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SCs, STs creamy layer Reservation : ओबीसी में पहले से ही सब-कैटेगरी , आंध्रप्रदेश में SC को कर दिया था 4 भागों में विभाजित

सुप्रीम कोर्ट ने अपने ताजा फैसले में चिन्नैया मामले के इसी फैसले को पलटा है। चिन्नैया मामले में पांच जजों की पीठ ने माना कि अनुसूचित जाति श्रेणी का उप-वर्गीकरण स्वीकार्य नहीं है। अदालत ने इस मामले में आंध्र प्रदेश अनुसूचित जाति (आरक्षण का युक्तिकरण) अधिनियम, 2000 को असंवैधानिक माना

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SCs, STs creamy layer Reservation : सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति-जनजाति (एससी-एसटी) में सब कैटेगरी बनाने के राज्यों के अधिकार को भले ही अब जायज माना हो लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में पहले से ही पिछड़ा(बीसी), अति-पिछड़ा(एमबीसी), विशेष पिछड़ा (एसबीसी) जैसी सब कैटेगरी बनाने की व्यवस्था है। सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले में ओबीसी के वर्गीकरण को उचित ठहराया था। चिन्नैया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इंद्रा साहनी का निर्णय अनुसूचित जाति के उप वर्गीकरण पर लागू नहीं होता है, क्योंकि निर्णय में स्वयं निर्दिष्ट किया गया है कि ओबीसी का उपविभाजन अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों पर लागू नहीं होता है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने ताजा फैसले में चिन्नैया मामले के इसी फैसले को पलटा है। चिन्नैया मामले में पांच जजों की पीठ ने माना कि अनुसूचित जाति श्रेणी का उप-वर्गीकरण स्वीकार्य नहीं है। अदालत ने इस मामले में आंध्र प्रदेश अनुसूचित जाति (आरक्षण का युक्तिकरण) अधिनियम, 2000 को असंवैधानिक माना। उस कानून ने अनुसूचित जातियों के बीच आरक्षण के लाभ को इस आधार पर चार समूहों में विभाजित किया था कि विभिन्न जातियों में परस्पर पिछड़ापन है। चिन्नैया मामले में न्यायालय ने माना कि एक बार जब जाति को अनुच्छेद 341(1) के तहत राष्ट्रपति द्वारा एससी-एसटी की सूची में डाल दिया जाता है, तो वह एक समरूप वर्ग बन जाता है, उक्त जाति का कोई और विभाजन नहीं हो सकता।

पंजाब का मामला आया था सुप्रीम कोर्ट में यह था मामला

पंजाब सरकार ने 1975 में आरक्षित सीटों को दो भाग में बांटकर एससी के लिए आरक्षण नीति बनाई थी। एक श्रेणी वाल्मीकि और मजहबी सिखों के लिए और दूसरी श्रेणी अन्य एससी जातियों की थी। यह नीति 30 साल तक लागू रही। इसके बाद साल 2006 में यह मामला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट पहुंचा। हाईकोर्ट ने ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2004 के फैसले के आधार पर इस नीति को रद्द कर दिया गया। इस पर पंजाब सरकार 2006 में वाल्मीकि और मजहबी सिखों को कोटा देने के लिए फिर एक नया कानून बनाया। इसे 2010 में फिर से हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने नए कानून को भी रद्द कर दिया तो मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने 2020 में पाया कि चिन्नैया मामले के फैसले पर एक बड़ी बेंच में फिर से विचार की जरूरत है। इसके बाद सीजेआइ के नेतृत्व में सात जजों की बेंच बनाई गई। बेंच ने जनवरी 2024 में तीन दिन तक मामले की सुनवाई कर फरवरी में फैसला सुरक्षित रख लिया।

पूर्व जज बोले, पाथब्रेकिंग…वंचितों को लाभ होगा

पहली बार वर्गीकरण
पहली बार एससी-एसटी में वर्गीकरण होगा, जिसके लिए सेवाओं में प्रतिनिधित्व देखना होगा। इस फैसले में मान लिया कि एससी-एसटी में वर्गीकरण बराबरी की अवधारणा के विपरीत नहीं है। उप वर्गीकरण पिछड़ापन देखकर होगा। सवाल है कि अनुसूचित जाति में ढेरों जातियां है, ऐसे में इस फैसले की पालना के लिए जातियों का नए सिरे से सेवाओं में प्रतिनिधित्व देखना होगा। इसके साथ ही संविधान के अनुच्छेद 335 में प्रशासनिक दक्षता पर असर देखना होगा।

गोविंद माथुर, पूर्व मुख्य न्यायाधीश, इलाहाबाद हाईकोर्ट

सब एक जैसे पिछड़े नहीं माने जाएंगे
सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस दृष्टि से पाथब्रेकिंग है कि इससे एससी-एसटी मतलब सब एक समान पिछड़े की अवधारणा समाप्त होगी। सरकार के पास डेटा है तो उपश्रेणी बनाई जा सकती हैं, क्योंकि अंतिम छोर पर बैठा व्यक्ति गरीब बना हुआ है। फैसले में माना कि आरक्षण उन लोगों के लिए है, जो उठ ही नहीं पाए। राजस्थान में कुछ जातियों को आरक्षण का लाभ मिलता ही नहीं है, एक ही वर्ग आगे जा रहा है। अब राज्यों को देखना होगा कि कौन ऊपर उठ गया? इस फैसले से जातिगत जनगणना की मांग को बल मिलेगा, क्योंकि इसकी पालना के लिए पहले जाति की स्थिति देखनी होगी। जो जातियां आगे बढ़ गईं हैं, उन्हें धक्का भी लगेगा।

सुनील अंबवाणी, पूर्व चीफ जस्टिस, राजस्थान हाईकोर्ट

एससी-एसटी में बढ़ेगा संघर्ष
इस फैसले से एससी-एसटी के भीतर संघर्ष बढ़ेगा और समाज आरक्षण विहीन व्यवस्था की ओर बढ़ेगा। राजस्थान में टीएसपी क्षेत्र के खाली पद वहां के सामान्य वर्ग को मिलते हैं, नॉन टीएसपी के आदिवासियों को नहीं मिलते। आरक्षण की स्थिति में बदलाव करना है तो राज्यों को बदलाव के लिए स्वतंत्र करना होगा और उसके लिए संविधान के अनुच्छेद 341 व 342 में बदलाव करना होगा। इस फैसले से एससी-एसटी में भी जातियों के ओबीसी की तरह ग्रुप बन जाएंगे और ग्रुपिंग में राजनीति होगी। जब आज सब जातियां एक साथ है तब ही रोस्टर का संधारण नहीं हो रहा तो कई समूह बन जाने पर कैसे होगा? जिन जातियों की आबादी एक फीसदी से कम है, उनका रोस्टर के हिसाब से आरक्षण में कब नंबर आएगा।

गोविंद सिंह सोमावत, पूर्व निदेशक, राष्ट्रीय एससी-एसटी आयोग

सभी को मिलेगा लाभ
आरक्षण की अवधारणा समाज में समानता लाना है। लेकिन अभी भी एससी-एसटी वर्ग में कई समूहों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है। वे असमानता की स्थिति में खड़े हुए हैं। देखा गया है कि एक समूह मल्टीपल आरक्षण का लाभ लेकर ऊपर आ गया। दूसरा समूह अब भी पिछड़ेपन का शिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने उसी वंचित वर्ग की चिंता की है। इस फैसले से उन उपजातियों को भी आगे बढ़ने का मौका मिलेगा, जो शैक्षणिक और आर्थिक रूप से कमजोर है। इस ऐतिहासिक फैसले से आरक्षण का लाभ सक्षम समूहोंं तक सीमित नहीं रह जाएगा।
रिटायर्ड जस्टिस एस. के. पालो, उप लोकायुक्त मप्र