
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को एक अहम फैसले में हाईकोर्ट जजों से यह सुनिश्चित करने को कहा कि यदि वे अदालत में मुकदमे के निर्णय का केवल ऑपरेटिव भाग सुनाते हैं पूरा निर्णय दो से पांच दिन में जारी किया जाना चाहिए। यदि जज की व्यस्तता के कारण यह संभव नहीं हो तो फैसला सुरक्षित रखना चाहिए। जस्टिस दीपाकंर दत्ता और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की बेंच ने गुजरात हाईकोर्ट के आदेश से संबंधित मामले में यह व्यवस्था दी जिसमें संबंधित जज ने कोर्ट में फैसले का ऑपरेटिव भाग सुनाने के एक साल बाद पूरा निर्णय जारी किया। इस निर्णय का दिनांक ऑपरेटिव भाग सुनाने का ही बताया गया। सुप्रीम कोर्ट ने इसे कानून का घोर उल्लंघन बताया और हाईकोर्ट जज को मौखिक आदेश वापस लेने और हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को मुकदमा दूसरी बेंच को समक्ष रखने के निर्देश दिए। कोर्ट ने कहा कि फैसला सुनाने के बारे में हाईकोर्ट जजाें को तीन विकल्पों में से किसी एक को चुनना चाहिए। या तो वे खुली अदालत में फैसला सुनाएं या फैसला सुरक्षित रखें या फिर केवल ऑपरेटिव भाग सुनाकर यह बताएं कि फैसले के कारण (विस्तृत आदेश) दो से पांच दिन में कब बताए जाएंगे।
शीर्ष अदालत ने इसे खेदजनक बताया कि हाईकोर्ट जज को एक साल बात यह एहसास हुआ कि वे याचिका खारिज करने का कारण बताने में चूक गए। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसले से पहले उस दिन की हाईकोर्ट की लाइव स्ट्रीमिंग भी देखी जिस दिन जज ने फैसले का ऑपरेटिव भाग सुनाया था। जस्टिस दीपांकर दत्ता द्वारा लिखे गए फैसले में हाईकोर्ट जजों के कुछ उदाहरण देते हुए इसे चिंताजनक बताया गया कि उनके व्यवहार ने न्यायपालिका की छवि को कम किया है। उन्होंने इस बात पर भी अफसोस जताया कि अनेक बार आदेश जारी होने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की बाध्यकारी नजीरों का पालन नहीं किया जा रहा।
Published on:
22 Oct 2024 08:20 am
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