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मणिपुरः राहत शिविरों की टूटी छतों से राहत की आस लगाए हैं 65 हजार आंखें

मणिपुर में जातीय हिंसा की आग में झुलसने के बाद मैतेई और कुकी, दोनों समुदायों के 65,000 से अधिक लोग विस्थापन का दंश झेल रहे हैं। वे अपने ही प्रदेश में शरणार्थियों की तरह जीवन बिताने को मजबूर हैं।

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मणिपुर राहत शिविर (फोटो-पत्रिका)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मणिपुर दौरे से ठीक एक दिन पहले, इंफाल के आइडियल कॉलेज में बने राहत शिविर का माहौल उम्मीद और अनिश्चितता के बीच झूल रहा है। यहां म्यांमार से सटे मोरेह शहर से विस्थापित होकर आए करीब 400 मैतेई समुदाय के लोग पिछले दो साल से अधिक समय से रह रहे हैं। जब उनसे उनके घर, उनके गांव के बारे में बात की जाती है तो गला रुंध जाता है और आंखें नम हो जाती हैं। इन नम आंखों में अब बस एक ही उम्मीद है - "प्रधानमंत्री कल आ रहे हैं, शायद हमारे लिए कुछ तो बोलेंगे, शायद घर वापसी का कोई रास्ता खुलेगा।"

यह सिर्फ इस एक शिविर की कहानी नहीं है। मणिपुर में जातीय हिंसा की आग में झुलसने के बाद मैतेई और कुकी, दोनों समुदायों के 65,000 से अधिक लोग विस्थापन का दंश झेल रहे हैं। वे अपने ही प्रदेश में शरणार्थियों की तरह जीवन बिताने को मजबूर हैं। इन सभी की निगाहें प्रधानमंत्री मोदी के दौरे पर टिकी हैं, जो आज चुराचांदपुर और इंफाल में कुल 8500 करोड़ रुपए की विकास परियोजनाओं का शिलान्यास करेंगे।

राहत शिविर का दर्द, 'विकास जरूरी, पर घर पहली जरूरत'

आइडियल कॉलेज में एक दुकान पर काम कर रहे 65 साल के चाउबा टूटी-फूटी हिंदी में बताते हैं, "दो साल से ज्यादा हो गए, अपना घर, अपनी खेती-बाड़ी सब छूट गई। बच्चों का भविष्य अंधकार में है। सुबह से मीडिया के लोग आ रहे हैं। पूछ रहे हैं पीएम से क्या उम्मीद है? सबसे पहले हमें हमारा घर वापस चाहिए।" घर जल गया है। वहां जाकर सब कुछ फिर से शुरू करना होगा।

शिविर में मौजूद युवा भी हताश हैं। उनका कहना है कि सरकार को स्थायी शांति और पुनर्वास के लिए एक ठोस योजना बनानी चाहिए। घर वापसी की राह में सबसे बड़ा रोड़ा सुरक्षा का है। जब तक दोनों समुदायों के बीच विश्वास बहाल नहीं होता और सरकार सुरक्षा की गारंटी नहीं लेती, तब तक घर लौटना एक सपना ही रहेगा।

कल घर वापसी का रास्ता खुला तो यह दिवाली से पहले हमारे लिए गिफ्ट है

मई, 2023 में हिंसा के दौरान संध्या को मोरेह से इंफाल के शरणार्थी कैंप में शिफ्ट होना पड़ा। दो साल से वह अपने बच्चों के साथ यहीं रह रही हैं। वह बताती हैं कि सबसे बड़ी समस्या बच्चों के पढ़ाई और उनके हेल्थ को लेकर होती है। अगर कुछ निष्कर्ष निकल कर आता है तो हमारे लिए दिवाली से पहले यह घर वापसी का गिफ्ट होगा।

कैंप में गंदगी से बीमारी फैलने का खतरा सबसे अधिक

कैंप में मोरेह के रहने वाले जॉय बताते हैं कि खाने के लिए रोज 400 ग्राम चावल और 80 रुपए पैसे प्रति व्यक्ति को मिलते हैं। लेकिन यहां नालियों से आते बदबू और जमा पानी से बीमारी का खतरा हमेशा बना रहता है। दो साल अपने घर से काम के लिए दूर रहते थे। लेकिन, अपने परिवार के साथ अपना सब कुछ छोड़ना पड़ा। घर और जमीन सब कुछ अचनक छोड़ना पड़ा। सब कुछ एक झटके में ही जलकर रख हो गया।

विकास की सौगात और विस्थापितों के सवाल

पीएम मोदी चुराचांदपुर 7,300 करोड़ रुपए से अधिक की विभिन्न विकास परियोजनाओं की आधारशिला रखेंगे, जिनमें शहरी सड़कें, राष्ट्रीय राजमार्ग और अन्य परियोजनाएं शामिल हैं। वहीं राजधानी इंफाल में 1200 करोड़ रुपये की विभिन्न विकास परियोजनाओं का शिलान्यास करेंगे। इन परियोजनाओं का उद्देश्य राज्य में इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना और विकास को गति देना है।

इन विस्थापितों के लिए विकास के मायने तभी हैं जब वे अपने घरों में सुरक्षित लौट पाएं। उनकी उम्मीद सिर्फ प्रधानमंत्री की घोषणाओं पर टिकी है कि क्या उनके दर्द की आवाज सुनी जाएगी और क्या उनके घर वापसी का इंतजार खत्म होगा।