scriptGulab Kothari Articles sharir hi brahmand 15 january 2022 | शरीर ही ब्रह्माण्ड: तीन शरीर-तीन उपचार | Patrika News

शरीर ही ब्रह्माण्ड: तीन शरीर-तीन उपचार

Published: Jan 15, 2022 10:12:09 am

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Gulab Kothari

Gulab Kothari Articles: स्थूल शरीर गौण है, सूक्ष्म शरीर प्रधान है, कारण शरीर सर्वप्रधान है। जो कर्म, द्रव्य और भोग आदि सूक्ष्म शरीर का उपकार करते दिखते हैं, किन्तु आत्मा के लिए हानिकारक अर्थात् पतन की ओर ले जाने वाले हैं, वे त्याज्य हैं। इस दृष्टि से शास्त्रों में आत्मा ही प्रधान कहा जाता है.... शरीर ही ब्रह्माण्ड श्रृंखला में शरीर संरचना की वैदिक व आध्यात्मिक विवेचना समझने के लिए पढ़िए पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का यह विशेष लेख -

शरीर ही ब्रह्माण्ड: तीन शरीर-तीन उपचार
शरीर ही ब्रह्माण्ड: तीन शरीर-तीन उपचार
Gulab Kothari Articles: आयुर्वेद का सिद्धान्त है कि 'रोगस्तु दोषवैषम्यं दोषसाम्यमरोगता' अर्थात् दोषों की विषमता रोग तथा समता आरोग्य है। जो द्रव्य शरीर को दूषित करते हैं, वे दोष कहे जाते हैं। वात-पित्त एवं कफ शारीरिक दोष हैं और रज व तम मानसिक दोष हैं। जिस प्रकार ब्रह्माण्ड में सूर्य, चन्द्रमा तथा वायु की गतियों से जगत् का धारण, पोषण और नियमन होता है, उसी प्रकार शरीर में वात-पित्त एवं कफ से शरीर का संचालन एवं नियमन होता है। 'त्रयो वा इमे त्रिवृतो लोका:' के अनुसार द्युलोक, पृथ्वीलोक, अन्तरिक्ष लोक तीनों त्रिधातु युक्त औषधियों के उत्पादक हैं।

'उच्छिष्टाज्जज्ञिरे सर्वम्' अथर्व सिद्धान्त के अनुसार उच्छिष्ट (प्रवग्र्य भाग) से ही विश्व का निर्माण हुआ है। चन्द्रमा का जो भाग अलग होकर वायु धरातल में प्रतिष्ठित हो जाता है, वही प्रजा का उत्पादक बनता है। गतिधर्मा वायु ही सूर्य-चन्द्रमा के आग्नेय-सौम्य-रसों को छिटका हुआ बनाकर विश्व का निर्माण करता है। इसलिए सूर्य, चन्द्रमा के साथ-साथ वायु भी सृष्टि निर्माण में अहम् तत्त्व है।

सूर्य चन्द्रमा जहां अपने प्रवग्र्य भाग से विश्व के (रोदसी ब्रह्माण्ड के) केवल उपादान कारक हैं। वहां वायु उपादान होने के साथ-साथ प्रवग्र्य भाव सम्पादन से निमित्त कारण भी है। मानव प्रजा की उत्पत्ति का सिद्धान्त भी वायु तत्त्व के आधार पर ही प्रतिष्ठित है। एकमात्र वायु से ही वृष्टि (वर्षा) होती है। मानव प्रजा के चैतन्य का आधार वायु तत्त्व (श्वास-प्रश्वास) ही माना गया है।

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