
'आर्टिफिशल इंटेलिजेंस' के दौर में मनुष्य होने की चुनौती'
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशल इंटेलिजेंस यानी एआइ) को लेकर चिंताएं जगजाहिर हैं और पूरी तरह स्थापित हो चुकी हैं: जैसे, निजता का उल्लंघन, पारदर्शिता से समझौता, चिकित्सा, कानून, रोजगार व ऋण जैसी आवश्यक सेवाओं सहित अन्य क्षेत्रों में एकपक्षीय परिणाम देने वाले एकपक्षीय इनपुट आंकड़े। इसी कारण वाइट हाउस के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कार्यालय ने एआइ की शक्ति से संचालित होती दुनिया' में मनुष्य हितों की रक्षा के लिए 'अधिकारों के एक विधेयक' का आह्वान किया है। पर एआइ के चलते एक और तथ्य में मूलभूत बदलाव आएगा: यह मनुष्य होने की प्रधानता को चुनौती होगी। अब मनुष्य का ही आविष्कार 'एआइ', मनुष्य के अस्तित्व की प्रधानता को नकारने की राह पर है।
2017 में गूगल डीपमाइंड (एल्फाबेट इंक की ब्रिटिश आर्टिफिशल इंटेलिजेंस इकाई) ने एक प्रोग्राम बनाया था - एल्फा जीरो। इस प्रोग्राम के जरिए शतरंज की बाजी केवल अध्ययन करके ही जीती जा सकती थी, बिना मनुष्य हस्तक्षेप के और मनुष्य रणनीति से बिल्कुल अलग तरीके से। 2020 में एमआइटी शोधकर्ताओं ने हैलिसिन नामक नई एंटीबायटिक दवा खोजी थी। उन्होंने एआइ को मनुष्य क्षमता से आगे की गणना के निर्देश दिए। शोधकर्ताओं का कहना था कि एआइ के बिना हैलिसिन 'निषेधात्मक रूप से महंगा' होता। दूसरे शब्दों में, पारम्परिक प्रयोगों से यह खोज असंभव थी। अनुसंधान कंपनी 'ओपन एआइ' द्वारा संचालित लैंग्वेज मॉडल जीपीटी-3 जो पूरी तरह इंटरनेट पाठ्य सामग्री से प्रशिक्षित है, अब मौलिक पाठ्य सामग्री बना रही है, जो एलेन ट्यूरिंग के 'इंटेलिजेंट' व्यवहार के प्रदर्शन के मानकों के समकक्ष और मानव व्यवहार से अलग है।
यही कारण है कि मनुष्य को विश्व में अपनी भूमिका परिभाषित व पुनर्परिभाषित करने की जरूरत है। तर्क के युग का निर्देशन पिछले तीस सालों से इस सूत्र वाक्य के साथ हो रहा है- 'मैं सोचता हूं, इसीलिए मैं हूं।' लेकिन अगर सोचने का काम एआइ करने लगेगी तो हमारा वजूद क्या रह जाएगा? अगर एआइ साल का सर्वश्रेष्ठ स्क्रीनप्ले लिखती है तो क्या इसे ऑस्कर मिलना चाहिए? क्या मशीनें 'रचनात्मक' हो सकती हैं। या उनकी प्रक्रियाओं के लिए नई शब्दावली की जरूरत है?
अगर बच्चा एआइ सहायक को ही अपना 'दोस्त' मानने लग जाए तो उसके अपने संबंधों, सामाजिक व भावनात्मक विकास पर क्या असर पड़ेगा? एआइ का प्राथमिक संवाद मनुष्य से मशीन के बीच होने के चलते आगे चलकर उसका भावनात्मक स्तर क्या होगा? युद्ध के समय अगर एआइ कार्रवाई से नुकसान या जान-माल की हानि की आशंका हो, तो क्या कमांडर को उसकी बात माननी चाहिए? ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि गूगल, ट्विटर और फेसबुक जैसे वैश्विक नेटवर्क प्लेटफॉर्म ज्यादा जानकारी एकत्रित और फिल्टर करने के लिए मनुष्य के बजाय एआइ से यह काम ले रहे हैं। इसलिए एआइ ही अहम विषयों पर निर्णय कर रही है, खास तौर पर सच के बारे में। व्हिसलब्लोअर फ्रांसिस हॉगन ने फेसबुक पर यही आरोप लगाया है कि फेसबुक को पता है सूचनाओं को एकत्र करने और फिल्टर करने से भ्रामक सूचनाओं का प्रसार होता है, और ये मानसिक तनाव का कारण बनती हैं।
एआइ संबंधी सवालों के जवाब ढूंढने के लिए काफी प्रयासों की जरूरत है। इसके व्यावहारिक व कानूनी प्रयोग के अलावा दार्शनिक पक्ष को भी समझना होगा। अगर एआइ वास्तविकता के उन पहलुओं को समझ लेती है, जिन्हें मनुष्य नहीं समझ सकता तो फिर एआइ कैसे मनुष्य बोध, संज्ञान और संवाद को प्रभावित कर रही है? क्या एआइ मनुष्य मित्र साबित हो सकती है? एआइ का संस्कृति, मनुष्यता और इतिहास पर क्या प्रभाव रहेगा? ये सवाल डवलपर और नियामकों के साथ ही चिकित्सा, स्वास्थ्य, कृषि, व्यवसाय, मनोविज्ञान, दर्शन, इतिहास और अन्य क्षेत्रों को लेकर भी आने चाहिए। एआइ को टालने या इसका विरोध करने जैसी तीखी प्रतिक्रियाओं के बजाय बीच का रास्ता अपनाना होगा। एआइ को मनुष्य मूल्यों के साथ साकार किया जाए, जिसमें मानवीय गरिमा व नैतिकता भी समाहित हो। इसके लिए एक सरकारी आयोग गठित किया जाना चाहिए, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के चिंतक शामिल किए जाएं। एआइ का उत्कर्ष तय है, लेकिन इसकी आखिरी मंजिल फिलहाल नहीं।
'द एज ऑफ एआइ: एंड अवर ह्यूमन फ्यूचर' पुस्तक के लेखक-
- हेनरी ए. किसिंजर, (1973 से 1977 तक अमरीकी विदेश मंत्री और 1969 से 1975 तक वाइट हाउस राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार)
- एरिक ई. श्मिट, (गूगल के सीईओ (2001-11) और गूगल व परवर्ती एल्फाबेट इंक. के कार्यकारी अध्यक्ष (2011-17))
- डेनियल हटनलोशर, (मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में स्टीफन ए. श्वार्जमैन कॉलेज ऑफ कम्प्यूटिंग के डीन)
Published on:
08 Nov 2021 01:55 pm
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