5 December 2025,

Friday

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

समकालीन न्यायिक शास्त्र के द्वारा न्यायिक व्यवस्था 25 गुना तेज व 20 गुना ज्यादा पारदर्शी होगी: दीपक शर्मा

ब्रिटेन, जर्मनी व अमेरिका के बाद विश्व का पांचवा न्याय शास्त्र प्रारूप (समकालीन न्यायिक शास्त्र) भारत ने किया जारी।

2 min read
Google source verification
photo6235482041034582423.jpg

नोएडा। 700 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद पूंजीवाद व साम्यवाद अर्थव्यवस्था के समानांतर एच.आर इकॉनमिक मॉडल के साथ-साथ विश्व का पांचवा न्याय शास्त्र प्रारूप, विश्व पटल पर आ चुका है। एच.आर इकोनामिक मॉडल व समकालीन न्याय शास्त्र के जनक दीपक शर्मा का दावा है कि समकालीन न्याय शास्त्र प्रारूप से देश की न्यायिक व्यवस्था 25 गुना तेज व 20 गुना ज्यादा पारदर्शी होगी तथा लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।

दीपक शर्मा ने बताया कि समकालीन न्याय शास्त्र विश्व का अग्रिम श्रेणी का न्याय शास्त्र प्रारूप है। वर्तमान समय की सभी लोकतांत्रिक व न्यायिक व्यवस्था न्याय शास्त्र की ही देन है। न्याय शास्त्र के क्षेत्र में, यह भारत का पहला योगदान है। पहले चार न्याय शास्त्र प्रारूप, एनालिटिकल, हिस्टोरिकल, सोशियोलॉजिकल और रियलिस्टिक न्याय शास्त्र क्रमशः ब्रिटेन जर्मनी और अमेरिका की देन है।

भारत की लोकतांत्रिक व न्यायिक व्यवस्था, उपरोक्त जूरिप्रूडेंस(न्याय शास्त्र) की ही देन है। तथा कंटेंपरेरी जूरिप्रूडेंस, (समकालीन न्याय शास्त्र) भारत की लोकतांत्रिक व न्यायिक जरूरत को पूरा करने के उद्देश्य के लिए लाया गया है। उन्होंने बताया कि भारत द्वारा अपनाई गई ब्रिटिश न्यायिक प्रणाली, भारत की न्यायिक आवश्यकता को पूरा करने में पर्याप्त नहीं होगी। कंटेंपरेरी जूरिप्रूडेंस, का मानना है कि लोकतंत्र सभ्य समाज के लिए एक हथियार की तरह है, उपरोक्त लोकतंत्र को अपनाने के लिए न्याय शास्त्र के बौद्धिक ज्ञान का होना आवश्यक तथा भारत ने न्याय शास्त्र बौद्धिक ज्ञान के बिना, लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाया है। अतः भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था काफी लचर है।

समकालीन न्याय शास्त्र, के प्रभाव से लोकतांत्रिक व्यवस्था को नई दिशा व एक नई प्रणाली भी मिलेगी, उपरोक्त लोकतांत्रिक प्रणाली के प्रभाव से लोकतंत्र व्यवस्था और भी मजबूत होगी ।

समकालीन न्याय शास्त्र का मानव जाति के लिए योगदान-

1. समकालीन न्याय शास्त्र में पहली बार विधानसभा व संसद को समाज का संपूर्ण प्रतिनिधित्व नहीं माना गया है। क्योंकि कंटेंपरेरी जूरिप्रूडेंस का मानना है कि विधायक व सांसद के व्यक्तिगत हित समाज के व्यक्तिगत खेत से अलग होते हैं। अतः समकालीन न्याय शास्त्र में पहली बार तीन श्रेणी लोकतांत्रिक व्यवस्था को बताया गया है। जिसमें समाज, सामाजिक प्रतिनिधित्व तथा विधानसभा/संसद का प्रावधान किया गया है, संभवत इससे लोकतांत्रिक व्यवस्था बेहद सुदृढ़ होगी।

2. समकालीन न्यायशास्त्र में, वर्तमान की वीकेंद्रीय न्यायिक व्यवस्था के समक्ष केंद्रीय न्यायिक व्यवस्था को बताया गया है, जिस कारण से न्यायिक व्यवस्था 25 गुना तेज व 20 गुना ज्यादा पारदर्शी होगी।