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आपकी बात, क्या प्रकृति के शोषण के आधार पर बना विकास मॉडल बदल सकता है?

पत्रिकायन में सवाल पूछा गया था। पाठकों की मिलीजुली प्रतिक्रिया आईं, पेश हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं।

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Dec 08, 2020
आपकी बात, क्या प्रकृति के शोषण के आधार पर बना विकास मॉडल बदल सकता है?

पर्यावरण का महत्त्व समझना होगा
अगर मानव चाहे तो प्रकृति के शोषण के आधार पर बना विकास मॉडल बदल सकता है। प्रकृति सभी जीव जगत की जरूरतों को पूरा करती है, लेकिन वह मानव का लालच पूरा नहीं कर सकती। मानव के लालच के सामने प्रकृति बौनी साबित होती है। विकास मॉडल बदलने के लिए लोगों को पर्यावरण की अहमियत समझनी चाहिए। प्रकृति के संरक्षण का ध्यान रखते हुए विकास होना चाहिए
-सपना बिश्नोई, हनुमानगढ़
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बदलना होगा विकास का मॉडल
जैसे-जैसे सभ्यताओं का विकास हुआ, वैसे-वैसे प्रकृति का शोषण सबसे ज्यादा हुआ। प्राकृतिक पदार्थों का जमकर दोहन हो रहा है। विकास की होड़ ने कल कारखानों से निकलने वाले अपशिष्टों के कारण जल एवं वायु प्रदूषण बढता जा रहा है। पेड़ों की कटाई एवं खनिज सम्पदा के अंधाधुंध से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता जा रहा है। समय आ गया है कि विकास का यह मॉडल सख्ती से बदला जाए। पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता के साथ कड़े कानून बनाने की जरूरत है।
नरेन्द्र कुमार शर्मा, जयपुर
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बढ़ रही हैं बीमारियां
पर्यावरण संरक्षण का ध्यान रखे बिना विकास टिकाऊ नहीं हो सकता। विकास के लिए प्रकृति का निर्मम दोहन हो रहा है। लोग पर्यावरण और स्वच्छता के प्रति गंभीर नहीं हैं। पेड़-पौधे इस धरती के फेफड़े हैं, जो मानव जाति को शुद्ध प्राण वायु देते हैं। नव निर्माण के लिए इनकी अंधाधुंध कटाई से इंसान के लिए ही खतरा बढ़ रहा है। शहरों-गांवों में बढ़ते वाहनों और कल-कारखानों के धुएं से प्रदूषण का स्तर बहुत बढ़ गया है। इसकी वजह से लोगों में अनेक प्रकार की बीमारियों का प्रभाव दिखना शुरू हो गया है।
-नरेश कानूनगो, बेंगलुरू, कर्नाटक
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न करें प्रकृति का शोषण
प्रकृति को हमारे पूर्वजों और वेद-पुराणों ने माता तुल्य माना है। प्रकृति ने इंसान को खूब दिया है, लेकिन लालच के कारण इंसान ने प्रकृति को ही नुकसान पहुंचाया। यह समझना होगा कि मानव जीवन प्रकृति की कृपा से ही है। इसलिए प्रकृति से छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। प्रकृति के शोषण के आधार पर बनाए गए विकास मॉडल को छोडऩे में ही मनुष्य की भलाई है।
-भगवान प्रसाद गौड़, उदयपुर
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बढ़ रहा है प्रदूषण
प्रकृति के शोषण के आधार पर बना विकास मॉडल बदलना जरूरी है। विकास के नाम पर मनुष्य प्रकृति से दूर भाग रहा है, जिससे वातावरण बदल रहा है। लगातार प्रकृति के शोषण से बड़े शहरों के साथ अब छोटे और ग्रामीण इलाकों में भी प्रदूषण बढऩे लगा है। इसे रोकना चाहिए, जिससे हमें प्राकृतिक चीजें अनवरत मिलती रहें। स्वस्थ जीवन के लिए प्रकृति का संरक्षण जरूरी है।
-आर.एन.गौतम, जयपुर
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विकसित देशों ने किया ज्यादा नुकसान
प्रकृति सभी जीव-जगत की जरूरत पूरी करती है। मानव शरीर पंचतत्व यथा पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश तथा वायु से निर्मित है। यही तत्व मिलकर प्रकृति एवं पर्यावरण का निर्माण करते हैं। मनुष्य के स्वस्थ एवं दीर्घायु रहने के लिए इन तत्वों में संतुलन होना आवश्यक है। दुर्भाग्य से हमने इस प्राकृतिक सन्तुलन को अस्थिर कर दिया है। संसाधनों का दोहन करते समय हम पूंजी-लाभ में इतना उलझे कि जीवन-चक्र ही असंतुलित हो गया। संसाधनों का दोहन तो खूब हुआ, किन्तु उनकी भरपाई नहीं की गई। विकसित देशों ने सबसे ज्यादा प्राकृतिक संसाधनों की लूट की।
-राजेश कालीपहाडी, दौसा
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विकास मॉडल में परिवर्तन जरूरी
यह सही है कि दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए विकास जरूरी है, पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि प्रकृति का संरक्षण भी आवश्यक है। इसलिए जो भी प्रकृति के शोषण के आधार पर विकास मॉडल बने हैं, उन्हें संशोधित करके या उनमें बदलाव करके प्रकृति के बचाव का हर संभव प्रयास करना चाहिए।
-प्रवीण बिश्नोई, सांचौर
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प्रकृति का संरक्षण जरूरी
प्रकृति का शोषण इसी तरह जारी रहा तो इंसान के लिए मुश्किल हो जाएगी। प्रकृति का समुचित रूप में पोषण व देखभाल से ही पृथ्वी पर जीवन बचा रहेगा। यदि इसका लगातार शोषण हुआ तो इसके गंभीर परिणाम सामने आएंगे। कोरोना जैसी भयंकर महामारी का पूरे विश्व को सामना करना पड़ रहा है। इसलिए जरूरी है कि समुचित रूप में प्रकृति की देखभाल की जाए।
-बिहारी लाल बालान, लक्ष्मणगढ़, सीकर
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सभी को जागरूक होने की जरूरत
ऐसा विकास सतत नहीं चल सकता जो प्रकृति को नुकसान पहुंचाकर किया गया हो। वर्तमान में सभी को जागरूक होने की जरूरत है, ताकि प्रकृति को बचाया जा सके। प्रकृति का शोषण करके विकसित कहलाने की होड़ गलत है।
-दिलीप चारण, देशनोक, बीकानेर
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जरूरी है क्षतिपूर्ति
बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण कहीं न कहीं प्रकृति के संसाधनों का ज्यादा उपयोग करना पड़ता है। बहुत से कार्य ऐसे होते हैं, जिसमें प्रकृति का दोहन होता है। जंगलों और नदियों को नष्ट करने वाले कार्य तुरंत बंद होने चाहिए। जनजीवन को चलाने के लिए जहां दोहन आवश्यक जान पड़ता है, वहां प्रकृति की क्षतिपूर्ति का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। जंगल काटकर किए गए विकास के एवज में वृक्षारोपण होना चाहिए।
-नटेश्वर कमलेश, चांदामेटा, मध्यप्रदेश
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विकास के साथ पर्यावरण संरक्षण जरूरी
प्रकृति अपनी संपदा को मानव मात्र के लिए लुटाती रही, लेकिन उससे सब कुछ छीन लेने का काम इंसान कर रहा है और इसी रास्ते पर चलते हुए विकास का मार्ग ढूंढ रहा है। यह विकास कब तक टिक पाएगा? विकास के साथ पर्यावरण संरक्षण पर लगातार ध्यान देना होगा।
-विद्या शंकर पाठक सरोदा डूंगरपुर
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खतरे में मानव जीवन
प्रकृति के शोषण के आधार पर बना विकास मॉडल मानव जीवन को खतरे में ही डाल रहा है। प्रकृति से उलट आचरण प्राकृतिक आपदाओं व कोरोना जैसी वैश्विक बीमारियों को आमंत्रण देता है। पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
-शिवजी लाल मीना, जयपुर

Published on:
08 Dec 2020 04:08 pm
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