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विश्व ध्यान दिवस : आत्मचेतना से विश्वचेतना की ओर

यह दिवस मनुष्य को बाह्य भौतिक दौड़ से विराम लेकर अंतर्मुखी होने, आत्मसंवाद स्थापित करने और शांति-आधारित जीवन मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देता है।

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जयपुर

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Opinion Desk

Dec 19, 2025

प्रो आनंदप्रकाश त्रिपाठी, 'रत्नेश' लेखक एवं साहित्यकार, जैन विश्व भारती संस्थान
लाडनूं, राजस्थान

आधुनिक विश्व बाह्य प्रगति, वैज्ञानिक उपलब्धियों और तकनीकी चमत्कारों के शिखर पर अवश्य है, परंतु आंतरिक शांति, मानसिक संतुलन और आत्मिक स्थिरता की दृष्टि से वह गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है। तनाव, अवसाद, हिंसा, असहिष्णुता और अशांति ने मानवीय जीवन को जकड़ लिया है। ऐसे समय में ध्यान (Meditation) केवल एक आध्यात्मिक साधना न रहकर, समग्र मानवता के लिए जीवनोपयोगी अनुशासन बन गया है।ध्यान मानव जीवन में मानसिक शांति, आत्म-संयम और आंतरिक संतुलन का सशक्त साधन है, जो तनावग्रस्त आधुनिक जीवन में व्यक्ति को आत्मबोध और विवेक की ओर उन्मुख करता है। ध्यान के माध्यम से चित्त की चंचलता शांत होती है, एकाग्रता बढ़ती है और करुणा, सहिष्णुता व सकारात्मक दृष्टि का विकास होता है। इसी सार्वभौमिक महत्व को रेखांकित करने तथा वैश्विक स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य, आंतरिक शांति और मानवीय चेतना के उत्थान के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से विश्व ध्यान दिवस मनाया जाता है।

यह दिवस मनुष्य को बाह्य भौतिक दौड़ से विराम लेकर अंतर्मुखी होने, आत्मसंवाद स्थापित करने और शांति-आधारित जीवन मूल्यों को अपनाने की प्रेरणा देता है।इसी सार्वभौमिक महत्त्व को रेखांकित करने हेतु विश्व ध्यान दिवस मनाया जाता है, जो मानव को आत्मबोध से विश्वबोध की ओर ले जाने का प्रेरक अवसर प्रदान करता है। ध्यान भारतीय ज्ञान-परंपरा की वह अमूल्य धरोहर है, जिसने सहस्राब्दियों से मानव को आत्मज्ञान, शांति और करुणा का मार्ग दिखाया है। यह दिवस हमें स्मरण कराता है कि बाह्य जगत की विजय तभी सार्थक है जब आंतरिक जगत भी संतुलित और आलोकित हो।भारतीय दर्शन में ध्यान की अवधारणा अत्यंत प्राचीन, गहन और बहुआयामी है।

ऋग्वेद, उपनिषद, योगसूत्र, भगवद्गीता, बौद्ध और जैन आगम—सभी में ध्यान को आत्मोन्नति का अनिवार्य साधन माना गया है।पतंजलि योगसूत्र में ध्यान को अष्टांग योग का सप्तम सोपान कहा गया है- “तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम्।”अर्थात् चित्त का एक ही विषय में निरंतर प्रवाहित होना ध्यान है। यह चित्त-वृत्तियों के निरोध की प्रक्रिया है, जो अंततः समाधि की ओर ले जाती है। उपनिषदों में ध्यान को ब्रह्मानुभूति का साधन बताया गया है— “आत्मा वा अरे द्रष्टव्यः श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यः।”यहाँ ‘निदिध्यासन’ ही ध्यान है—अर्थात् आत्मतत्त्व पर निरंतर चिंतन।

वैदिक-उपनिषदिक ध्यान
में ध्यान आत्मा और ब्रह्म की एकता का साक्षात्कार कराता है। ‘सोऽहम्’ या ‘अहं ब्रह्मास्मि’ का भाव ध्यान का केंद्र है। भगवान बुद्ध ने समथा (चित्त की शांति) और विपश्यना (यथार्थ का दर्शन) के माध्यम से दुःख-निरोध का मार्ग बताया। बौद्ध ध्यान करुणा, मैत्री और प्रज्ञा को विकसित करता है। जैन दर्शन में ध्यान को धर्म्य ध्यान और शुक्ल ध्यान के रूप में आत्मशुद्धि का साधन माना गया है। अहिंसा, अपरिग्रह और संयम के साथ ध्यान आत्मा को कर्मबंधनों से मुक्त करता है। सिख धर्म में ध्यान प्रेम, समर्पण और ईश्वर-स्मरण के रूप में विकसित हुआ—नामस्मरण, जप और कीर्तन इसके साधन बने।

आधुनिक विज्ञान ने भी ध्यान के लाभों को स्वीकार किया है। न्यूरोसाइंस के अनुसार ध्यान से—मस्तिष्क में अल्फा और थीटा तरंगों की सक्रियता बढ़ती है, तनाव हार्मोन (कॉर्टिसोल) में कमी आती है, एकाग्रता, स्मृति और निर्णय क्षमता में वृद्धि होती है, अवसाद और चिंता में उल्लेखनीय कमी आती है। ध्यान केवल धार्मिक या आध्यात्मिक अभ्यास नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य का वैज्ञानिक उपाय बन चुका है।समकालीन भारतीय दर्शन में ध्यान को केवल मानसिक एकाग्रता की साधना न मानकरआत्म–विकास, चेतना–परिष्कार और सामाजिक कल्याण का प्रभावी साधन माना गया है। स्वामी विवेकानंद के अनुसार ध्यान आत्मा की अंतःशक्ति को जाग्रत करने की प्रक्रिया है। वे ध्यान को राजयोग का केंद्र मानते हैं, जहाँ मन की वृत्तियों को संयमित कर आत्मा की दिव्यता का साक्षात्कार संभव होता है। उनके लिए ध्यान आत्म–विश्वास, चरित्र–निर्माण और सेवा–भाव का आधार है। श्री अरविंद ने ध्यान को चेतना के उत्कर्ष से जोड़ा। उनके समग्र योग (Integral Yoga) में ध्यान के माध्यम से व्यक्ति सामान्य चेतना से ऊपर उठकर अतिचेतना (Supermind) की ओर अग्रसर होता है। उनके विचार में ध्यान व्यक्तिगत मुक्ति के साथ–साथ सामूहिक चेतना के रूपांतरण का साधन है। जिद्दू कृष्णमूर्ति ने परंपरागत ध्यान–विधियों से हटकर ‘चॉइसलेस अवेयरनेस’ (निर्विकल्प जागरूकता) पर बल दिया। उनके अनुसार ध्यान कोई अभ्यास नहीं, बल्कि प्रत्येक क्षण