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संपादकीय: ऑनलाइन पहचान की सुरक्षा पर संकट के बादल

हर अकाउंट के लिए अलग-अलग, मजबूत पासवर्ड बनाएं। टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन को कभी बंद न करें।

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जयपुर

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arun Kumar

Dec 19, 2025

तकनीक के इस्तेमाल में दुनिया भले ही आगे बढ़ रही हो, लेकिन डिजिटल युग की इस चकाचौंध में सबसे बड़ा खतरा हमारी ऑनलाइन पहचान की सुरक्षा पर नजर आ रहा है। अमरीकी खुफिया एजेंसी एफबीआइ की ताजा कार्रवाई इस खतरे को खुुलकर उजागर करती है। एफबीआइ ने जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया है उसके पास 63 करोड़ पासवर्ड का डेटाबेस है, जो अलग-अलग तरीकों से चोरी कर इकठ्ठे किए गए। जाहिर है इसमें साइबर दुनिया की ऐसी नाकामी भी सामने आई है, जिसमें डेटा सुरक्षा इंतजामों पर सवाल खड़े होते हैं। यह कोई मामूली लीक नहीं है। सवाल यही उठता है कि इतने बड़े पैमाने पर पासवर्ड क्यों व कैसे चोरी हो रहे हैं। हमारे बैंक खाते, सोशल मीडिया प्रोफाइल, ई-कॉमर्स लॉगिन, सरकारी सेवाएं और निजी संवाद-सब पासवर्ड आधारित हैं। ऐसे में इस पैमाने पर डेटा लीक का अर्थ है करोड़ों लोगों की निजी जानकारी गलत हाथों में जाना। अहम सवाल यह भी है कि जब एक व्यक्ति के पास ही करोड़ों पासवर्ड हों, तो दुनिया में कितने ऐसे लोग होंगे, जिनके पास इससे भी ज्यादा पासवर्ड होंगे? जाहिर है, हर साल करोड़ों पासवर्ड लीक होते हैं। बड़ा सवाल यही है कि हमारी सरकारें, बैंक और टेक कंपनियां क्या सचमुच डेटा सुरक्षा के लिए गंभीर हैं?

आखिरकार साइबर ठग इन लीक पासवर्ड से क्या करते हैं? जाहिर है वे एक ही ई-मेल या मोबाइल नंबर पर क्रेडेंशियल स्टफिंग अटैक करते हैं, यानी एक पासवर्ड से कई अकाउंट्स हैक कर लेते हैं। सच तो यह है कि बैंक खाते, निजी जानकारी, क्रिप्टो वॉलेट, ई-कॉमर्स, सोशल मीडिया अकाउंट सब कुछ खतरे में हैं। भले ही हम यह मान बैठे हैं कि हमारा पासवर्ड व डेटा सुरक्षित है। डर यह सोचकर भी लगता है कि जब इतने बड़े पैमाने पर पासवर्ड लीक हो सकते हैं, तो केंद्रीय बैंकों, स्टॉक एक्सचेंजों या बड़े वित्तीय संस्थानों के पासवर्ड साइबर ठगों के हाथ लग जाएं तो क्या होगा? ऐसा हुआ तो हमारा पूरा वित्तीय सिस्टम इन साइबर ठगों के हाथों में जाते देर नहीं लगने वाली। यह बात और है कि सरकारें और वित्तीय संस्थान साइबर सुरक्षा के नित नए दावे करते रहे हैं। लेकिन देखने में यह भी आता है कि कई बार सुरक्षा मानकोंत कनीक के इस्तेमाल में दुनिया भले ही आगे बढ़ रही हो, लेकिन डिजिटल युग की इस चकाचौंध में सबसे बड़ा खतरा हमारी ऑनलाइन पहचान की सुरक्षा पर नजर आ रहा है।

अमरीकी खुफिया एजेंसी एफबीआइ की ताजा कार्रवाई इस खतरे को खुुलकर उजागर करती है। एफबीआइ ने जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया है उसके पास 63 करोड़ पासवर्ड का डेटाबेस है, जो अलग-अलग तरीकों से चोरी कर इकठ्ठे किए गए। जाहिर है इसमें साइबर दुनिया की ऐसी नाकामी भी सामने आई है, जिसमें डेटा सुरक्षा इंतजामों पर सवाल खड़े होते हैं। यह कोई मामूली लीक नहीं है। सवाल यही उठता है कि इतने बड़े पैमाने पर पासवर्ड क्यों व कैसे चोरी हो रहे हैं। हमारे बैंक खाते, सोशल मीडिया प्रोफाइल, ई-कॉमर्स लॉगिन, सरकारी सेवाएं और निजी संवाद-सब पासवर्ड आधारित हैं। ऐसे में इस पैमाने पर डेटा लीक का अर्थ है करोड़ों लोगों की निजी जानकारी गलत हाथों में जाना।
अहम सवाल यह भी है कि जब एक व्यक्ति के पास ही करोड़ों पासवर्ड हों, तो दुनिया में कितने ऐसे लोग होंगे, जिनके पास इससे भी ज्यादा पासवर्ड होंगे? जाहिर है, हर साल करोड़ों पासवर्ड लीक होते हैं। बड़ा सवाल यही है कि हमारी सरकारें, बैंक और टेक कंपनियां क्या सचमुच डेटा सुरक्षा के लिए गंभीर हैं? आखिरकार साइबर ठग इन लीक पासवर्ड से क्या करते हैं? जाहिर है वे एक ही ई-मेल या मोबाइल नंबर पर क्रेडेंशियल स्टफिंग अटैक करते हैं, यानी एक पासवर्ड से कई अकाउंट्स हैक कर लेते हैं। सच तो यह है कि बैंक खाते, निजी जानकारी, क्रिप्टो वॉलेट, ई-कॉमर्स, सोशल मीडिया अकाउंट सब कुछ खतरे में हैं।

भले ही हम यह मान बैठे हैं कि हमारा पासवर्ड व डेटा सुरक्षित है। डर यह सोचकर भी लगता है कि जब इतने बड़े पैमाने पर पासवर्ड लीक हो सकते हैं, तो केंद्रीय बैंकों, स्टॉक एक्सचेंजों या बड़े वित्तीय संस्थानों के पासवर्ड साइबर ठगों के हाथ लग जाएं तो क्या होगा? ऐसा हुआ तो हमारा पूरा वित्तीय सिस्टम इन साइबर ठगों के हाथों में जाते देर नहीं लगने वाली। यह बात और है कि सरकारें और वित्तीय संस्थान साइबर सुरक्षा के नित नए दावे करते रहे हैं।

लेकिन देखने में यह भी आता है कि कई बार सुरक्षा मानकों को मजबूती देने के बजाय कंपनियां सुविधा और गति को प्राथमिकता देती हैं। मल्टी-फैक्टर ऑथेंटिकेशन, नियमित सुरक्षा ऑडिट और पारदर्शी रिपोर्टिंग जैसे उपाय अभी भी कई प्लेटफॉर्म पर उपेक्षित से हैं। पासवर्ड स्टोर करने की पुरानी और असुरक्षित प्रणाली, कमजोर एन्क्रिप्शन और हर स्तर पर लापरवाही ऐसी डिजिटल त्रासदी को जन्म दे रहे हैं।उपयोगकर्ता के रूप में हमें भी सावधानियां बरतनी होंगी। हर जगह एक ही पासवर्ड इस्तेमाल नहीं करें। हर अकाउंट के लिए अलग-अलग, मजबूत पासवर्ड बनाएं। टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन को कभी बंद न करें। संदिग्ध लिंक पर तो कतई क्लिक नहीं करें। कुल मिलाकर सतर्कता ही बचाव है।