सकारात्मक सोच के साथ धार्मिक, व्यवहारिक, आध्यात्मिक और लौकिक शिक्षा के साथ होने वाला चारित्रिक विकास भी बेहतर होता है। वहीं नकारात्मक सोच से शिक्षा का विकास तो हो रहा है पर चरित्र और उससे होने वाली परिवार, समाज मर्यादा का हनन हो रहा है। इसके फलस्वरुप युवा पीढ़ी धर्म और ईश्वर से दूर होती जा रही है। सकारात्मक होने से ईश्वर और उसके प्रसाद को हम सहर्ष स्वीकार कर सकते है। जीवन में सकारात्मक सोच से जीवन मे घटने वाली घटनाओं का जिम्मेदार हम दूसरों को न मानकर उससे निकलने की राह को खोजते है। राह मिलने पर ईश्वर का स्मरण कर सोचते हंै कि जो किया अच्छा किया। सकारात्मक सोच जीवन की गतिविधि में ईश्वर और उसके फैसले को स्वीकार करने की शक्ति देता है।
सकारात्मक सोच का सब से बड़ा लाभ है मानसिक रोगों से मुक्ति। इससे सपनों को पूरा करने का उत्साह पैदा हो जाता है। जब हम अपने जीवन की घटनाओं को दूसरे से जोडऩे लगते है तो उसी समय से नकारात्मक सोच मन में प्रवेश करना प्रारम्भ कर देती है। ईश्वर का स्मरण करने से व्यक्ति की सकारात्मक सोच के प्रति दृढ़ता आती है। मर्यादा पुरुषोतम श्रीराम ने भी अपने जीवन में घटी घटनाओं को ईश्वर की मरजी मान कर सहजता से स्वीकार किया, यही वजह है कि वे हमारे पूज्य बन गए। सकारात्मक सोच के रास्ते में विघ्न तो आ सकते हंै पर उसका परिणाम हमें सुखद ही मिलता है।