23 दिसंबर 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

संविधान, अभिव्यक्ति की आजादी व नफरती भाषण

अभिव्यक्ति की आजादी जहां समाज को जोडऩे का काम करती है, वहीं द्वेषपूर्ण भाषण समाज में वैमनस्य फैलाता है, लोगों के बीच अविश्वास की खाई पैदा करता है और एक दूसरे के खिलाफ उठ खड़े होने के लिए उकसाता है। उम्मीद है कि राज्य सरकारें सुप्रीम कोर्ट की चिन्ता का मर्म समझेंगी और नफरती भाषणों पर कार्रवाई के लिए तत्परतापूर्वक कार्य करेंगी।

3 min read
Google source verification

image

Patrika Desk

Apr 04, 2023

संविधान, अभिव्यक्ति की आजादी व नफरती भाषण

संविधान, अभिव्यक्ति की आजादी व नफरती भाषण


संविधान, अभिव्यक्ति की आजादी व नफरती भाषण

डॉ. हरबंश दीक्षित
डीन, विधि संकाय
तीर्थंकर महावीर विवि, मुरादाबाद

सुप्रीम कोर्ट ने नफरती भाषणों के मामले में राज्य सरकारों पर तीखी टिप्पणी की। बीते 29 मार्च को न्यायाधीश के.एम. जोसेफ तथा बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने इसके लिए राज्य सरकारों की अकर्मण्यता को जिम्मेदार मानते हुए कठोरता से निपटने का आदेश दिया। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी स्वतंत्रताओं की आधारशिला है, किन्तु इसकी सीमा रेखा को भी समझना जरूरी है। यदि अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग हो, और उससे समाज में वैमनस्यता फैले तो उसे अभिव्यक्ति की आजादी की परिधि में नहीं माना जा सकता।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1) ए में अभिव्यक्ति की आजादी दी गई है तथा अनुच्छेद 19(2) में उन परिस्थितियों का जिक्र है, जिनके आधार पर उसके दुरुपयोग को रोकने के लिए युक्तियुक्त निर्बन्धन लगाए जा सकते हैं। भारतीय दण्ड संहिता, दण्ड प्रक्रिया संहिता तथा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम जैसे कानूनों में उन विशिष्ट उपबन्धों का उल्लेख है, जो नफरती भाषण को दण्डनीय बनाते हैं। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 153(1) ए के अनुसार जो व्यक्ति अपने शब्दों, संकेतों या अन्य माध्यमों के द्वारा वर्ग, समुदाय धर्म, जाति, भाषा, जन्मस्थान के आधार पर उनके बीच वैमनस्य फैलाता है या ऐसा करने का प्रयास करता है, उसे तीन साल तक के कारावास या अर्थदण्ड या दोनों से दण्डित किया जा सकता है। धारा 153 ए के खण्ड(2) के मुताबिक यही अपराध यदि किसी पूजास्थल पर या धार्मिक सम्मेलन में किया जाता है तो उसके लिए 5 साल तक के कारावास और अर्थदण्ड दोनों से दण्डित किए जाने की व्यवस्था है। धारा 153 ए के भाव को धारा 153 बी में आगे बढ़ाया गया है, जिसमें राष्ट्रीय अखंडता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले लांछनों को दण्डनीय घोषित किया गया है। यही अपराध यदि किसी पूजा स्थल या धार्मिक सभा पर किया जाए तो धारा 153 बी(2) के अनुसार उसे पांच वर्ष तक के कारावास और जुर्माने दोनों से दण्डित किया जाएगा। इन दोनों उपबन्धों से मिलती जुलती व्यवस्था धारा 295 तथा 295 ए में भी की गई है। धारा 295 में कहा गया है कि जो कोई व्यक्ति किसी पूजा स्थल को क्षति पहुंचाता है या किसी समुदाय को भय में डालता है या अपमान करता है तो उसे दो साल तक के कारावास या अर्थदण्ड या दोनों से दण्डित किया जा सकता है। धारा 295 ए के अनुसार जो कोई व्यक्ति जानबूझकर, विद्वेषपूर्ण तरीके से किसी समुदाय के धर्म या धार्मिक विश्वास का अपमान करता है या धार्मिक भावनाओं को आहत करता है, वह तीन वर्ष तक के कारावास या जुर्माया या दोनों से दण्डनीय होगा। इसी तरह धारा 298 में धार्मिक भावनाएं आहत करने वाले भाषणों को, धारा 505(1)(सी) में किसी एक समुदाय को दूसरे के खिलाफ अपराध करने के लिए उकसाने को, धारा 505(2) के अन्तर्गत दो समुदायों के बीच वैमनस्यता फैलाने को तथा धारा 505(3) में समुदायों के बीच वैमनस्यता फैलाने के लिए धार्मिक स्थल या सभा के उपयोग करने को दण्डनीय अपराध घोषित किया गया है।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 तथा दण्ड प्रक्रिया संहिता में भी द्वेषपूर्ण भाषण को प्रतिबन्धित किया गया है। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 123(3 ए) के अनुसार किसी प्रत्याशी या उसकी सहमति से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा धर्म, जाति, भाषा या मूलवंश के आधार पर वैमनस्य या घृणा फैलाना या उसका प्रयास करना भ्रष्ट आचरण माना जाएगा। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 95 में कहा गया है कि यदि राज्य सरकार को प्रतीत होता है कि किसी समाचार पत्र, पुस्तक अथवा दस्तावेज में ऐसा कुछ है जो भारतीय दण्ड संहिता की धारा 153 ए या धारा 153 बी या धारा 292 या धारा 293 या धारा 295 ए के अधीन दण्डनीय है, तो वह उसके जब्ती की अधिसूचना जारी कर सकती है। अभिव्यक्ति की आजादी और द्वेषपूर्ण भाषण, एक साथ नहीं चल सकते। द्वेषपूर्ण भाषण, अभिव्यक्ति की आजादी का घोर दुरुपयोग है। इससे आजादी के महत्त्व का क्षरण होता है। अभिव्यक्ति की आजादी जहां समाज को जोडऩे का काम करती है, वहीं द्वेषपूर्ण भाषण समाज में वैमनस्य फैलाता है, लोगों के बीच अविश्वास की खाई पैदा करता है और एक दूसरे के खिलाफ उठ खड़े होने के लिए उकसाता है। उम्मीद है कि राज्य सरकारें सुप्रीम कोर्ट की चिन्ता का मर्म समझेंगी और नफरती भाषणों पर कार्रवाई के लिए तत्परतापूर्वक कार्य करेंगी।