
कृत्रिम मेधा से यांत्रिकता की राह पर मानवीय भावनाएं
आर.एन. त्रिपाठी
प्रोफेसर समाजशास्त्र, बीएचयू और सदस्य, यूपीपीएससी
जिस प्रकार तकनीक का नित नया रूप हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में घुसता जा रहा है उससे कई चिंताएं उठना भी स्वाभाविक है। खास तौर चैट-जीपीटी जिसका इन दिनों खूब इस्तेमाल होने लगा है। वैसे तो सामान्य अर्थों में यह एक प्रकार का लैंग्वेज सिस्टम का साफ्टवेयर है जो पत्र लिखने से लेकर प्रोग्राम व प्रोजेक्ट तैयार करने का काम भी तत्काल कर सकता है। लेकिन उसकी वास्तविक सामग्री का स्रोत कहां से आता है और उसमें नवाचार क्या हो सकते हैं या फिर नए शब्द कैसे बन सकते हैं यह विचार इसमें नहीं है। एक ही उदाहरण काफी है- जैसे अनुवाद की तकनीक में चाची शब्द आंटी या आंट होता है। अब अपनी सगी -चाची, पड़ोस वाली चाची, आपके घर काम करने वाली चाची, बुआ, मौसी जैसी प्रत्येकचाची का क्या और कितना महत्व है यह तकनीक यह अंतर नहीं देख पाएगी, पाएगी क्योंकि यह मनोभाव व संवेदना का विषय है। चैटजीपीटी इस पर अपने को समेट लेगी।
संबंधों के आधार पर शब्दों और कार्यों का जो नवाचार होता है वह इस तकनीक में संभव ही नहीं है। सिर्फ ऐसी तकनीक पर आश्रय का मतलब है कि मानव का मन श्रद्धा व विश्वास से हटकर कुछ साफ्टवेयर के जाल में सिमट जाएगा। मानवीय संवेदनाएं सूखने लगेगी और व्यक्ति के जीवन में भावनाओं का कोई स्थान नहीं रहेगा। सीधे तौर पर सब कुछ गणित के आकलन जैसा हो जाएगा। यह भी विचारणीय है कि कृत्रिम जीवन में 'घृणा' बहुत आसानी से प्रवेश कर जाती है। एक न एक दिन वह प्रेम और संवेदना को निगलकर, प्रेम के पूरे दायरे पर अपना स्थान बना लेती है। परिणामत: जब प्रेमशून्य समाज हो जाता है तब वह यांत्रिक हो जाता है। जो समाज यांत्रिक हो जाता है वह परोपकार मानवीय दृष्टि और गुणों से दूर भाग कर एक मशीन का रूप ले लेता है । आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से किसी समस्या का तात्कालिक हल तो निकल जाता है पर वह हल भावनागत रूप से सही है या गलत, उसका भविष्य में मानवीय श्रद्धा, विश्वास व प्रेम पर कितना असर होगा या फिर आपका दिल, दिल की तरह ही सोच रखेगा यह सब कहना बड़ा मुश्किल सा हो गया है। एक तरह से मनुष्यता भी वास्तविक सहजता को छोड़कर अपना कृत्रिम घोंसला इस तकनीक से बनाने में लगी है जिसका परिणाम आने वाली पीढिय़ोंं के लिए घातक होने की आशंका है।
यह बात सही है कि बनावटी मेधा से प्रकृति प्रदत्त मेधा तेज हो सकती है लेकिन भावना का अभाव सा होता जाता है । प्रेम ही भावना रूपी पेड़ का तना है जिससे 'भावना' भाव के सहारे बेल फैलाती है। चिंता इसी बात की है कि आज के युग में ये भाव स्वत:स्फूर्त नहीं बल्कि तकनीक से पैदा किए जा रहे हैं। शायद इसीलिए मानवता रूपी पेड़ अब यांत्रिकता का पेड़ बनता जा रहा है। आज ॅएलेक्सा से लेकर एप्पल का सीरी आपके आदेश का पालन भले ही करते हों लेकिन हमारी निजता और गरिमा की अनदेखी कर।यह तकनीक मानव जीवन की जटिलताओं को वैकल्पिक तरीके से समाधान करती है, पर इसका व्यक्तित्व निर्माण पर क्या असर पड़ेगा यह नहीं सोच पाती। हम शतरंज के खिलाडिय़ों को इस तकनीक से तो हराने में कामयाब हो रहे हैं लेकिन जीवन में जो प्रेम की शतरंज है, जो संवेदनाओं को आंच देने की ज्वाला है वह कहीं बुझ न जाए इस पर भी विचार करना होगा।
Published on:
20 Jun 2023 09:38 pm
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