भारत के साथ संबंध सुदृढ़ कर उसे क्षेत्र में मुख्य भूमिका देकर अमरीका, चीन के साथ संतुलन कायम करने की कवायद शुरू कर चुका है। दस्तावेज में चीन के किसी आकस्मिक हमले से अपनी उत्तरी सीमाओं की रक्षा करने में भारत की क्षमताओं को तो रेखांकित किया ही गया है, यह भी कहा गया है कि भारत सतत रूप से दक्षिण एशियाई सुरक्षा के मुख्य संरक्षक की भूमिका निभा रहा है। भले ही चुनाव प्रचार के दौरान राष्ट्रपति जो बाइडन ‘हिन्द-प्रशांत’ शब्द-युग्म का इस्तेमाल करने से बचते दिखे हों, लेकिन शीर्ष अमरीकी कूटनीतिज्ञ कर्ट एम. कैम्पबेल को ‘हिन्द-प्रशांत समन्वयक’ नियुक्त करके जो बाइडन प्रशासन ने चीन के प्रति नीतियों को लेकर सहयोगियों व साझेदारों की आशंकाओं को निर्मूल करने का प्रयास ही किया है। महत्त्वपूर्ण है कि अमरीका के ‘हिन्द-प्रशांत’ शब्द-युग्म को तवज्जो देने के चलते भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के कुछ देशों जैसे फ्रांस, जर्मनी और यूके को हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में बड़ी भूमिका निभाने का प्रोत्साहन मिलता है। चीन के प्रति ट्रंप प्रशासन की नीतियों को पलटना बाइडन के लिए इसलिए भी मुश्किल है।
वर्ष 2020 में चीन व अमरीका के बीच तकनीकी प्रतिस्पर्धा चरम पर रही। टिकटॉक और वीचैट को प्रतिबंधित करने का आदेश देते हुए ट्रंप ने राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी निर्णय के लिए भारत का उदाहरण भी दिया था। हालांकि चीन स्वयं को अमरीका के दबाव से मुक्त करने की कोशिश में लगा हुआ है। हाल ही चीन ने यूरोपीय संघ के साथ नए मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर भी किए हैं। भले ही चीन के लिए यह राहत की बात हो लेकिन अमरीका-चीन के बीच तकनीकी क्षेत्र में चल रहा संघर्ष 2021 में खत्म होता दिखाई नहीं देता। दूसरी ओर, ऑस्ट्रेलिया के थिंक टैंक के साथ विचार-विमर्श के दौरान हाल ही भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी कहा था कि भारत-चीन संबंध ‘गंभीर रूप’ से खराब हो चुके हैं और इनका फिर से सुधरना मुश्किल होगा। जैसे चीन अपनी सेना के आधुनिकीकरण पर बल दे रहा है, वैसे ही भारत को भी सीमा पर और समुद्र क्षेत्र में बहुआयामी खतरे को देखते हुए अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाने और अन्य महाशक्तियों की भांति दीर्घावधि नीति की परम्परा स्थापित करने की जरूरत है, जो फिलहाल चुनाव कार्यक्रमों व नौकरशाही के अनुरूप और काफी छोटी अवधि के लिए होती है।
बाइडन जानते हैं कि हालिया वर्षों में भारत के साथ संबंध प्रगाढ़ करने में अमरीका ने काफी निवेश किया है। हालांकि इसकी एक वजह चीन के बढ़ते प्रभुत्व से मुकाबला करना रही। भारत की ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ की पैरवी अमरीका के साथ द्विपक्षीय संबंधों में रुकावट भी नहीं बनी। कारण, दोनों देशों के मौलिक सिद्धांतों में समानता है, जिसके बल पर भारत की अमरीका के साथ रणनीतिक साझेदारी सुदृढ़ हुई है। ऐसे में विश्व के ये दोनों देश ही हैं जो आज मिलकर चारों रणनीतिक चुनौतियों- भू-सामरिक, आर्थिक, तकनीकी और सुशासन- पर चीन की बढ़त को संतुलित करने में सक्षम हैं।