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आज गिद्ध दिवस है, जानिए उस बदनाम पक्षी की कहानी जिसने भगवान श्रीराम की सीता को बचाने के लिए रावण से लड़ी थी जंग

International Vulture Awareness Day 2024 : गिद्धों के पेट में बहुत ज्यादा एसिड होता है। यह एसिड इतना शक्तिशाली होता है कि यह बोटुलिज़्म और हैजा जैसे विष को पचा सकता है। पक्षी विशेषज्ञों साफ कहते हैं कि जहां भी गिद्धों की आबादी खत्म हुई वहां पशुओं और मनुष्यों में बीमारियों में बढ़ गई।

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गिद्ध…नाम सुनते ही एक ऐसे पक्षी की आकृति मानव के मन मस्तिष्क में उभरती है जो मांस नोच नोच कर खा रहा होता है। बोलचाल की भाषा में तंज कसने के लिए भी प्रयोग होना लगा है कि क्या आप गिद्ध हो गए हैं लेकिन असली तस्वीर यह नहीं है। यह लोग भूल जाते हैं यह वही पक्षी है जिसने राक्षसराज रावण का रास्ता रोका था। माता सीता के अपहरण को बचाने के लिए रावण से लड़ गया था और अंत में प्रभु श्री राम की गोद में सूचना देने के बाद प्राण का त्याग किया था। यह तो त्रेता युग की कहानी थी।

अब बात कालयुग यानी हमारे युग की। जिसमें यह पक्षी एक बार फिर से अपने जीवन को लेकर संघर्ष कर रहा है। विलुप्त प्राय हो चुका है और इसे बचाने के लिए मुहीम चल रही है। हर साल 'अंतरराष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस' सितंबर महीने के पहले शनिवार को मनाया जा रहा है। इसका उद्देश्य विलुप्त होते गिद्धों की रक्षा करना और उनके बारे में जागरूकता फैलाना है। यह एक ऐसा पक्षी है जिसे हमेशा गलत समझा जाता है।

गिद्ध के पेट में होता है ऐसा रसायन की पचा जाते हैं हैजा और एंथ्रेक्स

गिद्ध पर्यावरण संरक्षण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। गिद्ध प्रकृति की सफाई में अहम भूमिका निभाते हैं। वह मरे हुए जानवरों का मांस खाकर एंथ्रेक्स और रेबीज जैसी बीमारियों को फैलने से रोकने में मदद करते हैं। गिद्धों के पेट में बहुत ज्यादा एसिड होता है। यह एसिड इतना शक्तिशाली होता है कि यह बोटुलिज़्म और हैजा जैसे विष को पचा सकता है। पक्षी विशेषज्ञों साफ कहते हैं कि जहां भी गिद्धों की आबादी खत्म हुई वहां पशुओं और मनुष्यों में बीमारियों में बढ़ गई। मानव में गलतफहमियों, दवा निर्माण और मानवीय गतिविधियों के कारण इनकी आबादी लगातार कम होती जा रही है।

मुहावरे और कहावतों के कारण सोच हुई नकरात्मक

सभी मुहावरे और कहावतें के कारण गिद्धों के बारे में नकारात्मक सोच इंसानों में कितनी गहराई तक समाई हुई है। मानव संस्कृति ने गिद्धों को लालच, शोषण और अवसरवाद के प्रतीक में बदल दिया है। "गिद्ध मानसिकता के लोग : किसी ऐसे व्यक्ति का वर्णन करना जो लाभ उठाने के लिए दूसरों के असफल होने का इंतजार करता है। गिद्ध की तरह चक्कर लगाना यानी लोग लाभ उठाने के लिए बुरी घटनाओं के घटित होने की प्रतीक्षा करते हैं। ऐसे कई नकारात्मक मुहावरे और कहावतें लोगों के मन में गिद्धों के प्रति नकारात्मकता भर चुकी हैं।

गिद्ध संरक्षण हुआ बहुत जरूरी

अंतरराष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस पर अपनी मानसिकता बदलें और गिद्धों को पर्यावरण संरक्षण के रूप में देखते हुए उनके संरक्षण के लिए उचित कदम उठाएं। हमें प्रजनन कार्यक्रमों, हानिकारक पदार्थों पर प्रतिबंध लगाने और उनके वास्तविक मूल्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने के माध्यम से गिद्ध प्रजातियों के संरक्षण के लिए अपने प्रयासों को तेज करना चाहिए। अब समय आ गया है कि पुरानी नकारात्मक छवियों से आगे बढ़ा जाए और प्रकृति में गिद्धों की महत्वपूर्ण, जीवनदायी भूमिका को स्वीकार किया जाए।