
राजधानी रायपुर के सरोना में खारुन नदी के किनारे 28 एकड़ में कचरे का पहाड़ है। वर्षों से रायपुर शहर का टनों कचरा वहां रोजाना डंप किया जाता है। कितनी विडंबना की बात है कि पिछले एक दशक से स्वच्छता अभियान चल रहा है और कचरे को वैज्ञानिक तरीके से निपटान की प्रक्रिया अपनाई जा रही है, लेकिन रायपुर में कचरे का पहाड़ खड़ा होता गया और शहर से लेकर प्रदेश की सरकारें उसे देखती रहीं। इतने बड़े क्षेत्र में कचरा डंप करने से आसपास के लोगों को स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं होने लगीं। वहां से उठने वाली तीव्र दुर्गंध पूरे रायपुर में फैलने लगी। इतना ही नहीं, डंप कचरे की वजह से रायपुर की जीवनदायिनी खारुन भी प्रदूषित होने लगी। यह सब चलता रहा, पर सरकारें इस ओर ध्यान नहीं दे रही थीं। डंप कचरे की वजह से हो रहे प्रदूषण और लोगों की परेशानी को लेकर 'पत्रिका' लगातार सामने लाता रहा। इसके बाद एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी इस ओर ध्यान दिया। एनजीटी अगर इसे लेकर फटकार नहीं लगाता, तो शायद आगे भी ऐसे ही चलता रहता। एनजीटी ने 2019 में सरोना ट्रेंचिंग ग्राउंड में कचरा फेंकने पर रोक लगाई। एनजीटी के निर्देश पर सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट नियम के तहत अप्रैल 2021 तक कचरे का पहाड़ साफ कर वहां ऑक्सीजोन और खेल का मैदान बनाना था। लेकिन इसमें भी खेल हो गया, क्योंकि नेता-अफसर गठजोड़ को यहां ऊपरी कमाई का स्रोत मिल गया। हद तो यह हो गई कि उस जगह को साफ करने की बजाय वहां हरियाली दिखाने कचरे के पहाड़ पर ही डेढ़ करोड़ रुपए के पौधे रोप दिए गए, जोकि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए। पत्रिका ने सामाजिक दायित्व निभाते हुए फिर से इसके खिलाफ आवाज बुलंद की। आखिरकार सरकार को मैदान में आना पड़ा और प्रदेश के उपमुख्यमंत्री अरुण साव और महापौर मीनल चौबे सहित शासन-प्रशासन वहां पहुंचा। कचरे के पहाड़ के निपटान के लिए तीन माह की डेडलाइन तय की गई। शासन-प्रशासन को चाहिए कि प्रदेश में अब कहीं भी इस तरह कचरे का पहाड़ खड़ा न हो, इसकी नियमित मॉनीटरिंग करे और प्रदेशभर में कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निपटान की व्यवस्था करे।
-अनुपम राजीव राजवैद्य anupam.rajiv@in.patrika.com
संबंधित विषय:
Updated on:
19 Dec 2025 12:00 am
Published on:
18 Dec 2025 11:56 pm
बड़ी खबरें
View Allओपिनियन
ट्रेंडिंग
