16 दिसंबर 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

Africa में बजा गुजरात का डंका: पोरबंदर के ‘बापू’ से वडनगर के ‘मोदी’ तक… सत्याग्रह से शिखर सम्मेलन तक ऐसे बदले रिश्ते

गुजरात से अफ्रीका तक: गांधी के सत्याग्रह से मोदी के विकास सम्मेलन की कहानी

2 min read
Google source verification

भारत

image

MI Zahir

Dec 16, 2025

India Africa Ties Transformation

अफ्रीका में महात्मा गांधी के'सत्याग्रह' से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे तक। (फोटो : AI Generated)

India Africa Ties Transformation: इतिहास खुद को दोहराता नहीं, बल्कि नई ऊंचाइयों को छूता है। यह बात भारत और अफ्रीका के रिश्तों (India Africa Ties) पर बिल्कुल सटीक बैठती है। एक सदी पहले गुजरात के पोरबंदर से निकले मोहनदास करमचंद गांधी ने दक्षिण अफ्रीका (Gandhi Modi Africa) की धरती पर 'सत्याग्रह' का बिगुल फूंका था। कालांतर में भारत पहुंच कर उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन का बिगुल बजाया और महात्मा गांधी कहलाए। आज, 2025 में, गुजरात के ही वडनगर से निकले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इथियोपिया (PM Modi Ethiopia )में 'विकास और विश्वास' की नई कहानी (India Africa Ties Transformation) लिख रहे हैं।

बापू की यादें और 'ग्लोबल साउथ'

अफ्रीका की जिस धरती ने गांधी को 'महात्मा' बनाया, आज वही धरती पीएम मोदी को 'ग्लोबल साउथ' (विकासशील देशों) के सबसे बड़े नेता के रूप में देख रही है। आइए जानते हैं, पोरबंदर से वडनगर तक के इस सफर में भारत-अफ्रीका के रिश्ते कैसे और कितने बदल गए।

पोरबंदर के गांधी: जब अफ्रीका बनी 'सत्याग्रह' की प्रयोगशाला

बात 1893 की है, जब 24 साल के एक युवा वकील, मोहनदास, गुजरात से दक्षिण अफ्रीका पहुंचे। वहां भारतीयों और अश्वेत लोगों के साथ हो रहे भेदभाव ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया।

सत्याग्रह का जन्म: साल 1906 में जोहान्सबर्ग में गांधीजी ने पहली बार 'सत्याग्रह' का प्रयोग किया। यह लड़ाई आत्मसम्मान की थी।

अफ्रीका से गुजरात का कनेक्शन

गांधीजी के आंदोलन में शामिल होने वाले कई शुरुआती साथी गुजराती व्यापारी और मजदूर ही थे। पोरबंदर की मिट्टी से निकले अहिंसा के विचार ने नेल्सन मंडेला जैसे अफ्रीकी नेताओं को भी प्रेरित किया। उस समय भारत और अफ्रीका का रिश्ता 'संघर्ष और संवेदना' का था।

वडनगर के मोदी : 2025 में 'विकास' की साझेदारी

गांधीजी के समय जहां हम 'अधिकारों' के लिए लड़ रहे थे, वहीं आज पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत अफ्रीका को 'आत्मनिर्भर' बनाने में मदद कर रहा है। दिसंबर 2025 का पीएम मोदी का इथियोपिया दौरा इसी बदलाव का गवाह है।

16-17 दिसंबर 2025 का ऐतिहासिक दौरा: अपनी जॉर्डन यात्रा के बाद पीएम मोदी इथियोपिया पहुंचे। अदीस अबाबा में उनका भव्य स्वागत हुआ।

इथियोपियाई संसद में गूंजी भारत की आवाज

इथियोपियाई संसद को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि भारत और अफ्रीका सिर्फ पड़ोसी नहीं, बल्कि 'साझेदार' हैं। उन्होंने डिजिटल इंडिया और स्वास्थ्य सेवाओं में इथियोपिया को हर संभव मदद देने का भरोसा दिया।

तब और अब : कितना बदला रिश्ता ?

अगर हम गांधीजी के दौर की तुलना मोदी युग से करें, तो जमीन-आसमान का फर्क दिखता है:

संघर्ष से सहयोग तक: पहले हमारा रिश्ता औपनिवेशिक सत्ता (अंग्रेजों) के खिलाफ लड़ाई का था। आज यह रिश्ता व्यापार, तकनीक और निवेश का बन चुका है।

लेन-देन से आगे: चीन जहां अफ्रीका में 'कर्ज' बांटता है, वहीं भारत वहां 'कौशल' (Skills) बांट रहा है। इधर मोदी सरकार ने अफ्रीका में शिक्षा और ट्रेनिंग पर जोर दिया है।

ग्लोबल मंच पर दोस्ताना साथ

पीएम मोदी की कोशिशों से ही अफ्रीकी संघ (African Union) को G20 में स्थायी सदस्यता मिली। यह भारत की तरफ से अफ्रीका को दिया गया अब तक का सबसे बड़ा कूटनीतिक तोहफा है।

19 से 21 वीं सदी तक गुजरात की गूंज

बहरहाल, चाहे वह 19वीं सदी में पोरबंदर के गांधी हों या 21वीं सदी में वडनगर के मोदी—गुजरात के सपूतों ने अफ्रीका के साथ भारत के रिश्तों को हमेशा खास बनाया है। गांधीजी ने दिलों को जोड़ा था, पीएम मोदी अब तरक्की के रास्तों को जोड़ रहे हैं। इथियोपिया के बाद ओमान की यात्रा के साथ यह दौरा भारत को 'विश्व बंधु' के रूप में स्थापित कर सकता है।