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विहंगम-दृष्टि

Gulab Kothari Article : जन-गण-मन यात्रा पर केंद्रित पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का यह विशेष लेख - विहंगम-दृष्टि

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जन-गण-मन यात्रा : विहंगम-दृष्टि

जन-गण-मन यात्रा : विहंगम-दृष्टि

Gulab Kothari Article : पांच दिवसीय 'जन-गण-मन यात्रा' का श्रीगणेश राजस्थान के अजमेर जिले से किया। भीलवाड़ा-उदयपुर-सिरोही-पाली, जोधपुर और ब्यावर तक सीमित रही यह यात्रा। ठीक वैसे ही जैसे उत्तरप्रदेश की पांच दिवसीय चुनाव-पूर्व यात्रा थी। यूं तो पिछले तीनों चुनावों में भी राजस्थान-मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के दौरे कर चुका, किन्तु इस बार का अनुभव तो चौंकाने वाला ही कहा जाएगा। न चुनावों की घोषणा, न प्रत्याशियों की। मात्र एक विश्वास के सहारे कि चुनाव होंगे, भीतर में लहरें हिलोरे ले रही हैं। एक ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नाम है, दूसरी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की योजनाएं।

राजनीति करवट बदल रही है। राजनेता स्वयं में सिमटते जा रहे हैं। पिछले चुनाव के बाद कितने ही प्रत्याशी बागी होकर निर्दलीय जीते। यह बाजार इस बार और गरम दिखाई पड़ता है। राज्य में दोनों ही दलों में शीर्ष नेतृत्व का अभाव है। 'डर' दिखाई ही नहीं देता। कई नेताओं ने पार्टी से टिकट पाने की इच्छा तो जताई, किन्तु पार्टी की चर्चा तक नहीं की। स्वयं को ही केन्द्र में रखा। वे लोग यहां तक तैयार थे कि यदि पार्टी टिकट नहीं देगी, तो भी वे चुनाव लड़ेंगे। यह स्थिति दोनों दलों में समान रूप से दिखाई दे रही थी। लोकतंत्र का यह नया रूप था। कितने ही लोग थे जो स्वयं को शक्तिमान मानकर बात कर रहे थे। सबको लगने लगा है कि राजनीति कमाई करने की श्रेष्ठ जगह है। भ्रष्टाचार को कोई रोकने वाला भी नहीं। आज भी चरम पर है। क्या अमृत ही चरम पर पहुंचकर विष बन जाता है?


भारतीय जनता पार्टी की गतिविधियां प्रश्नों के घेरे में हैं। एक ही सूत्र पकड़ रखा है-मोदी। कहीं-कहीं वसुंधरा राजे की बात भी उठती है, किन्तु लोग स्वयं ही उत्तर देते दिखाई दे जाते हैं। जो उत्तर सर्वमान्य हैं, वह यह कि भाजपा-कांग्रेस भीतर से दोनों एक हैं। परिवर्तन यात्रा में भी जोश ठंडा है। यात्राएं शुरू होती दिखाई पड़ती हैं, थोड़ी दूर जाकर सूख जाती हैं। शायद नामों की सूची आने पर तेवर बदलेंगे।


कांग्रेस की नाव हिलोरें ले रही है। एक ओर राजनेताओं के नगाड़े हैं, तो दूसरी ओर पर्चा लीक और बेरोजगारी की शून्यता भी है। कांग्रेस में आज भी सेवादल का अभाव असहज कर रहा है। बूथ स्तर पर काम कौन करे? योजनाओं को घर-घर कौन ले जाए? किसी को यह जानकारी नहीं कि कौनसी योजना कितने प्रतिशत लोगों तक पहुंची! यही एकमात्र बड़ा प्रश्न है, जिसके जवाब की तैयारी कांग्रेस को युद्ध स्तर पर करनी चाहिए। हालांकि, कार्यकर्ता अपनी गलती नहीं मान रहे हैं। उनका आरोप है कि प्रशासन सहयोग नहीं कर रहा है।


खाद्य सामग्री वितरण योजना में लगभग एक चौथाई से अधिक लोगों के नाम सूची में ही नहीं हैं। केन्द्र और राज्य सरकार गेहूं भी अलग-अलग बांट रही है। राज्य सरकार गेहूं के साथ मसालों के पैकेट भी बांट रही है। इसमें गेहूं केन्द्र का और मसाले राज्य सरकार के बंट रहे हैं। मसालों की रिपोर्टें मीडिया में छप रहीं हैं।


दावेदारों की कतारें नया अनुभव है। प्रत्येक दावेदार अपने-अपने विवरण और मित्रों के साथ आ रहा था, मानो मैं ही टिकट वितरण में निर्णायक भूमिका निभाने वाला हूं। दोनों ही दलों में वर्तमान विधायकों के प्रति असंतोष का वातावरण है। उनके रिश्तेदारोंं द्वारा भ्रष्टाचार करने के आरोप भी लगे। एक ही जाति के उम्मीदवारों पर भी बड़ी आपत्ति उठाई। दोनों ही दलों में आलाकमान की मनमानी से टिकट वितरण पर बड़ा असंतोष नजर आया। असंतोष का दूसरा कारण था-चहेतों और बाहरी व्यक्तियों को टिकट देने की प्रवृत्ति। इनको पैसे लेकर टिकट देने की श्रेणी में माना जा रहा है। अर्थात-पार्टी हित गौण तथा निजी स्वार्थ बड़ा।

दावेदार चुनौती बनते दिखाई पड़ते हैं। कुछ महिला दावेदार भी इशारा तो कर ही गईं कि मैदान में निर्दलीय उतरने का मार्ग तो खुला है। वंशवाद की चर्चा भी कर गईं। सही आकलन सूची आने पर ही हो सकेंगे। आचार संहिता के बाद तो परदे हट ही जाएंगे।