20 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

दिल्ली की जहरीली हवा, लेकिन समाधान अब भी धुंधला है

हवा चलने से सुधार के बावजूद एक्यूआइ 300 से ऊपर ही है, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद गंभीर है, जिसका परिणाम भी अस्पतालों में मरीजों की बढ़ती संख्या के रूप में सामने आने लगा है।

3 min read
Google source verification

जयपुर

image

Opinion Desk

Dec 19, 2025

राज कुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक

संसद में चर्चा जब होगी, तब होगी, लेकिन दिल्लीवासियों की वायु प्रदूषण से घुटती सांसों को राहत मिलती नहीं दिखती। दिवाली से गहराये संकट से हवा और बारिश ही बीच में कुछ राहत दिला पाई, लेकिन पिछले सप्ताहांत से सांसें फिर घुटने लगी हैं।दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआइ) 400 पार पहुंच गया। ग्रेडेड रेस्पांस एक्शन प्लान (ग्रैप) दिन में दो बार अपडेट करना पड़ा। ग्रैप का फैसला अक्सर देर शाम किया जाता है, ताकि अगले दिन से लोग अमल कर सकें, लेकिन 13 दिसंबर को यह काम दिन में दो बार करना पड़ा। नतीजतन वायु गुणवत्ता आयोग की सब कमेटी ने दिल्ली-एनसीआर में ग्रैप-4 लगा दिया। फिर भी एक्यूआइ आने वाले दिनों में 500 तक पहुंच गया।

हवा चलने से सुधार के बावजूद एक्यूआइ 300 से ऊपर ही है, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद गंभीर है, जिसका परिणाम भी अस्पतालों में मरीजों की बढ़ती संख्या के रूप में सामने आने लगा है। सरकार की संतुष्टि का पैमाना पता नहीं, पर विशेषज्ञों के मुताबिक 1 से 50 एक्यूआइ तक हवा स्वास्थ्य के लिए अच्छी है। 100 तक एक्यूआइ भी संतोषजनक है, लेकिन साल में गिने-चुने दिन ही वैसी साफ हवा नसीब होती है। दिल्ली-एनसीआर वासियों के लिए सांसों का संकट नया नहीं है। एक दशक से वे यह संकट झेल रहे हैं, जिसका ठीकरा दिवाली पर पटाखों और पड़ोसी राज्यों में जलाई जाने वाली पराली के सिर फोड़ दिया जाता है।


दिल्ली सरकार की पैरवी पर सर्वोच्च न्यायालय ने अरसे बाद दिवाली पर सीमित अवधि के लिए ग्रीन पटाखों की अनुमति दी थी। अगले दिन एक्यूआइ गंभीरतम श्रेणी में पहुंच जाना अवधि की सीमा और ग्रीन पटाखों की व्यावहारिकता पर सवालिया निशान लगा गया। वैसे पटाखों और पराली का वायु प्रदूषण में योगदान सीमित अवधि तक ही रहता है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायर्नमेंट (सीएसई) का कहना है कि पराली अब मुख्य खलनायक नहीं। पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं घटी हैं और वायु प्रदूषण में स्थानीय कारणों का योगदान 85 प्रतिशत तक है।


अक्टूबर-नवंबर में ज्यादातर दिनों वायु प्रदूषण में पराली का योगदान पांच प्रतिशत के आसपास रहा। सीएसई का अध्ययन बताता है कि वायु प्रदूषण के लिए मुख्य खलनायक वाहन, उद्योग, बिजली संयंत्र, भवन निर्माण आदि हैं। दिल्ली में बीएस-6 से पुराने वाहनों की एंट्री बंद करते हुए बिना प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र (पीयूसी) के पेट्रोल-डीजल देने पर रोक लगा दी गई है। पुराने वाहनों के दिल्ली में प्रवेश पर रोक लगाने का अधिकार सरकार को हो सकता है, पर वैकल्पिक व्यवस्था कौन करेगा? निजी वाहनों का उपयोग कम करने के लिए दुनियाभर में आजमाया गया कारगर उपाय विश्वसनीय बेहतर सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था है। पूरे देश की तो छोडि़ए, राजधानी दिल्ली और एनसीआर में भी सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। मेट्रो-विस्तार और गिनती की इलेक्ट्रिक बसों के अलावा सार्वजनिक परिवहन को बेहतर बनाने के लिए कुछ नहीं किया गया।

इन दिनों चिकित्सक दिल्ली-एनसीआर छोड़ देने की सलाह देते हैं, पर कितने लोग ऐसा कर सकते हैं? फिर हफ्ते-दो हफ्ते के लिए बेहतर एक्यूआइ वाले क्षेत्रों में जाकर भी वापस तो यहीं लौटना पड़ेगा। सर्वोच्च न्यायालय सांस लेने लायक साफ हवा नागरिकों का मौलिक अधिकार बता चुका है, लेकिन उसका हनन करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई का इंतजार है। स्थायी समाधान के लिए दीर्घकालीन योजनाओं पर काम करने के बजाय आग लगने पर कुआं खोदने की मानसिकता भी बड़ी समस्या है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी खतरे से निपटने के लिए दीर्घकालिक उपायों पर पुनर्विचार की जरूरत बताई है।


डॉक्टरों ने दिसंबर के पहले सप्ताह में देशभर में खतरनाक स्तर पर पहुंच चुके प्रदूषण को 'हेल्थ इमरजेंसी' बताया, लेकिन जनता को वर्क फ्रॉम होम, ऑनलाइन स्कूल और मास्क की नसीहत के बीच ही फुटबॉल के जादूगर लियोनल मैसी दिल्ली आए तो एक झलक पाने के लिए स्टेडियम में हजारों लोग पहुंचे। सीएम रेखा गुप्ता भी स्टेडियम गई पर मास्क पहनने की जरूरत बहुत कम लोगों ने महसूस की। यह है हालात और हमारी गंभीरता का विरोधाभास!