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पहले ठीक से पढ़कर आइए…दिल्ली हाईकोर्ट ने वकील को लगाई फटकार, सेना से जुड़ी याचिका खारिज

Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका के तहत सेना में गुज्जर रेजिमेंट बनाने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। इस दौरान मुख्य न्यायाधीश ने वकील को कड़ी फटकार भी लगाई।

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Delhi High Court: पहले ठीक से पढ़कर आइए...दिल्ली हाईकोर्ट ने वकील को लगाई फटकार, सेना से जुड़ी याचिका खारिज

दिल्ली हाईकोर्ट ने वकील को लगाई फटकार, सेना से जुड़ी याचिका खारिज। (फोटो : AI)

Delhi High Court: दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को एक जनहित याचिका खारिज कर दी। इस याचिका में केंद्र सरकार को भारतीय सेना में 'गुज्जर रेजिमेंट' गठित करने का आदेश देने की मांग की गई थी। मामले में सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने इसे “पूरी तरह से विभाजनकारी” करार दिया। साथ ही वकील को फटकार लगाते हुए कहा “कोर्ट में कोई भी याचिका लगाने से पहले कुछ शोध कर लिया करें। अगर कानून की ठीक से पढ़ाई करके आते तो ऐसा नहीं होता।”

इस दौरान पीठ का मूड भांपते हुए वकील ने तुरंत याचिका वापस ले ली। मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि इस तरह की याचिकाएं दाखिल करने से पहले विधिक शोध और संवैधानिक समझ आवश्यक है। पीठ ने याचिका पर टिप्पणी करते हुए कहा “कृपया समझें कि आप देश के सैन्य ढांचे में सबसे बड़े बदलाव की मांग रहे हैं। आप हमें यह बताएं कि किस कानून के तहत ऐसी जाति आधारित रेजिमेंट की मांग को कानूनी मान्यता मिलती है? क्या आपके पास ऐसा कोई संवैधानिक अधिकार है जो आपको इसकी अनुमति देता हो?”

भारतीय सेना में जाति आधारित रेजिमेंट की उठाई थी मांग

दिल्ली हाईकोर्ट में यह याचिका रोहन बसोया नामक युवक ने दाखिल की थी। इसमें तर्क दिया गया था कि भारतीय सेना में ऐतिहासिक रूप से जाति आधारित रेजिमेंट की परंपरा रही है। जैसे सिख, जाट, राजपूत, गोरखा और डोगरा रेजिमेंट आदि हैं। याचिकाकर्ता का दावा था कि गुज्जर समुदाय का भी सैन्य इतिहास गौरवशाली रहा है। ऐसे में भारतीय सेना में उन्हें एक समर्पित रेजिमेंट से वंचित रखना संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 16 (समान अवसर का अधिकार) का सीधा-सीधा उल्लंघन है।

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याचिका में यह भी कहा गया था कि गुज्जर समुदाय ने 1857 की क्रांति, भारत-पाक युद्ध (1947, 1965, 1971, और 1999) और जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके बावजूद उन्हें आज तक भारतीय सेना में एक अलग रेजिमेंट नहीं दी गई। जो अन्य समुदायों के लिए पहले से अस्तित्व में है। बसोया की याचिका में मांग की गई थी कि केंद्र सरकार एक उच्चस्तरीय समिति गठित करे जो गुज्जर रेजिमेंट की व्यवहारिकता और आवश्यकता का अध्ययन करे और उसके आधार पर रेजिमेंट की स्थापना को लेकर नीति बनाई जाए।

याचिकाकर्ता ने अदालत में दिया ये तर्क

याचिकाकर्ता का तर्क था कि गुज्जर समुदाय सीमावर्ती राज्यों जैसे जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड और पंजाब में अच्छी खासी संख्या में मौजूद है। इसलिए एक समर्पित रेजिमेंट, आतंकवाद विरोधी अभियानों और सीमाओं की सुरक्षा में कारगर साबित हो सकती है। हालांकि सुनवाई के दौरान अदालत ने इसे न केवल अव्यावहारिक माना। बल्कि इसे सामाजिक रूप से विभाजनकारी करार दिया। पीठ ने वकील से यह भी कहा कि वे इस प्रकार की याचिकाएं दाखिल करने से पहले संवैधानिक और सैन्य संरचना की समझ जरूर हासिल करें।

दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने वकील को फटकारा

याचिका पर सुनवाई करने के दौरान दिल्‍ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय ने वकील को फटकार लगाई। साथ ही ये पूछा कि किस कानून के तहत ऐसी जाति आधारित रेजिमेंट की मांग को कानूनी मान्यता मिलती है? क्या आपके पास ऐसा कोई संवैधानिक अधिकार है जो आपको इसकी अनुमति देता हो? कोर्ट का तीखा रुख और संभावित जुर्माने की आशंका को भांपते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने तुरंत अपनी याचिका वापस ले ली।

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वकील ने अदालत को बताया कि कोर्ट में मौजूद उनके मुवक्किल अब यह याचिका वापस लेना चाहते हैं। इस पर पीठ ने मामले को निस्तारित करते हुए याचिका को खारिज कर दिया। यह मामला इस बात का उदाहरण है कि कैसे जनहित याचिकाओं का दुरुपयोग, समाज में असंतुलन और भ्रम पैदा कर सकता है। जिसे अदालत ने समय रहते सख्ती से रोक दिया।