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संसदीय अवरोध कोई समाधान नहीं, बल्कि एक रोग है: धनखड़

-संसद में गतिरोध पर बोले राज्यसभा सभापति

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नई दिल्ली। संसद में अदाणी के साथ मणिपुर और संभल हिंसा पर चर्चा की मांग को लेकर विपक्ष के हंगामे पर राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा कि संसदीय अवरोध कोई समाधान नहीं है, यह एक रोग है। यह हमारी नींव को कमजोर करता है। यह संसद को अप्रासंगिकता की ओर ले जाता है। हमें अपनी प्रासंगिकता बनाए रखनी होगी। जब हम इस तरह के आचरण में संलग्न होते हैं, तो हम संवैधानिक व्यवस्था से भटक जाते हैं।

राज्यसभा में गुरुवार को विपक्षी दलों के हंगामे पर धनखड़ ने सदस्यों से अनुशासन और शिष्टाचार बनाए रखने की अपील की। उन्होंने सदस्यों से संसदीय प्रक्रिया के नियमों का पालन करने का आग्रह करते हुए कहा कि जब हमें राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित होकर 1.4 बिलियन लोगों को एक शक्तिशाली संदेश देना था। उनकी आकांक्षाओं और सपनों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को फिर से पुष्टि करना था और विकसित भारत 2047 की ओर हमारी यात्रा को आगे बढ़ाना था। लेकिन दुख की बात है कि हम इस ऐतिहासिक अवसर को चूक गए। जहां सदन में रचनात्मक संवाद और सार्थक बातचीत होनी चाहिए थी, वहां हम अपने नागरिकों की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर सके। उन्होंने कहा कि यह सदन केवल बहस का मंच नहीं है। यहां से हमारी राष्ट्रीय भावना को गूंजना चाहिए। हंगामा कर हम अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेते हैं। यदि संसद लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करने के अपने संवैधानिक कर्तव्य से भटकती है, तो हमें राष्ट्रवाद को पोषित करना और लोकतंत्र को आगे बढ़ाना चाहिए।

मेरे प्रिय मित्र....जयराम रमेश

राज्यसभा में कांग्रेस सांसद जयराम रमेश के एक प्रश्न के उत्तर में धनखड़ ने कहा, ‘यह एक अच्छा प्रश्न है, जो मेरे प्रिय मित्र जयराम रमेश ने उठाया है। उन्होंने पूछा है कि हम अध्यक्ष को कैसे प्रभावित कर सकते हैं? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है, और इसलिए मैं इसका उत्तर देना चाहता हूं। ऐतिहासिक रूप से हम अध्यक्ष को केवल तभी प्रभावित कर सकते हैं जब हम नियमों के उच्चतम मानकों का पालन करें। जैसा कि मैंने पहले कहा था, अध्यक्ष के निर्णय का सम्मान होना चाहिए, उसे चुनौती नहीं दी जानी चाहिए। नियम इतने व्यापक हैं कि वे हर सांसद को योगदान देने का अवसर प्रदान करते हैं। लेकिन यदि हम ‘मेरा तरीका या कोई तरीका नहीं’ की प्रथा अपनाते हैं, तो यह न केवल अलोकतांत्रिक होगा, बल्कि इस पवित्र मंच के अस्तित्व के लिए एक गंभीर चुनौती बन जाएगा। मुझे कोई संदेह नहीं है कि नियमों से किसी भी प्रकार का विचलन इस मंदिर का अपमान करने के समान है।’