
वेद माथुर
विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण) बिल, 2025 (वीबी जी राम जी) को केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोकसभा में चर्चा के लिए प्रस्तुत किया है, जिसमें महात्मा गांधी की दृष्टि के अनुरूप आत्मनिर्भर, गरीबी-मुक्त और समृद्ध गांवों के निर्माण पर जोर दिया गया। इस नई योजना में ग्रामीण परिवारों को 100 की बजाय 125 दिनों की रोजगार गारंटी दी जा रही है, साथ ही फोकस केवल मजदूरी पर नहीं, बल्कि जल संरक्षण, ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर, आजीविका संबंधी परिसंपत्तियों और मौसम आपदाओं से निपटने जैसे टिकाऊ कार्यों पर है। उनके अनुसार यह विधेयक विकसित भारत का सपना साकार करेगा और गांवों को आत्मनिर्भर बनाएगा, जो महात्मा गांधी का भी सपना था।
पुरानी मनरेगा योजना में भ्रष्टाचार की व्यापक शिकायतें रही हैं, स्थायी आधारभूत ढांचे का निर्माण कम हुआ और अक्सर बिखरे हुए कामों से दीर्घकालिक लाभ नहीं मिला, फिर भी इस योजना ने भूख के खिलाफ संघर्ष कर रहे गरीबों को तात्कालिक राहत प्रदान की।
विपक्ष ने नई योजना पर आरोप लगाया कि यह कानूनी रूप से प्रवर्तनीय अधिकार को कमजोर कर केंद्र संचालित कार्यक्रम में बदल रही है, वित्तीय बोझ राज्यों पर डाल रही है और ग्रामीण गरीबों की सुरक्षा खत्म कर रही है।
नई योजना में डिजिटल निगरानी मजबूत करने, कार्यों को टिकाऊ संपत्तियों से जोडऩे और चरम कृषि मौसम में कार्य रोकने जैसे प्रावधान हैं लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या केवल रोजगार गारंटी योजनाओं से गांवों का सच्चा विकास हो पाएगा या इसके लिए कुछ और उपाय भी जरूरी हैं? भारत में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों का सकल मूल्य संवर्धन में हिस्सा वित्त वर्ष 2024-25 में लगभग 18 प्रतिशत है, जबकि कार्यबल का करीब 46 प्रतिशत हिस्सा अब भी कृषि पर निर्भर है। यह असंतुलन ग्रामीण क्षेत्रों में छिपी बेरोजगारी और कम उत्पादकता की गहन चुनौती को दर्शाता है। वर्ष 2006 से अब तक केंद्र सरकार ने मनरेगा पर करीब 10 लाख करोड़ रुपए से अधिक (केंद्र द्वारा जारी राशि) खर्च किए हैं।
मनरेगा ने करोड़ों ग्रामीण परिवारों को आय सुरक्षा दी, महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई (वित्त वर्ष 2024-25 में महिलाओं के कार्य दिवसों का हिस्सा लगभग 58 प्रतिशत), पलायन रोका और जल संरक्षण जैसी परिसंपत्तियां बनाईं लेकिन भ्रष्टाचार, भुगतान में देरी, कम गुणवत्ता वाले कार्य और कृषि सीजन में मजदूरों की कमी जैसी समस्याएं भी रहीं। योजना ने कृषि पर निर्भरता कम करने में ज्यादा सफलता नहीं पाई। कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (सीएजी) की रिपोर्टों में मनरेगा के क्रियान्वयन पर यह प्रमुख आपत्तियों की गई हैं—अपूर्ण कार्यों की बड़ी संख्या, मजदूरी भुगतान में देरी, फर्जी लाभार्थी और मस्टर रोल में हेराफेरी, गरीब राज्यों में कम फंड उपयोग, सामाजिक ऑडिट की कमी तथा निगरानी की कमियां, जिससे योजना की प्रभावशीलता प्रभावित हुई। इन आपत्तियों के निराकरण के लिए प्रस्तावित विकसित भारत-जी राम जी (वीबी-जी राम जी) विधेयक में जियो-टैगिंग, एआइ आधारित ऑडिट, जीपीएस मॉनिटरिंग, बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण तथा प्रत्येक ग्राम पंचायत में वर्ष में दो बार सामाजिक ऑडिट जैसे मजबूत प्रावधान किए गए हैं, जो पारदर्शिता बढ़ाकर भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को रोकने में सहायक होंगे।
पुरानी मनरेगा में अकुशल मजदूरी का पूरा खर्च केंद्र वहन करता था, जबकि सामग्री खर्च में केंद्र का हिस्सा 75 प्रतिशत या अधिक था। कुल मिलाकर केंद्र का बोझ प्रमुख था लेकिन नई योजना में 60:40 (केंद्र:राज्य) अनुपात होगा। इससे राज्यों की जवाबदेही बढ़ेगी, लेकिन गरीब राज्यों पर बोझ पड़ेगा। इस योजना का एक महत्वपूर्ण परिणाम यह होगा कि राज्य सरकारों की आर्थिक हिस्सेदारी बढ़ाने के बाद उनके पास 'मुफ्त की रेवडिय़ों' के लिए फंड नहीं बचेगा।
रोजगार गारंटी योजनाएं राहत देती हैं लेकिन समृद्धि के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण जरूरी है। गांवों के समग्र विकास और गरीबी उन्मूलन के लिए इस योजना के अलावा आवश्यक है कि उन्नत बीज, खाद, ड्रिप सिंचाई, मिट्टी परीक्षण आदि के माध्यम से कृषि उत्पादकता बढ़ाई जाए। वीबी जी राम जी कार्यों को खेत तालाब, सिंचाई संरचनाओं से जोडऩा होगा, ताकि ये उत्पादक बनें।
किसानों की आय बढ़ाने के लिए पशुपालन को नए सिरे से फोकस करना होगा। उन्नत नस्ल के पशु उपलब्ध कराकर डेयरी,मुर्गीपालन आदि को प्रोत्साहित करना होगा। भंडारण और मार्केटिंग उत्पादकता जितने ही महत्वपूर्ण हैं। कोल्ड स्टोरेज, गोदाम बढ़ाएं ताकि फसल बर्बाद न हो और किसान उचित दाम पाएं। आज भी हमारे यहां भंडारण की अफोर्डेबल कीमत पर सुविधा उपलब्ध नहीं होने से कृषि उपज का एक बड़ा भाग नष्ट हो जाता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में अकुशल श्रमिकों की भरमार है। स्किल डेवलपमेंट के माध्यम से न केवल इन्हें कुशल बनाया जाना चाहिए। वरन कृषि क्षेत्र में लगे अतिरिक्त और अनुत्पादक श्रमिकों को औद्योगिक और सेवा क्षेत्र में लाना होगा। ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों के साथ-साथ लेबर इंटेंसिव बड़े उद्योग भी लगाए जाने चाहिए।
ऐसे ग्रामीण शिक्षा संस्थान बनाए जाएं, जहां किसानों को उन्नत खेती, युवाओं को कंप्यूटर ट्रेनिंग और महिलाओं को गृह उद्योग (हस्तशिल्प, सिलाई) की स्किल मिले। क्रेच सुविधा अनिवार्य की जाए ताकि बच्चों की देखभाल होने से महिलाओं की भागीदारी बढ़ सके। मनरेगा ने भुखमरी रोकी, गरीबी घटाई, गांवों से पलायन कम किया, लेकिन यह योजना अकेले पर्याप्त नहीं है। कृषि पर निर्भरता बनी हुई है क्योंकि मूल समस्या उत्पादकता और स्किल की कमी है। वीबी जी राम जी यदि पारदर्शिता और गुणवत्ता पर फोकस करती है, तो यह ग्रामीण परिवर्तन का औजार बन सकती है लेकिन सच्ची समृद्धि तभी आएगी जब हम राहत के साथ समग्र विकास, कृषि सुधार, स्किलिंग, उद्योग लगाने आदि पर जोर दें। विकसित भारत का सपना गांवों से ही साकार होगा। इसके लिए रोजगार गारंटी को केवल सुरक्षा जाल नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता का माध्यम बनाना होगा। यह भी महत्वपूर्ण है कि सरकारी योजनाओं के अंतर्गत आने वाले धन को भ्रष्टाचार के माध्यम से खाने वाले लोगों के खिलाफ कड़ी निगरानी और सख्त कार्रवाई के लिए प्रभावी तंत्र बने।
Updated on:
19 Dec 2025 07:58 pm
Published on:
19 Dec 2025 06:08 pm
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