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फिर तो मुझे भी जेल में होना चाहिए- उमर खालिद और सैफी को बेल नहीं मिलने पर योगेंद्र यादव ने लिखा

सामाजिक कार्यकर्ता और स्वराज इंडिया के नेता योगेंद्र यादव ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' में लिखे कॉलम में न केवल उमर खालिद और अन्य अभियुक्तों की स्थिति पर दुख जताया, बल्कि भारत की कानून व्यवस्था और न्याय प्रणाली की खामियों को भी उजागर किया है।

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भारत

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Siddharth Rai

Sep 06, 2025

सामाजिक कार्यकर्ता उमर खालिद और स्वराज इंडिया के नेता योगेंद्र यादव (Photo - Umar khalid-Yogendra Yadav/X)

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के पूर्व छात्र नेता और सामाजिक कार्यकर्ता उमर खालिद की जमानत याचिका खारिज होने के बाद योगेंद्र यादव ने इस मसले पर टिप्पणी की है। यादव ने कहा है कि जिस वजह से खालिद को जेल में रखा गया है, उस वजह के आधार पर तो मुझे भी जेल में होना चाहिए था। उन्होंने इस मामले में भेदभाव का भी आरोप लगाया और कहा कि चार्जशीट में नाम होने के बावजूद उन्हें पांच साल में पूछताछ के लिए भी नहीं बुलाया गया है।

बता दें कि खालिद पांच साल से दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं। उन पर 2020 के दिल्ली दंगों में कथित रूप से संलिप्तता का आरोप है। हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने उमर खालिद, शरजील इमाम और सात अन्य लोगों की जमानत याचिका खारिज कर दी।

सामाजिक कार्यकर्ता और स्वराज इंडिया के नेता योगेंद्र यादव ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' में लिखे कॉलम में न केवल उमर खालिद और अन्य अभियुक्तों की स्थिति पर दुख जताया, बल्कि भारत की कानून व्यवस्था और न्याय प्रणाली की खामियों को भी उजागर किया है।

योगेंद्र यादव ने लिखा, "अगर उमर केवल यह कहने के लिए जेल में हैं कि CAA मुसलमानों के खिलाफ है, तो मुझे भी जेल में होना चाहिए। अगर खालिद CAA के खिलाफ स्थानीय प्रदर्शनों के समन्वय के लिए जेल में हैं, तो मुझे भी होना चाहिए। दरअसल, दिल्ली पुलिस द्वारा दाखिल चार्जशीट में मुझे भी एक प्रमुख साज़िशकर्ता बताया गया था और मेरे नाम पर फ़िल्मी खलनायक 'मोगैम्बो' जैसी डायलॉगबाज़ी लिख दी गई थी। जज खुद से यह सवाल पूछ सकते थे कि अगर दिल्ली पुलिस अपनी साज़िश की थ्योरी को गंभीरता से लेती है, तो फिर उन्होंने मेरे खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? पांच साल में मुझे एक बार भी पूछताछ के लिए क्यों नहीं बुलाया गया?"

यादव ने रागिनी तिवारी, प्रदीप सिंह, यति नरसिंहानंद, दिल्ली सरकार के मंत्री कपिल मिश्रा और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के भाषणों की भी याद दिलाई। उन्होंने लिखा, "इतिहास यह भी दर्ज करेगा कि जब जज उमर खालिद के भाषणों में साम्प्रदायिक उकसावे के सबूत खोजने में उलझे रहे, तब उन्होंने कुछ बेहद साफ़ और सीधे वीडियो पर ध्यान ही नहीं दिया। इतिहास यह भी लिखेगा कि जिन आरोपियों को पांच साल से अधिक समय तक ज़मानत से वंचित रखा गया, उसी देश में रेप के दोषी गुरमीत राम रहीम को आठ सालों में 14 बार जेल से बाहर आने की अनुमति दी गई।"

योगेंद्र यादव ने यह कहते हुए कि एक ज़मानत का मामला, जिसे महज़ एक हफ़्ते में निपट जाना चाहिए था, महीनों तक अटका रहा और यह सिलसिला एक बार नहीं, बल्कि तीन-तीन बार हुआ, याद दिलाया कि कैसे दिल्ली हाई कोर्ट के दो जजों ने सुनवाई पूरी होने के बाद आदेश तो सुरक्षित रख लिया, लेकिन महीनों तक फ़ैसला सुनाया ही नहीं। इसी बीच दोनों को अन्य हाई कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश बनाकर पदोन्नति और तबादला दे दिया गया, और इस केस में कोई आदेश जारी नहीं हुआ। आख़िरी आदेश भी सुनवाई के दो महीने बाद तक सुरक्षित रखा गया और फिर सुनाया गया, वह भी तब, जब जस्टिस शालिंदर कौर की सेवानिवृत्ति में केवल तीन दिन बचे थे।"

योगेंद्र यादव ने निजी अनुभव के आधार पर लिखा, "मुझे इस मामले में कुछ व्यक्तिगत जानकारी है, खासकर उमर खालिद और खालिद सैफी के बारे में, जिनके साथ मैंने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) विरोधी प्रदर्शनों के दौरान काम किया था। जो कोई भी उमर खालिद को जानता है, वह यह समझ सकता है कि उनके अंदर साम्प्रदायिकता का लेशमात्र भी नहीं है। वे इस आंदोलन के एक विचारक और प्रतिनिधि थे और जनवरी व फरवरी 2020 में ज़्यादातर समय दिल्ली से बाहर ही रहे। दिल्ली के प्रदर्शनों से वे दूरी बनाए हुए थे।"

उन्होंने खालिद सैफी के बारे में कहा, "इसी तरह, खालिद सैफ़ी, जो पूर्वी दिल्ली में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों में समान रूप से लोकप्रिय कार्यकर्ता रहे हैं, सबसे अधिक इस बात को लेकर चिंतित थे कि विरोध प्रदर्शन किसी भी तरह टकराव की दिशा में, हिंसा की ओर तो बिल्कुल भी, न जाये। मैं कल्पना भी नहीं कर सकता कि उनका किसी भी साम्प्रदायिक हिंसा से दूर-दूर तक कोई संबंध हो। मुझे यकीन है कि यह बात अन्य आरोपियों पर भी लागू होती है, हालांकि उनके मामलों में मैं व्यक्तिगत जानकारी या अनुभव के आधार पर कुछ नहीं कह सकता।"

यादव ने अपना यह लेख सोशल मीडिया पर भी पोस्ट किया है। इस पर लोगों ने तरह-तरह के कमेंट भी किए हैं। हम कुछ चुनिंदा कमेंट्स यहां दे रहे हैं:

वेटुरी चिरंजीवी नाम की एक यूजर ने लिखा, "आश्चर्य की बात है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर स्वतः संज्ञान क्यों नहीं ले सकता। न्याय में देरी और न्याय न मिलने का एक उत्कृष्ट उदाहरण।" एक अन्य यूजर ने लिखा, "क्या जेएनयू में जो देश विरोधी नारे लगे थे उसमें उमर नहीं था? क्या सरजील ने नॉर्थ ईस्ट को देश से अलग करने की बात नहीं कही थी?" क्रिटिक नाम के यूजर ने लिखा, "जब आपको अदालत पर भरोसा नहीं है, तो जमानत के लिए स्प्रीम कोर्ट क्यों जा रहे हो।" निशांत नाम के एक यूजर ने लिखा, "देश में अघोषित आपातकाल लगा हुआ है, सरकार की आलोचना या विरोध करने वालों को जेल में कैद किया जा रहा है।"