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प्रसंगवश : समस्याएं जुटाने का काम पुराना, समाधान की दिशा में हो काम

स्कूलों में जारी निःशुल्क सरकारी योजनाओं में कहीं भी संतोषजनक तस्वीर दिखाई नहीं देती

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प्रसंगवश : समस्याएं जुटाने का काम पुराना, समाधान की दिशा में हो काम

फाइल फोटो

देर से ही सही। शिक्षा विभाग को कम से कम अपने अधीन संचालित सरकारी स्कूलों की सुध लेने की फुर्सत तो मिली। इस माह के अंतिम दिनों में शुरू होने वाले विधानसभा सत्र को देखते हुए ही सही, शिक्षा विभाग ने स्कूलों एवं शिक्षकों से जुड़ी समस्याएं एवं जानकारी एकत्रित कर शाला दर्पण पोर्टल पर इंद्राज करने को कहा है। जाहिर सी बात है समस्याएं चिह्नित होंगी तभी उनके समाधान का रास्ता निकलेगा, लेकिन सवाल यह है कि जिस तरह की जानकारी एवं समस्याएं संकलित करने को कहा गया है, क्या उन सब से शिक्षा विभाग अब तक अनजान है? क्रमोन्नत स्कूल, रिक्त पद, मर्ज-डिमर्ज स्कूल, अंग्रेजी माध्यम में रूपांतरित होने वाले स्कूल, स्थानांतरण की जानकारी, डीपीसी का विवरण, निःशुल्क योजनाओं की जानकारी, इनमें ऐसा कौनसा विभागीय काम है जो नया है? फिर भी समस्याओं का संकलन नए सिरे से हो रहा है तो जरूरत इस बात की है कि यह काम सिर्फ आंकड़ों का जंजाल बुनने तक ही सीमित नहीं रहे।
वैसे भी प्रदेश के स्कूलों में जारी निःशुल्क सरकारी योजनाओं की हश्र किसी से छुपा हुआ नहीं है। बात चाहे टैबलेट वितरण की हो, साइकिल वितरण की हो या यूनिफार्म की। शिक्षा सत्र खत्म होने में करीब तीन माह का समय बचा है लेकिन विद्यार्थियों को यूनिफार्म नहीं मिली है। पिछले साल भी यूनिफार्म समय पर नहीं मिली थी। आखिर में कपड़ा पकड़ा दिया, लेकिन सिलाई की राशि के लिए इंतजार करना पड़ा। साइकिलों का वितरण भी अटका पड़ा है। दिसंबर माह में शुरू हुई पीएमश्री बाल वाटिकाओं में नर्सिंग टीचर ट्रेनर का चयन अभी तक नहीं हो पाया है। यही हाल पीएमश्री स्कूलों में संविदा पर रखे योग शिक्षकों का है। उनको अभी वेतन ही नहीं मिला है। पीएमश्री स्कूलों में बहुत से पद अभी भी रिक्त हैं। हां, सरकारी स्कूलों में विभिन्न गतिविधियों के आयोजन पर पूरा जोर है। वित्तीय सत्र समाप्त होने को है और पीएमश्री स्कूलों में बजट अब जाकर जारी हुआ है। अब इस बजट को मार्च से पहले खपाने पर जोर रहेगा। बड़ा सवाल यही है कि सब-कुछ जानते- समझते भी आखिर समय रहते शिक्षा जैसे अहम विषय से जुड़ीं समस्याओं की पड़ताल का काम क्यों नहीं हो पाता? सत्र शुरू होने से पहले ही शिक्षा व शिक्षकों से जुड़ीं परेशानियों की तरफ ध्यान दे दिया जाए तो ऐसी कवायद की जरूरत ही न हो।
-महेन्द्र सिंह शेखावत