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कुछ जज बिना वजह कॉफी ब्रेक लेते हैं, Supreme Court ने हाईकोर्ट के जजों के परफॉर्मेंस की जांच का रखा प्रस्ताव

जस्टिस कांत ने हाई कोर्ट के जजों को लेकर कहा, कुछ जज हैं जो काफी हार्ड वर्क करते हैं, लेकिन कुछ जज ऐसे भी हैं जो गैर जरूरी कॉफी ब्रेक लेते हैं, कभी कोई-कभी कोई ब्रेक लेते हैं. फिर लंच के लिए जो घंटा दिया जाता है वो किस काम का है. हमें हाई कोर्ट के जजों के खिलाफ काफी शिकायतें मिल रही हैं

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भारत

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Siddharth Rai

May 14, 2025

झारखंड हाईकोर्ट में आपराधिक अपीलों के फैसले में लगभग 3 साल की देरी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने यह जानने की इच्छा जताई कि देश के सभी हाईकोर्ट कितना काम कर रहे हैं और उनका "परफॉर्मेंस आउटपुट" (काम की गुणवत्ता और मात्रा) क्या है। कोर्ट ने कुछ जजों के बार-बार चाय और कॉफी ब्रेक लेने की आदत पर भी सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि अगर जज सिर्फ लंच ब्रेक लें और लगातार काम करें, तो उनका प्रदर्शन और फैसलों की गुणवत्ता बेहतर हो सकती है।

जजों के बार-बार चाय ब्रेक लेने पर उठाए सवाल

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, "हम एक बड़ा मुद्दा उठाना चाहते हैं, हाईकोर्ट का असली आउटपुट क्या है? हम न्याय प्रणाली पर बहुत पैसा खर्च करते हैं, लेकिन असल में हमें कितना काम मिलता है? कुछ जज बहुत मेहनत करते हैं, जिन पर हमें गर्व है, लेकिन कुछ अन्य जज निराश करते हैं। वे बार-बार चाय, कॉफी या दूसरे ब्रेक के लिए उठते हैं, जबकि उन्हें सिर्फ लंच ब्रेक की ज़रूरत होनी चाहिए। लगातार काम करने से नतीजे बेहतर होंगे।"

इस फैसले के बाद उठे सवाल

यह बात उस समय कही गई जब जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ (दो जजों वाली पीठ) चार दोषियों की अपील पर सुनवाई कर रही थी। इन चारों की अपील पर झारखंड हाईकोर्ट ने 2-3 साल पहले सुनवाई पूरी कर ली थी और फैसला सुरक्षित रख लिया था, लेकिन आदेश नहीं सुनाया गया था।

बाद में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद तीन दोषियों को बरी कर दिया गया और चौथे के मामले में जजों की राय अलग थी। फिर भी, चारों को जेल से रिहा करने का आदेश दिया गया। इस मामले को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसले सुनाने में देरी के बड़े मुद्दे पर ध्यान दिया। कोर्ट ने कहा कि निर्णय सुनाने की तय समय-सीमा का पालन जरूरी है और इसके लिए कुछ नई व्यवस्था भी बनाई जाएगी।

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आदेश के बाद याचिकाकर्ताओं की वकील फौजिया शकील ने सुप्रीम कोर्ट का धन्यवाद किया और कहा कि यह मामला व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार पर सीधा असर डालता है। यदि समय पर फैसला आ जाता, तो याचिकाकर्ता तीन साल पहले ही जेल से बाहर हो सकते थे। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने भी कहा कि इस मामले से पीठ भी बहुत निराश है। पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से जानकारी मांगी थी कि 31 जनवरी 2025 तक जिन मामलों में फैसला सुरक्षित रखा गया है, उनमें से अब तक कितनों में आदेश नहीं सुनाया गया है।