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सम्पादकीय : मामूली अपराध पर पुलिस क्रूरता की पराकाष्ठा

पुलिस एजेंसियों से यह अपेक्षा की जाती है कि उन्हें न केवल अपराध कम करने पर ध्यान देना चाहिए बल्कि ऐसे प्रयास भी करने चाहिए, जिससे आम जनता के बीच पुलिस की छवि मददगार की बनी रहे।

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पुलिस बल कहीं का भी हो, अपराधों की रोकथाम के लिए उसे अपराधियों के प्रति सख्त रवैया अपनाना ही पड़ता है। लेकिन यह सख्ती जब क्रूरता में तब्दील होती दिखे तो पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठना स्वाभाविक है। आस्ट्रेलियाई पुलिस ने भारतीय मूल के एक व्यक्ति के साथ मामूली बात पर जैसा बर्ताव किया उसे क्रूरता की पराकाष्ठा ही कहा जाएगा। पिछले दिनों एडिलेड के एक पार्क में अपनी पत्नी से बहस को घरेलू हिंसा करार देते हुए आस्ट्रेलियन पुलिस ने भारतीय मूल के गौरव कुंडी को जमीन पर गिरा गर्दन पर घुटना रख दिया। इससे ब्रेन इंजरी होने पर वे कोमा मे चले गए और पुलिस हिरासत में रहने के दौरान अस्पताल में ही गौरव की मौत हो गई। हैरत की बात यह है कि कुंडी व उनकी पत्नी दोनों ने पुलिस के रवैये पर आपत्ति की थी।
पुलिस एजेंसियों से यह अपेक्षा की जाती है कि उन्हें न केवल अपराध कम करने पर ध्यान देना चाहिए बल्कि ऐसे प्रयास भी करने चाहिए, जिससे आम जनता के बीच पुलिस की छवि मददगार की बनी रहे। आस्ट्रेलिया की इस घटना ने अमरीका के बहुचर्चित जार्ज फ्लॉयड केस की याद दिला दी है। पांच साल पहले एक प्रदर्शन के दौरान अमरीकी पुलिस अधिकारी ने फ्लॉयड को सडक़ पर दबोच अपने घुटने से उसकी गर्दन को आठ मिनट से ज्यादा समय तक दबोचे रखा। जार्ज की मौत के बाद अमरीका के कई शहरों में दंगे हुए और सालभर बाद कोर्ट ने पुलिस अधिकारी को दोषी करार दिया था। आस्ट्रेलिया हो या अमरीका, ब्रिटेन हो या फिर कोई दूसरा देश, पुलिस प्रताडऩा के ऐसे कई मामलों में नस्लभेदी रवैया भी सामने आता है। आस्ट्रेलिया के इस मामले में भी नस्लभेद की ही बू आ रही है। पुलिस प्रताडऩा का शिकार हुए भारतीय मूल के गौरव न तो आतंकवादी थे और न ही ऐसा गंभीर अपराध किया था, जिसकी वजह से पुलिस को ऐसी सख्ती करनी पड़े। विकसित कहे जाने वाले देशों में भी जब रंंगभेद के आधार पर पुलिस प्रताडऩा के मामले सामने आते हों तो चिंता होनी ही चाहिए। न केवल कानून-व्यवस्था के मामले में बल्कि खेलों में भी ऐसा भेद पीड़ादायक ही होता है। पीड़ा इसलिए भी कि इस तरह का भेदभावपूर्ण व्यवहार सामाजिक असमानता की खाई को और चौड़ा करने वाला ही होता है। नस्लभेद से उपजी हिंसा तो और भी खतरनाक है, जिसमें सदैव जान-माल के नुकसान की आशंका बनी रहती है।
चिंता इस बात की भी है कि मानवाधिकार आंदोलनों व वैश्विक स्तर पर हुई कई संधियों के बावजूद गाहे-बगाहे पुलिस क्रूरता के ऐसे उदाहरण सामने आते रहते हैं, जिनमें नस्लभेद सीधे तौर पर नजर आता है। आस्ट्रेलिया के इस प्रकरण की भी जांच शुरू हो गई है। दुनिया के तमाम देशों को समझना होगा कि समाज में सबको गरिमा से जीने का अधिकार है। ऐसे प्रकरणों में दोषियों पर सख्ती की जानी चाहिए ताकि इस तरह की घटनाओं का दोहराव न हो।