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महाराष्ट्र में बड़ा सियासी उलटफेर! कांग्रेस ने धुर-विरोधी पार्टी से मिलाया हाथ, आखिर ऐसी क्या मजबूरी?

Mumbai BMC Election: बीएमसी चुनाव से पहले कांग्रेस और वंचित बहुजन आघाड़ी का अचानक हुआ गठबंधन कई सवाल खड़े कर रहा है। कभी एक-दूसरे पर आरोप लगाने वाले दल अब साथ कैसे? इस राजनीतिक चाल के पीछे क्या है असली वजह, जानिए पूरी कहानी।

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कांग्रेस ने धुर-विरोधी पार्टी से मिलाया हाथ

Mumbai BMC Election: मुंबई की राजनीति एक बार फिर बड़े बदलाव की ओर बढ़ती नजर आ रही है। जैसे-जैसे बीएमसी इलेक्शन पास आ रहे हैं, सियासी संबंधों में भी बदलाव देखने को मिल रहे हैं। रविवार को कांग्रेस ने मुंबई महानगरपालिका चुनाव के लिए वंचित बहुजन आघाड़ी (VBA) के साथ गठबंधन की आधिकारिक घोषणा कर दी है। इस समझौते के तहत कांग्रेस ने VBA को 62 सीटें देने पर सहमति जताई है। माना जा रहा है कि यह गठबंधन कांग्रेस पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है, लेकिन दोनों दलों के बीच पहले से चले आ रहे खटास भरे रिश्तों और प्रकाश आंबेडकर के अनप्रिडिक्टेबल बिहेवियर के चलते इस गठबंधन पर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं।

आंबेड़कर की अनुपस्थिति चर्चा में

इस गठबंधन की जब घोषणा की गई, उस समय प्रकाश आंबेडकर वहां मौजूद नहीं थे और अब उनकी अनुपस्थिति चर्चा का विषय बना हुआ है। हालांकि पार्टी की ओर से बताया गया है कि प्रकाश आंबेडकर कोल्हापुर में पहले से निर्धारित कार्यक्रम में होने की वजह से उपस्थित नहीं हो पाए थे। लेकिन वहीं दूसरी ओर राजनीतिक विशेषज्ञ उनकी राजनीतिक स्ट्रैटिजी को देेख रहे हैं। उनका मानना है कि उनकी राजनीति हमेशा से स्वतंत्र रही है और उनके निर्णयों को लेकर कोई अनुमान नहीं लगाया जा सका है। उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में AIMIM के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और औरंगाबाद सीट पर जीत भी हासिल की, लेकिन बाद में दोनों दलों के बीच मतभेद हो गए और गठबंधन टूट गया। इसके बाद कभी शिवसेना से नजदीकी बढ़ी, तो कभी कांग्रेस से बातचीत हुई, लेकिन कोई भी रिश्ता लंबे समय तक नहीं टिक पाया।

कांग्रेस पर तीखे वार के बाद भी समझौता

पिछले कुछ सालों से प्रकाश आंबेडकर ने कांग्रेस पर कई बार तीखे हमले किए हैं। हाल ही में उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा था कि पार्टी के पास हिंदू वोट नहीं हैं और उसे स्थानीय निकाय चुनावों में केवल आदिवासी इलाकों से ही समर्थन मिलता है। इसके बावजूद कांग्रेस ने टकराव से बचते हुए समझौते का रास्ता चुना। फिलहाल कांग्रेस इस पूरे समझौते में बैलेंस बनाकर चल रही है। पार्टी का मानना है कि अगर दलित वोटों का एक हिस्सा भी एकजुट हो जाता है तो बीएमसी चुनाव में इसका बड़ा असर पड़ेगा।

कांग्रेस के लिए क्यों जरूरी है यह गठबंधन?

मुंबई में कांग्रेस की स्थिति पिछले कुछ सालों में कमजोर हो गई है। पहले वहां पार्टी को रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (RPI) के गुटों से समर्थन मिलता था लेकिन अब उनमें से ज्यादातर बीजेपी के सपोर्ट में चले गए हैं। ऐसे में कांग्रेस के पास दलित वोटों तक पहुंचने के ऑप्शन लिमिटेड हो गए हैं। इसी वजह से उन्होंने VBA के साथ गठबंधन कर वोट बैंक को मजबूत करने की कोशिश की है। कांग्रेस को उम्मीद है कि इस गठबंधन से दलित, अल्पसंख्यक और कुछ हद तक ओबीसी वोटों का समर्थन मिल सकेगा।

दलितों पर फोकस क्यों?

मुंबई में दलितों की भूमिका राजनीति में हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य में SC की संख्या लगभग 1.32 करोड़ है, जो पूरी पॉपुलेशन का 12% है। शहर में लगभग 8 लाख से ज्यादा दलित मतदाता है, जिसमें बड़ी संख्या नव-बौद्ध समुदाय की है। ये लोग पुराने समय से सामाजिक न्याय और आंबेडकरवादी राजनीति से जुड़ा रहा है और यह समुदाय अक्सर संगठित होकर वोट करता है। 2024 के लोकसभा चुनाव में इस समुदाय से कांग्रेस के नेतृत्व वाली पार्टी को काफी वोट मिले थे, लेकिन विधानसभा चुनाव में इनके वोट नहीं मिल पाए थे। वहीं, वंचित बहुजन आघाड़ी पार्टी की दलित और नव-बौद्ध समुदाय में मजबूत पकड़ है।


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