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भारत में एनकाउंटर के लिए है सख्त नियम-कायदे, जानें क्या है सुप्रीम कोर्ट और NHRC की गाइडलाइन

माफिया डॉन अतीक अहमद के फरार बेटे असद अहमद को यूपी एसटीएफ ने झांसी में एक एनकाउंटर में मार गिराया। एनकाउंटर का मतलब क्या होता है? पुलिस किन परिस्थितियों में यह कदम उठाती है तथा सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ह्यूमन राइट कमीशन (NHRC) का इस बारे में क्या सख्त गाइडलाइंस है? कानून इस बारे में क्या कहता है इस लेख के जरिए हम समझने की कोशिश करेंगे ।

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हमारे देश में जब भी गली के किसी छोटे-मोटे गुंडे के हाथ हथियार लग जाता है तो उसके दाम पर वह इलाके में अपनी पैठ जमाने का प्रयास करता है। धीरे-धीरे लोग उससे डरने लगते हैं। उसके खौफ के साए में पूरा इलाका आ जाता है और जब वह इतना बड़ा हो जाता है कि अपना गैंग बना ले, तब उसके लिए सबसे आसान होता है विधायक या सांसद बनना। इसी तरह का एक गुंडा जो पहले माफिया और बाद में राजनेता बना अतीक अहमद के बेटे असद अहमद और शूटर गुलाम को यूपी पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स ने झांसी में हुए एक एनकाउंटर में मार गिराया। अतीक का बेटा असद माफियागिरी में ही अपना कैरियर बनाना चाहता था। लेकिन वक्त से पहले ही उसे धरती को छोड़कर जाना पड़ा। क्योंकि पुलिस जब अपने पर आ जाती है, तब ऐसे दो टके के गुंडों को सबक सिखाने में कोई देर नहीं लगाती।

लेकिन इस एनकाउंटर के बाद से ही सवाल उठने लगे हैं कि आखिर हमारे देश में एनकाउंटर के लिए क्या कानून है? क्या इसके लिए कोई नियम बनाए गए हैं और देश में इसको लेकर मानव अधिकारों के प्रति सजग रहने वाली संस्था NHRC और भारत की सुप्रीम कोर्ट द्वारा पुलिस को क्या दिशा-निर्देश दिए गए हैं।

सबसे पहले आपको बता दें कि संविधान और कोर्ट दोनों ही पुलिस के एनकाउंटर हो गलत ठहराते हैं। इस तरह के कई मामलों में पुलिस वालों को सजा भी मिल चुकी है। लेकिन हाल के दिनों में एनकाउंटर के मामले काफी तेजी से बढ़ रहे हैं। उसकी वजह बढ़ता क्राइम रेट है। वैसे एनकाउंटर शब्द भारत से ही निकला है।

एनकाउंटर दो तरह के होते हैं

हमारे देश में आमतौर पर दो तरह के एनकाउंटर होते हैं। पहला जिसमें कोई खतरनाक अपराधी पुलिस या सुरक्षा बलों की कस्टडी से भागने की कोशिश करता है। ऐसे में पुलिस को उसे रोकने या पकड़ने के लिए फायरिंग का इस्तेमाल करना होता है।

दूसरा एनकाउंटर वह होता है जब पुलिस किसी अपराधी को पकड़ने जाती है तो बचने के लिए जब वह भागता है तो पुलिस जवाबी कार्रवाई करती है। या जब अपराधी पुलिस से बचने के लिए किसी हथियार से हमला करती है, तो पुलिस भी जवाबी कार्रवाई करने के लिए उस पर हथियारों का प्रयोग करती है।

एनकाउंटर को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के क्या है निर्देश

1. सुप्रीम कोर्ट की पहली का गाइडलाइन कहती है, जब भी पुलिस को कोई ख़ुफ़िया जानकारी मिलती है, तो कोई भी एक्शन लेने से पहले पुलिस को इस इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में दर्ज करना अनिवार्य है।
2.अगर कोई भी व्यक्ति पुलिस कार्रवाई में मारा जाता है तो कार्रवाई में शामिल पुलिसकर्मियों के खिलाफ तत्काल प्रभाव से अपराधिक एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए। एफआईआर दर्ज होने के बाद हुई घटना की स्वतंत्र जांच की जानी चाहिए।
3.घटना की जांच सीआईडी या किसी दूसरे पुलिस स्टेशन द्वारा की जानी चाहिए और जांच पूर्णतः निष्पक्ष हो इस बात का पूरा ख्याल रखा जाना चाहिए।
4.जांच में अपराधी अपराध और घटना का पूरा विवरण लिखित में हर एक बिंदु विस्तार सहित उपलब्ध होना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में पुलिस एनकाउंटर की स्वतंत्र मजिस्ट्रेट जांच बहुत जरूरी है। घटना के बाद घटना की पूरी रिपोर्ट मजिस्ट्रेट के साथ साझा की जानी बहुत जरूरी है। यह सुप्रीम कोर्ट का चौथा गाइडलाइन है।5.एनकाउंटर के बाद घटना की पूरी रिपोर्ट पूरे विस्तार से घटना के अधिकार क्षेत्र में आने वाली स्थानीय कोर्ट के साथ लिखित में साझा की जानी चाहिए।
6. अगर मुठभेड़ में अपराधी घायल होता है तो चिकित्सा सुविधा दी जानी चाहिए।
7.अपराधी की मौत पर परिजनों को सूचित करें।
8.एनकाउंटर में हुई मौतों में शामिल पुलिस अधिकारियों को शौर्य पुरस्कार नहीं दिया जाना चाहिए।
9.गलत या फर्जी मुठभेड़ में दोषी पाए जाने वाले पुलिसकर्मियों को निलंबित कर उनके खिलाफ उचित कार्रवाई की जाती है।

मानवाधिकार आयोग (NHRC) द्वारा क्या नियम बनाए गए

1.जब किसी पुलिस स्टेशन के इंचार्ज को किसी पुलिस एनकाउंटर की जानकारी प्राप्त हो तो वह इसे तुरंत रजिस्टर में दर्ज करें।
2. जैसे ही किसी एनकाउंटर की सूचना मिले और फिर उस पर किसी तरह की शंका जाहिर की जाए तो उसकी गहन जांच करना जरूरी है।
3.जांच में दूसरे पुलिस स्टेशन की टीम या राज्य की सीआईडी की टीम होनी जरूरी है।
4.अगर जांच में पुलिस अधिकारी दोषी पाए जाते हैं तो हर हाल में मारे गए लोगों के परिजन को उचित मुआवजा मिलना चाहिए। ताकि उनका भविष्य अंधकार में ना हो।
5.जब भी किसी पुलिस पर किसी तरह के गैर-इरादतन हत्या के आरोप लगे, तो उसके खिलाफ आईपीसी के तहत मामला दर्ज होना चाहिए और घटना में मारे गए लोगों की 3 महीने के भीतर मजिस्ट्रेट जांच होनी चाहिए।