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Patrika Opinion : देश हित से जुड़े मसलों पर टकराव उचित नहीं

राजनीतिक फायदे के लिए पहले विपक्ष सरकार को यों कठघरे में खड़ा नहीं करता था। राजनीतिक दलों में जिम्मेदारी का भाव क्षीण होता जा रहा है। ये चिंता की बात है। देश और सेना से जुड़े मुद्दों पर राजनीतिक दलों की ओर से सोच-समझ कर ही बयानबाजी की जाए तो अच्छा रहे।

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राष्ट्रहित के मुद्दों को राजनीति से अलग रखने के उपदेश देने वाले राजनेता ही इसे नहीं अपनाते। बात किसी राजनीतिक दल या नेता की नहीं, समूची राजनीतिक बिरादरी की है। ताजा मामला गलवान घाटी का है। गलवान घाटी में भारतीय सीमा में चीनी झण्डा फहराने का वीडियो सामने आया नहीं कि फिर शुरू हो गई ओछी राजनीति। राहुल गांधी समेत कुछ विपक्षी नेताओं ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया। वह भी तथ्यों की जांच-पड़ताल किए बिना।

राहुल ने तो सीधे प्रधानमंत्री को ही निशाने पर ले लिया। बाद में साफ हुआ कि चीन ने नए साल पर अपने ही इलाके में अपना झण्डा फहराया था। अपनी सीमा में अपना झण्डा फहराने का अधिकार सबका है। इसे लेकर राजनीति करने से क्या तो देश का भला हो सकता है और क्या ही विपक्षी दलों का। देश पहले भी सर्जिकल स्ट्राइक समेत अनेक मौकों पर इस तरह सरकार को घेरने की विपक्ष की कोशिशों का साक्षी बन चुका है।

सवाल उठता है कि सरकार को घेरने के लिए क्या विपक्ष के पास दूसरे मुद्दे नहीं हैं? महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर विपक्ष सरकार को घेरे तो उसे समर्थन मिल सकता है। लेकिन हालात सबके सामने हैं। सबने देखा कि ऐसा करने की विपक्ष की ओर से कितनी बार गंभीर कोशिशें की गईं। संसद का पूरा सत्र हमेशा की तरह हंगामे की भेंट चढ़ गया। ट्विटर पर सरकार को घेरने वाले विपक्षी नेताओं के पास सरकार को संसद में घेरने का अच्छा मौका था, जो उन्होंने गंवा दिया। पिछले कुछ सालों से देशहित के मुद्दों पर सरकार और विपक्ष के बीच होने वाले बेवजह के टकराव से बचा जा सकता है और बचा जाना भी चाहिए। राहुल या उन जैसे दूसरे नेता अगर चीनी झण्डे को लेकर गलत बयानबाजी करते हैं तो क्या दूसरे विपक्षी दलों को अपनी जिम्मेदारी नहीं समझनी चाहिए।

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राजनीतिक दलों को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि देश उनसे पहले है। देश भाजपा वालों का भी उतना ही है, जितना कांग्रेस की विचारधारा में विश्वास रखने वालों का है। राजनीतिक फायदे के लिए पहले विपक्ष सरकार को यों कठघरे में खड़ा नहीं करता था। राजनीतिक दलों में जिम्मेदारी का भाव क्षीण होता जा रहा है। ये चिंता की बात है। देश और सेना से जुड़े मुद्दों पर राजनीतिक दलों की ओर से सोच-समझ कर ही बयानबाजी की जाए तो अच्छा रहे। आज के हालात में ऐसा होना मुश्किल जरूर लगता है लेकिन प्रयास किए जाएं तो यह असंभव नहीं।

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