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बिहार में खत्म होगा 75 प्रतिशत आरक्षण! सरकार के सामने खड़ी हुई बड़ी चुनौती

75 percent reservation in Bihar: बिहार में बढ़ाए गए आरक्षण को पटना हाईकोर्ट में चुुनौती दी गई है।

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 Petition filed against 75 percent reservation in Patna High Court

बिहार सरकार ने सूबे में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ी जाति (बीसी) और अत्यंत पिछड़ी जाति के लोगों की सरकार में भूमिका बढ़ाने और जीवन स्तर को बेहतर करने के लिए आरक्षण का दायरा 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 प्रतिशत कर दिया था। वहीं, अब सरकार के इस फैसले के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। याचिका को सूचीबद्ध करने से पहले उसकी एक प्रति महाधिवक्ता के कार्यालय को भेज दी गई है। मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन की अनुमति के बाद इसे सूचीबद्ध किया जाएगा।

दो व्यक्तियों ने दायर की याचिका

विधानसभा से पास इस कानून के खिलाफ गौरव कुमार व नमन श्रेष्ठ ने याचिका दायर की है। बता दें कि बिहार विधान मंडल ने हाल ही में बिहार आरक्षण (अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति व अन्य पिछड़ी जाति) (संशोधन) अधिनियम, 2023 और बिहार (शिक्षण संस्थानों में प्रवेश) आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 पारित किया। इनके माध्यम से आरक्षित श्रेणियों के लिए पहले से दी जा रही आरक्षण की सीमा को 50 से बढ़ा कर 65 प्रतिशत कर दिया गया है।

आरक्षण पर रोक लगाने की मांग

जानकारी के मुताबिक इस याचिका में इन संशोधनों पर रोक लगाने की मांग की गई है। बिहार विधान मंडल ने 10 नवंबर 2023 आरक्षण संशोधन विधेयकों को पारित किया और राज्यपाल ने इन कानूनों पर 18 नवंबर 2023 को मंजूरी दी। राज्य सरकार ने 21 नवंबर 2023 को गजट में इसकी अधिसूचना जारी कर दी। इसके साथ ही राज्य की सेवाओं और शिक्षण संस्थानों के दाखिले में नया आरक्षण कानून प्रभावी हो गया।

याचिका में कहा गया है कि संशोधन जाति सर्वेक्षण के आधार पर किया गया है। इन पिछड़ी जातियों का प्रतिशत इस जातिगत सर्वेक्षण में 63.13 प्रतिशत था, जबकि इनके लिए आरक्षण 50 प्रतिशत से बढ़ा कर 65 प्रतिशत कर दिया गया है।

जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने का प्रविधान नहीं

याचिका में ये भी कहा गया है कि संवैधानिक प्रविधानों के अनुसार, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने का कोई प्रविधान नहीं है। संशोधित अधिनियम राज्य सरकार ने पारित किया है, वह भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। इसमें सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के समान अधिकार के सिद्धांत का उल्लंघन हुआ है।

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