न केंद्र प्रायोजित शिक्षा योजनाओं के तहत मिलने वाली 1,500 करोड़ रुपये की राशि रोक दी है। राज्य के शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी ने स्पष्ट किया कि यह कार्रवाई इसलिए की गई क्योंकि केरल ने प्रधानमंत्री स्कूल्स फॉर राइजिंग इंडिया (PM SHRI) योजना को अपनाने से इनकार कर दिया था। अब केरल सरकार इस निर्णय को भारत के संघीय ढांचे के खिलाफ मानते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने की तैयारी कर रही है।
पीएम श्री योजना, 2022 में शुरू की गई एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसका उद्देश्य देश के 14,500 से अधिक मौजूदा स्कूलों को मॉडल शिक्षण संस्थान के रूप में विकसित करना है। यह योजना राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अनुरूप कार्यान्वित की जा रही है। यह योजना केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में लागू की जा रही है, जिसका कुल बजट 27,360 करोड़ है, जिसमें से 18,128 करोड़ केंद्र सरकार का हिस्सा होगा। यह योजना 2022-23 से 2026-27 तक पांच वर्षों की अवधि में लागू की जाएगी। बाकी 40% खर्च राज्यों को उठाना होगा, जैसा कि अन्य केंद्र योजनाओं में होता है। अब तक देश के 670 जिलों में प्राथमिक से लेकर उच्च माध्यमिक स्तर तक के 12,400 स्कूल इस योजना में शामिल हो चुके हैं।
केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल ने इस योजना के लिए आवश्यक सहमति ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है। इन राज्यों का मानना है कि एनईपी 2020 शिक्षा का भगवाकरण करता है और इससे केंद्र सरकार का राज्य शिक्षा तंत्र पर नियंत्रण बढ़ेगा, जो संविधान में निर्धारित संघीय ढांचे के खिलाफ है।
शिक्षा मंत्री शिवनकुट्टी ने कहा, “राज्य सरकार ने पहले से ही अपने स्कूलों में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, स्मार्ट क्लासरूम, और अन्य नवाचार लागू कर दिए हैं। ऐसे में सिर्फ MoU न करने के कारण फंड रोकना न्यायसंगत नहीं है।" उन्होंने आगे कहा कि केंद्र ने समग्र शिक्षा अभियान (SSA) के तहत मिलने वाली राशि को भी रोक दिया है, जिससे राज्य के शिक्षा कार्यक्रम प्रभावित हो रहे हैं और हज़ारों छात्रों पर इसका सीधा असर पड़ सकता है।
अब केरल सरकार केंद्र के इस फैसले के खिलाफ न्यायिक हस्तक्षेप चाहती है। सरकार का तर्क है कि केंद्र-राज्य सहयोग आधारित योजनाओं में विचारधारा के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। केरल यह भी कह रहा है कि पॉलिसी असहमति को राज्य के छात्रों की शिक्षा बाधित करने का आधार नहीं बनाया जा सकता।