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प्रसंगवश : सबक सिखाने के लिए जनता को याद रखने होंगे क्रूर चेहरे

अब वक्त आ गया है कि उन नेताओं को भी सबक सिखाया जाए, जिनके साथ बदनाम चेहरों की भीड़ होती है। इंदौर. मध्यप्रदेश की राजनीति में बड़ा बवाल इंदौर में हुआ है। पार्षद के घर हमला और ऐसा कुछ शर्मनाक हुआ कि शहर की नजरें शर्म से झुक गईं। हमला कराने का आरोप इसी पार्टी […]

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Indore

इस तरह जीतू के गुंडे पहुंचे थे हमला करने।

अब वक्त आ गया है कि उन नेताओं को भी सबक सिखाया जाए, जिनके साथ बदनाम चेहरों की भीड़ होती है।

इंदौर. मध्यप्रदेश की राजनीति में बड़ा बवाल इंदौर में हुआ है। पार्षद के घर हमला और ऐसा कुछ शर्मनाक हुआ कि शहर की नजरें शर्म से झुक गईं। हमला कराने का आरोप इसी पार्टी के एक अन्य नेता पर है। पार्टी ने इस नेता को बाहर दिखाने का रास्ता जरूर दिखाया है, लेकिन उसने स्थायी सुधार के लिए कोई लाइन प्रस्तुत नहीं की है। मामले में धीमी गति से सही, लेकिन जैसे-जैसे परतें खुल रही हैं, उससे खतरनाक तथ्य सामने आते जा रहे हैं। जिस नेता के कथित इशारे पर गुंडागर्दी की गई, उसके समर्थकों के नाम पर दर्जनों केस पहले से दर्ज हैं। यह घटना इंदौर और प्रदेश के अन्य शहरों के लिए सबक लेने के तौर पर दर्ज होनी चाहिए। इसके लिए जनता को ही आगे आना होगा। यह सच है कि राजनीति और अपराध का गठजोड़ नया नहीं है। जनता का इससे निपटना भी आसान नहीं है। लेकिन, जनता को अब ऐसे चेहरे पहचानने होंगे और उस ‘एकदिन’ तक याद भी रखने होंगे, जिस दिन जनता जनार्दन होती है। आपराधिक तत्वों को तमाम तरह के संरक्षण के बावजूद नेताओं की हमेशा दलील होती है कि भीड़ में उन्हें पता नहीं होता कि कौन साथ आ गया। वाकई इस मासूमियत की और कोई नजीर मिलना दुश्वार है। जनता इन मासूम बयानों के बीच सिर्फ नजर रखे और उस ‘एकदिन’ हिसाब चुकता करे तो गुंडों की गली से गुजरने वाले रहनुमाओं की राह तंग हो जाएगी। यह भी विचार करना होगा कि आखिर क्या वजह है कि ऐसे लोग खुले आम घूमते हैं और हमारे प्रदेश की पुलिस के कान पर जूं तक नहीं रेंगती। कारण साफ है कि सफेदपोश सरपरस्ती के कारण ‘लंबेहाथ’ आम आदमी का गला तो पकड़ लेते हैं, लेकिन इनकी कॉलर तक गिरफ्त में नहीं आती। ऐसे में वार जड़ पर करना होगा। जब ऐसे लोगों की हिमायत करने वालों का सिंहासन नहीं डोलेगा, तब तक तंत्र को समझ नहीं आएगी कि जनता के बिना उनका कोई अस्तित्व नहीं है। राजनीतिक सुधार की दिशा में यह सफर लंबा है, लेकिन मंजिल तक पहुंचना नामुमकिन नहीं है। समाज और आने वाली पीढ़ी के भविष्य के लिए मौजूदा पीढ़ी को यह दायित्व तो निभाना होगा, ताकि, आने वाले वक्त में बीते वक्त की जवाबदेही तय हो तो शर्म से गर्दन न झुके। हम कह सकें कि बदलाव के लिए भले ही दो कदम, लेकिन चले थे। यकीनन इस राह में सभी हमकदम होंगे तो भविष्य का रास्ता खुशगवार और अच्छे लोगों के लिए तैयार कर सकेंगे।

- मोहम्मद रफीक mohammad.rafik@in.patrika.com