
Rashtriya Swayamsevak Sangh: भारतीय जनता पार्टी का बैकबोन यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) इन दिनों सुर्खियों में है। कभी बीजेपी के लिए नींव का काम करने वाले संघ से ही उसके रिश्ते तल्ख होते जा रहे हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान और बाद में हुई बयानबाजी के बाद सवाल उठने लगा है कि क्या अब भाजपा को संघ की जरूरत नहीं है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए समझना होगा कि आखिर संघ क्या है, कैसे काम करता है और इसके प्रमुख का चयन कैसे किया जाता है। दरअसल, संघ भारत का एक प्रमुख हिंदू राष्ट्रवादी संगठन है, जिसकी शुरुआत 1925 में डॉ. केशव राव बलीराम हेडगेवार ने की थी। इस संगठन का मुख्य कार्य भारतीय समाज में सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देना और देश की सेवा करना है। आरएसएस की शाखाएं देश के हर कोने में फैली हुई हैं, और यह अलग-अलग सामाजिक, सांस्कृतिक, और शैक्षिक क्षेत्रों में सक्रिय है।
आरएसएस एक स्वयंसेवी (वालंटियर) संगठन है, जिसे 'संघ' भी कहा जाता है। आरएसएस का मुख्यालय नागपुर, महाराष्ट्र में है। संघ के लाखों स्वयंसेवक देशभर में फैले हुए हैं और यह संगठन अपनी सेवा और सामाजिक कार्यों के लिए जाना जाता है। आरएसएस की गतिविधियां भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव डालती हैं और यह संगठन भारतीय राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसकी विचारधारा हिंदू संस्कृति और देशभक्ति पर आधारित है। आरएसएस के स्वयंसेवक रोजाना 'शाखाओं' में इकट्ठे होते हैं, जहां वे व्यायाम, योग, खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों के जरिए समाज की सेवा के लिए तैयार होते हैं।
आरएसएस भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। आरएसएस और भाजपा का रिश्ता बेहद गहरा है। आरएसएस को भाजपा का वैचारिक और संगठनात्मक आधार माना जाता है। भाजपा के कई प्रमुख नेता, जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह आरएसएस से जुड़े रहे हैं। संघ की विचारधारा और दिशा-निर्देश भाजपा की नीतियों और कार्यों में अहम भूमिका निभाती हैं। दोनों संगठनों के बीच तालमेल से ही भाजपा की रणनीतियां बनती हैं।
आरएसएस का प्रमुख "सरसंघचालक" कहलाता है। यह संगठन का सबसे ऊंचा पद है। सरसंघचालक का चुनाव आरएसएस के बड़े और वरिष्ठ नेताओं द्वारा किया जाता है। यह चुनाव एक बार ही होता है, और चुना गया व्यक्ति जीवनभर के लिए इस पद पर रहता है।
आरएसएस का प्रमुख ("सरसंघचालक" कहा जाता है,) का चयन एक ख़ास प्रक्रिया से होता है। यह प्रक्रिया इस प्रकार है:
-आंतरिक सहमति: आरएसएस के वरिष्ठ नेता आपस में चर्चा करके एक सर्वसम्मति से नए प्रमुख का चुनाव करते हैं। इसमें कोई बाहरी चुनाव नहीं होते।
-अनुभव और सेवा: जिस व्यक्ति को सरसंघचालक चुना जाता है, वह आमतौर पर संघ में लंबे समय से काम कर रहा होता है और उसकी सेवाओं का सम्मान किया जाता है।
-आदर्श और निष्ठा: नया प्रमुख संघ की विचारधारा को अच्छी तरह समझता है और उसे आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध होता है।
-औपचारिक घोषणा: जब एक नया सरसंघचालक चुना जाता है, तो संघ इसकी औपचारिक घोषणा करता है। यह प्रक्रिया संघ के अनुशासन और पारदर्शिता को दर्शाती है।
अभी के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत हैं। उन्होंने 21 मार्च 2009 को इस पद की ज़िम्मेदारी संभाली थी। डॉ. भागवत का जन्म 11 सितंबर 1950 को चंद्रपुर, महाराष्ट्र में हुआ था। वे आरएसएस में कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं और उनकी नेतृत्व क्षमता को सबने सराहा है। सरसंघचालक का पद बहुत महत्वपूर्ण होता है और उनके नेतृत्व में, आरएसएस अपने कार्यों को सफलतापूर्वक आगे बढ़ाता है।
1.नेतृत्व करना: सरसंघचालक आरएसएस के सभी कार्यों का नेतृत्व करते हैं। वे यह सुनिश्चित करते हैं कि संघ अपने उद्देश्य और सिद्धांतों के अनुसार काम करे।
2.दिशा-निर्देश देना: वे संघ की दिशा तय करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि सभी सदस्य संघ की नीतियों का पालन करें।
3. प्रेरित करना: वे संघ के सदस्यों को प्रेरित करते हैं और उन्हें समाज की सेवा के लिए तैयार करते हैं।
4.निर्णय लेना: सरसंघचालक संघ की बड़ी योजनाओं और फैसलों पर अंतिम निर्णय लेते हैं।
5.संवाद करना: वे समाज के विभिन्न हिस्सों के साथ बातचीत करते हैं और संघ की विचारधारा को बढ़ावा देते हैं।
Updated on:
14 Jun 2024 04:11 pm
Published on:
14 Jun 2024 04:07 pm
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