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बदल रहा मानसून का पैटर्न, अक्टूबर में औसत से 44 प्रतिशत ज्यादा हुई बारिश

जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले पांच दशकों में देश में मानसून के ठहरने की अवधि बढ़ी है और इसके लौटने में देरी हो रही है, जिसका रबी की फसलों पर सकारात्मक असर पड़ रहा है।

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भारत

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Himadri Joshi

Nov 07, 2025

Meteorological department report

मौसम विभाग की रिपोर्ट (प्रतीकात्मक तस्वीर)

देश में मानसून के लौटने की घोषणा के बाद भी बरसात का सिलसिला जारी रहना मानसून के बदलते पैटर्न की ओर संकेत कर रहा हैं। मौसम विभाग के ही शोध के अनुसार देश में मानसून पहले से ज्यादा दिन ठहर रहा है। पिछले पचास सालों में हर दशक में मानसून के ठहरने के दिनों में करीब 1.6 दिन प्रति दशक की बढ़ोतरी हुई है। इसके साथ ही देश की कुल वर्षा में मानसूनी वर्षा की हिस्सेदारी भी बढ़ कर 79 प्रतिशत हो गई है। मानसून के लौटने की तिथि में पहले की तुलना में तीन दिन का औसत अंतर भी आया है।

इस बार 16 अक्टूबर को की गई थी मानसून लौटने की घोषणा

मौसम विभाग जहां एक सितम्बर से मानसून के लौटने की शुरुआत व 15 अक्टूबर तक मानसून की औसत विदाई मानता है वहीं शोध के अनुसार 1971 से 2020 के दौरान इसके लौटने की औसत तिथि 18 अक्टूबर रही है। हालांकि इस बार इसके 16 अक्टूबर को लौटने की घोषणा की गई थी। उल्लेखनीय है कि, बीते 20 सालों में अक्टूबर माह के दौरान औसत बारिश 74 एमएम रही है, लेकिन इस साल अक्टूबर में 106 एमएम (44 प्रतिशत अधिक) बारिश दर्ज की गई थी।

समय पर आया मानसून लेकिन लौटने में देरी

भारतीय मौसम विभाग के वैज्ञानिकों सत्य प्रकाश, आरके गिरी और एससी भान विभाग के जर्नल मौसम में प्रकाशित शोध पत्र के अनुसार भारत में दक्षिण पश्चिम मानसून के आगमन की तारीखों में तो कोई विशेष बदलाव नहीं आया है पर मानसून के लौटने में देरी हो रही है। भारत में दक्षिण पश्चिम मानसून के प्रारम्भ की तिथि 1 जून मानी गई है और 8 जुलाई तक यह पूरे देश में छा जाता है।

इतनी बढ़ी मानसून टिकने की अवधि

देश में मानसून की अवधि को सामान्यतया 122 दिन की अवधि का माना जाता है। वर्ष 1971 से 2020 के बीच मानसून की अवधि 139 दिन ( -10 दिन) है। सबसे कम अवधि 1972 में 118 दिन व सबसे ज्यादा अवधि 1974 में 158 दिन की रही। हर दशक में मानसून की अवधि 1.6 दिन की दर से बढ़ी है। मानसून सबसे पहले 1984 में 03 अक्टूबर को लौटा था वहीं 2010 में यह सबसे देरी से 29 अक्टूबर से लौटा। मानसून पूरे देश को 71 दिन ( - 13 दिन) तक कवर किए रहता है। इस दौरान पूरे देश की कुल वर्षा का 49 प्रतिशत बारिश होती है। जितने दिन मानसून पूरे देश को कवर करता है उसमें भी 3.1 दिन प्रति दशक की बढ़ोतरी हुई है और इसका कारण उत्तर पश्चिमी भारत के इलाकों से मानसून की विदाई में देरी होना है।

रबी की फसलों, सरसों पर पड़ता है अच्छा असर

रबी की फसल के लिए मानसून की शुरुआत से लेकर विदाई के बीच हुई बारिश महत्वपूर्ण है। यदि मानसून की विदाई अक्टूबर के पहले होने लगती है तो रबी की फसल कमजोर होती है। यदि मानसून की विदाई देर से होती है तो रबी की फसल अच्छी होती है। रेपसीड व सरसों की फसल और देरी से मानसून लौटने के बीच 0.33 का सह सबंध गुणांक पाया गया है और यह 95 प्रतिशत के सिग्निफिकेंस लेवल पर है। इस साल की बात की जाए तो कृषि विभाग के अनुसार 31 अक्टूबर, 2025 तक देश में महत्वपूर्ण रबी फसलों की कुल बुवाई पिछले साल की तुलना में 9.89 लाख हेक्टेयर अधिक हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रमुख रबी फसलों का कुल बुवाई क्षेत्र 31 अक्टूबर, 2024 को 65.88 लाख हेक्टेयर था, जो 31 अक्टूबर, 2025 को 75.77 लाख हेक्टेयर हो गया।