चीन ड्रैगन और हाथी का एक साथ डांस तो चाहता है और दोनों देशों को एक-दूसरे की शंकाओं को दूर करने के लिए मदद की बात करता है। इसके बावजूद चीन यह भी मानता है कि दोनों देशों को ही एक-दूसरे पर भरोसा नहीं है। चीन का कहना है कि अगर राजनीतिक भरोसे के साथ आगे बढ़ा जाए, तो भारत-चीन की दोस्ती में हिमालय भी बाधा नहीं बन सकता है। सही बात है। भारत की शुरू से ही नीति रही है कि पड़़ोसी देशों के साथ मधुर संबंध जरूरी हंै और इसके लिए भारतीय स्तर पर समय-समय पर सकारात्मक पहल की गई है। लेकिन यह कैसे संभव होगा? खासकर, ऐसी स्थिति में, जब खुद चीन एक तरफ जहां भारत से दोस्ती की बात करता है और यह भी स्वीकारता है कि दोनों देशों को एक-दूसरे पर भरोसा नहीं है। भारत भरोसा भी आखिर क्यों करे? एक तरफ दोस्ती की बात की जाती है, दूसरी ओर बैल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के नाम पर पाकिस्तान पर कब्जा जमाने की दूरगामी नीति पर पाकिस्तान का साथ देता है। संयुक्त राष्ट्र में आतंकी अजहर मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित कराने में भारत के दुश्मन देश पाकिस्तान का साथ देता है। भारत के अरुणाचल प्रदेश पर अपना हक जताता है। डोकलाम में भारत के हितों को दरकिनार करके दादागिरी करता है। दोस्ती की बात की जाती है, लेकिन भारत के न्यूक्लियर सप्लाई ग्रुप में शामिल नहीं होने देने के लिए वीटो का इस्तेमाल करता है। हिमाचल और लद्दाख की जमीन पर कब्जे की नीयत रखता है। दोस्ती के पैमानों और अंतरराष्ट्रीय नीतियों को दरकिनार करके अपने सैनिकों से भारत में घुसपैठ का प्रयास करता है। दक्षिण चीन सागर को लेकर भी चीन काफी आक्रामक है।
चीन की कथनी और करनी में जब तक अंतर रहेगा, तब तक दोस्ती सिर्फ दिखावा ही साबित होगी। चीन कभी भी कुछ भी कर सकता है। हाल ही चीन ने अपने रक्षा बजट में भारी बढ़ोतरी की है। इससे ही चीन के इरादों को पर्दाफाश होता है। अलबत्ता भारत को किसी भी तरह से चीन की बातों में नहीं आकर अपने स्तर पर देश को आगे बढ़ाने और विश्व स्तर पर मजबूती से कदम बढ़ाने जाने की सख्त आवश्यकता है। जब देश की आर्थिक विकास दर बढ़ेगी, तो काफी समस्याओं को समाधान खुद ही हो जाएगा। वैसे भी भारत की कूटनीति और राजनीति बहुत मजबूत है। भारत को धमका कर भले ही चीन अपने देश में राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति कर सकता है, लेकिन भारत के खिलाफ कोई कदम उठाने से पहले सौ बार सोचना पड़ेगा। अब भारत 1962 वाला भारत नहीं है।
प्रमुख विवाद, जिनका सुलझना जरूरी…
डोकलाम- डोकलाम का मुद्दा भारत और चीन दोनों के लिए काफी समय से विवाद का कारण बना हुआ है। चीन जहां इस पर अपना हक जमा रहा है, भारत इसे विवादित मानता है। चीन डोकलाम में सैन्य निर्माण करवा रहा है। हाल ही हैलिपैड बनाकर तनाव बढ़ाने का काम किया। पिछले वर्ष इसी मुद्दे पर करीब सवा दो महीने तक दोनों देशों में गतिरोध बना हुआ था। लेकिन भारत के मजबूती से डटे होने के कारण चीन को अपने कदम पीछे करने पड़े।
सीपैक- चीन की यह महत्वपूर्ण योजना का हिस्सा है। जिसका एक हिस्सा चीन के शिनजियांग में आता है तो दूसरा पाकिस्तान में जाता है। यह कॉरिडोर पाकिस्तान में ब्लूचिस्तान, गिलगिट-बाल्टिस्तान, खैबर पख्तूनखवां, पंंजाब सिंध से होकर गुजरता है। भारत इस कॉरिडोर का शुरू से ही विरोध कर रहा है, क्योंकि गिलगिट-बाल्टिस्तान जम्मू-कश्मीर का ही हिस्सा हैं, जिस पर पाकिस्तान ने अवैध कब्जा कर रखा है।
संयुक्त राष्ट्र में बाधक- पाकिस्तान में मौजूद आतंकियों को वैश्विक आतंकी घोषित कराने के मामले में चीन सदा दुश्मन देश पाकिस्तान के साथ खड़ा हो जाता है। भारत की अजहर मसूद को वैश्विक आतंकी घोषित करने की मांग पर चीन वीटो लेकर आ जाता है।
हिमाचल और लद्दाख पर निगाहें- चीन की हिमाचल और लद्दाख पर पैनी निगाहें हैं, इसे लेकर कई बार चीनी सैनिक इन इलाकों में घुसपैठ के प्रयास कर चुके हैं।
अरुणाचल प्रदेश- भारत के अरुणाचल प्रदेश को चीन तिब्बत का हिस्सा बताकर अपने दावे करता है। यहां तक की जब भी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री अरुणाचल प्रदेश जाते हैं, तो इसका चीन खुलकर विरोध करता है।
एनएसजी का सदस्य बनने में बना रोड़ा- चीन ने भारत को न्यूक्लियर सप्लाई ग्रुप (एनएसजी) का सदस्य बनने में भी बाधक बना। उसका तर्क इसके लिए ऐसा है, जिसे स्वीकार ही नहींं किया जा सकता है। यहां तक की चीन यह कहता है कि एनएसजी का सदस्य यदि भारत को बनाया जाता है, तो पाकिस्तान भी इसका हकदार है। ओछी सोच वाले चीन को भारत से पाकिस्तान की तुलना करने से पहले सोचना चाहिए।