अनेक पाठकों ने प्रतिक्रया व्यक्त की है। प्रस्तुत हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं -
चर्चा न होना लोकतंत्र पर चोट
लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोकसभा यानी निचला सदन जनता का प्रतिनिधित्व करता है और राज्यसभा यानी उच्च सदन राज्यों का, ऐसे में हर बिल को पर्याप्त विचार विमर्श, तर्क-वितर्क के साथ परखा जाना जरूरी है। राजनीतिक स्वार्थ और पार्टी हित को ध्यान में रख विस्तृत सार्वजनिक हित का उल्लंघन लोकतंत्र पर चोट के समान है। सभी बिलों पर परिचर्चा जनता को भरोसा दिलाती है कि संबंधित प्रस्ताव आमजन के हित में ही होगा।
- डॉ. राजीव कुमार, जयपुर
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विधेयकों को बहस बिना पारित करना अलोकतांत्रिक
संसद के संचालन में सत्ता पक्ष एवं विपक्ष दोनों पक्षों की भूमिका होती है। संसद में बहस के बिना विधेयकों को पारित करना न लोकतंत्र के हित में है न देश के। संसद को दलगत राजनीति का अखाड़ा न बनाया जाए। संसद की गरिमा एवं महत्ता बनाए रखने के लिए विधेयकों पर बहस जरूरी है और बिना चर्चा विधेयकों को मंजूरी दिए जाने से लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवाल उठना लाजिमी है। संसद लोकतंत्र का सर्वोच्च मंदिर है। बहस के बिना विधेयकों को मंजूरी देने से इसकी गरिमा एवं महत्व को क्षति पहुंचना स्वाभाविक है। संसद में बहस के बिना विधेयकों को मंजूरी देना अलोकतांत्रिक कदम है।
- सतीश उपाध्याय, मनेंद्रगढ़, छत्तीसगढ़
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सार्थक चर्चा से सकारात्मक परिणाम संभव
संसद में यदि सार्थक चर्चा के साथ विधेयकों को पारित किया जाए तो इससे सुचारु और त्वरित निर्णयों की संभावना को बढ़ावा मिलेगा, जिससे सरकार सकारात्मक परिणाम प्राप्त कर सकती है। यह समय की बचत कर सकती है और देश की प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करने में मदद कर सकती है। यदि कोई चर्चा नहीं होती तो इससे विचारशीलता की कमी हो सकती है, जो लोकतंत्र के निर्णयों की गुणवत्ता और समर्थन को कमजोर कर सकता है। संसदीय परिचर्चा विभिन्न दृष्टिकोणों को समझने और सामाजिक सहमति को जांचने का महत्वपूर्ण माध्यम होता है।
- प्रिंस, श्रीगंगानगर
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सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष भी जिम्मेदार
किसी भी लोकतंत्र में पक्ष और विपक्ष गाड़ी के दो पहियों की तरह होते हैं। अगर सरकार सदन में कोई विधेयक विचाराधीन रखती है तो विपक्ष की जिम्मेदारी है कि उस पर तर्कसंगत बहस करे और ध्यान से सुने लेकिन विपक्ष हंगामा शुरू कर देता है और बिना बहस के विधेयक पास कर दिया जाता है। यह प्रवृत्ति निश्चित ही लोकतंत्र के हित मे नहीं है। विपक्ष की उतनी ही जिम्मेदारी है जितनी सरकार की। विपक्ष को हंगामा करने की बजाय जनता के हित-अहित के बारे में विचार करना चाहिए।
- लता अग्रवाल, चित्तौड़गढ़
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विधेयकों पर बहस नहीं, तो संसद का औचित्य नहीं
संसद में बहस के बिना विधेयकों को मंजूरी लोकतंत्र का मजाक उड़ाना ही कहा जा सकता है। चूंकि संसद की गरिमा व मर्यादा को बनाए रखने के लिए विधेयकों पर पूरी बहस होनी चाहिए। इसके साथ ही साथ विपक्ष को भी चाहिए कि वह केवल विरोध के लिए विरोध न करे और अपना पक्ष सदन में पूरी ईमानदारी व निष्ठा के साथ रखे ताकि विधेयक सही व जनहित में पारित हो सकें। बिना बहस के हर बार अगर विधेयक पारित होने लग जाएंगे तो संसद का औचित्य ही समाप्त हो जाएगा । सता पक्ष को भी चाहिए कि वह विधेयकों को पारित कराने में जल्दबाजी न करे।
- सुनील कुमार माथुर, जोधपुर