
अरुण जोशी ,दक्षिण एशियाई कूटनीतिक मामलोंके जानकार
ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में बॉन्डी बीच पर गत रविवार को जो कुछ हुआ, वह महज एक हिंसक घटना नहीं, बल्कि सुनियोजित आतंकी हमला था। इसका सबक केवल ऑस्ट्रेलिया तक सीमित नहीं, बल्कि उन सभी देशों के लिए गंभीर चेतावनी है जो विश्वस्तरीय पर्यटन स्थलों के लिए जाने जाते हैं। इस हमले के दो प्रमुख पहलू थे- पहला, यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल पर किया गया और दूसरा इसमें यहूदियों द्वारा मनाए जा रहे हनुक्का पर्व को निशाना बनाया गया। स्पष्ट रूप से, यह पर्यटन व धार्मिक आस्था पर प्रहार था। अब तक की जांच में यह सामने आया है कि इस हमले के आरोपी इस्लामिक स्टेट की विचारधारा से प्रभावित थे। इनमें भारतीय मूल का हमलावर साजिद अकरम हैदराबाद से संबंधित था। वह बेहतर भविष्य की तलाश में 27 वर्ष पहले ऑस्ट्रेलिया गया था, किंतु इसके बावजूद वह इस्लामिक स्टेट की कट्टरपंथी विचारधारा के प्रभाव में आने से नहीं बच सका।
इस्लामिक स्टेट से प्रेरित विचारधाराओं की झलक भारत में भी पहले देखी जा चुकी है।
अप्रेल 2025 का पहलगाम हमला इसी मानसिकता का प्रत्यक्ष उदाहरण था। वह एक सुनियोजित हिंदू-विरोधी आतंकी कृत्य था, क्योंकि आतंकियों ने पीडि़तों का चयन उनकी धार्मिक पहचान के आधार पर किया और उनके धर्म की पुष्टि के बाद गोली मारी गई। बॉन्डी बीच में अपराधियों को यह पहले से पता था कि वहां कौन लोग हैं। दुनियाभर के पर्यटन स्थल आज गंभीर खतरे में हैं। यदि बॉन्डी बीच आतंकी हमले का निशाना बन सकता है, तो दुनिया का कोई भी पर्यटन स्थल सुरक्षित नहीं। यह स्थिति विश्व समुदाय को आतंकवाद के इन नए आयामों और इनके प्रभावों पर गंभीरता से विचार करने के लिए विवश करती है। बॉन्डी बीच हमला ऑस्ट्रेलिया के इतिहास के सबसे घातक आतंकी हमलों में से एक माना जा रहा है। ऑस्ट्रेलियाई पुलिस हमलावरों के उद्देश्यों की जांच कर रही है। यह जानने की कोशिश की जा रही है कि उनके पीछे कौन था और उन्हें इसके लिए किसने प्रेरित किया। जांच एजेंसियों का हमले के आंतरिक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करना स्वाभाविक है, लेकिन सच्चाई यह है कि यह उतना ही बाहरी मुद्दा भी है, जितना आंतरिक। पर्यटन स्थल किसी एक भूगोल में स्थित होते हैं, किंतु उनकी छवि अंतरराष्ट्रीय होती है।
आतंकी हमले किसी भी देश की छवि को पूरी तरह बदल देते हैं। बॉन्डी बीच और ऑस्ट्रेलिया में पर्यटकों का भरोसा लौटने में समय लगेगा। अब ऑस्ट्रेलिया को अपने पर्यटन स्थलों- विशेषकर विश्व प्रसिद्ध समुद्र तटों की व्यापक सुरक्षा समीक्षा करनी होगी। आतंकवादी पर्यटन स्थलों पर कई उद्देश्यों से हमला करते हैं। यह केवल एक क्षणिक घटना नहीं होती। गोली और बमों की गूंज उस समय से कहीं अधिक समय तक सुनाई देती है। सुरक्षा इंतजाम कड़े कर दिए जाते हैं, पुलिस और सेना की तैनाती अपने आप में अशांति का संकेत बन जाती है। उदाहरण के लिए, सितंबर 2001 में अमरीका पर हुए 9/11 आतंकी हमले का प्रभाव वर्षों तक रहा। पर्यटक न्यूयॉर्क जाने से कतराने लगे, पर्यटन में भारी गिरावट आई। ऑस्ट्रेलियाई सरकार और उसकी सुरक्षा व्यवस्था अब कठघरे में है। सवाल उठ रहे हैं कि आतंकियों को हथियार कहां से मिले और उनके इरादों की भनक पहले क्यों नहीं लगी, जबकि यह ज्ञात था कि उनमें से एक 2019 में ही पुलिस की जानकारी में आ चुका था।
ऐसा तब होता है, जब आतंकवादी इकोसिस्टम के तत्वों को नजरअंदाज कर दिया जाता है।
आतंकवाद कभी अकेले संचालित नहीं होता। तथाकथित 'लोन वुल्फ' हमलों के भी अन्य कडिय़ों से संबंध होते हैं। एक छोटी-सी चूक भी बड़ा संकट पैदा कर सकती है और ऑस्ट्रेलिया में वही हुआ। जांच आवश्यक है, किंतु शुरुआत में ही इकोसिस्टम पर प्रहार करना कहीं अधिक प्रभावी और जीवनरक्षक होता है। हालांकि, हमलों की नई-नई तकनीकों और तरीकों के कारण आतंकवादियों की पहचान कर पाना एक अत्यंत जटिल चुनौती है। कश्मीर और मुंबई से लेकर इंडोनेशिया के बाली और अब ऑस्ट्रेलिया तक के आतंकी हमलों के अध्ययन से एक स्पष्ट पैटर्न उभरता है कि इस्लामिक स्टेट से प्रेरित वैचारिक 'जंगजू' ही इस विनाश के लिए जिम्मेदार हैं। वे विधर्मियों पर हमला करना अपना धार्मिक कर्तव्य मानते हैं। पर्यटन स्थलों को निशाना बनाकर वे एक ओर संभावित पर्यटकों में भय फैलाकर अर्थव्यवस्थाओं को पंगु बनाते हैं, दूसरी ओर अपनी धार्मिक सर्वोच्चता में विश्वास रखने वाले मस्तिष्कों को प्रेरित करने का उद्देश्य साधते हैं।
वास्तविक खतरा यह है कि आतंकवाद के पीछे ऐसी वैचारिक हिंसा समुदायों के भीतर विवेकशील और तर्कसंगत सोच की जगह को संकुचित कर देती है। इसके दुष्परिणाम दूरगामी होते हैं। इस खतरे को केवल तभी निष्प्रभावी किया जा सकता है, जब ऐसे तत्वों के खिलाफ कठोर और पूर्व-निवारक कार्रवाई की जाए तथा ऐसा वातावरण बनाया जाए, जिसमें शांति और प्रगति की तर्कशीलता, आक्रामक जिहाद की विकृत अवधारणा पर हावी हो। भारत में ऐसे हमलों का खतरा ज्यादा है, क्योंकि बाहरी शक्तियां-विशेषकर पाकिस्तान इस्लामी श्रेष्ठता की विचारधारा के जरिए भारत को कमजोर करने के लिए प्रयासरत है। बॉन्डी बीच हमले में भारतीय मूल के व्यक्ति की संलिप्तता के बाद यह खतरा मंडरा रहा है कि और लोग भी इस तरह की चरमपंथी हिंसा की ओर आकर्षित हो सकते हैं। दिल्ली विस्फोट की जांच में पहले ही यह सामने आ चुका है कि चरमपंथी हिंसा की विचारधारा तेजी से फैल रही है और यह अब केवल कश्मीर तक सीमित नहीं रही। यही सबसे बड़ा व वास्तविक खतरा है। (ये लेखक के निजी विचार हैं)
Published on:
19 Dec 2025 03:44 pm
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