
डॉ. सचिन बत्रा, वरिष्ठ पत्रकार एवं तकनीकी विशेषज्ञ
आज के दौर में डायरेक्ट टू होम के बढ़ते चलन ने हर सुविधा को सीधे घरों तक पहुंचाने का लक्ष्य दे दिया है। चिकित्सा यानी मेडिकल की दुनिया में दवाओं की होम डिलीवरी के बाद अब जांच की जटिल प्रक्रिया को आसान, सुलभ व सटीक विकल्पों से बदलने की मुहिम कई एआइ औजारों को जन्म दे रही है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह हो सकता है कि ऐसे नवाचार उपाय अत्यधिक जनसंख्या वाले देशों में अस्पतालों पर दबाव और समय पर मेडिकल सुविधा न मिल पाने की चुनौतीपूर्ण स्थितियों में मरीजों के लिए प्राणरक्षक साबित हो सकते हैं।हालांकि एक पक्ष यह भी है कि कम भरोसेमंद एआइ जांच से जीवन पर आंच भी आ सकती है, पर अगर एआइ के सटीक और डॉक्टरों से सर्टिफाइड एआइ टूल्स का उपयोग किया जाए तो गांव-गांव तक सेहत को राहत देना संभव हो जाएगा।
यदि दिल की बात करें तो टेक्सास के एक 14 वर्षीय बालक सिद्धार्थ नंदयाला ने सिर्केडियन नामक एक ऐसा एआइ ऐप ईजाद किया है, जो महज सात सेकंड में दिल की बीमारी की पहचान 96 प्रतिशत की सटीकता से करता है। क्लिनिकल ट्रायल में इसकी सफलता ने हृदय रोग की जांच में अब तक उपयोग की जा रही महंगी व अधिक समय लेने वाली तकनीक के सामने प्रारंभिक और सस्ता समाधान पेश किया है। खास बात यह है कि इससे आम आदमी भी शुरुआती दौर में रोग की पहचान कर सकता है।
इसी प्रकार जयपुर में एक निजी अस्पताल ने दावा किया है कि एआइ से हार्ट की एमआरआइ से यह फायदा है कि इससे मरीज की आर्टरी में कैल्शियम ब्लॉक की सटीक स्थिति जानने को मिलेगी, जिससे यह तय कर पाना आसान हो जाएगा कि मरीज का इलाज सिर्फ दवा से करना है या एंजियोप्लास्टी से। नागपुर में भी क्यूएक्सआर नामक एआइ औजार से टीबी रोग की पहचान की जा रही है। वहीं पंजाब में ब्रेस्ट संबंधी रोगों की स्क्रीनिंग के लिए पूरे प्रदेश में थर्मल इमेजिंग एआइ 'निरामई' का पायलट प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है। यही नहीं, सर्जरी के लिए भी एआइ बहुत उपयोगी साबित हो रहा है। पंजाब के इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेंसिक साइंस एंड क्रिमिनोलॉजी के वैज्ञानिकों ने ऐसा एआइ मॉडल बनाया है, जो कि विकृत मृत शरीर की पहचान करने के अलावा दुर्घटना में क्षतिग्रस्त जबड़े और दांतों को लगभग 95 फीसदी पूर्णता के साथ दोबारा बनाने में सक्षम है।
एआइ के औजारों के इन्हीं चमत्कारों के चलते इसे अपनाए जाने की रफ्तार भी रिकार्ड पार निकल चुकी है। एलन मस्क की एक पोस्ट याद आती है, जिसमें कहा था कि न्यूरालिंक ब्रेन चिप की मदद से आड्री क्रूज ने बीस साल बाद अपना नाम लिखा। बताया गया कि वह सिर्फ सोचकर अपने कंप्यूटर को नियंत्रित कर रही है। दरअसल आड्री ने यह सब एक चिप में टेलीपैथी कंट्रोल के जरिए किया, जिसमें चिप मस्तिष्क की तीव्र व तरंगात्मक गतिविधि से कंप्यूटर की-बोर्ड को नियंत्रित कर देता है। मांग और मुनाफे पर केंद्रित मेडिकल मॉडल्स के लिए एआइ औजारों के विकास व खोज पर भारी भरकम बजट भी खर्च किया जा रहा है। स्टेनफोर्ड एआइ इंडेक्स की रिपोर्ट के मुताबिक अमरीका में मेडिकल एआइ के लिए 2024 में निजी निवेश करीब 109 बिलियन डॉलर रहा। चीन ने एआइ समाधानों पर 9.3 बिलियन डॉलर, यूके ने 4.5 बिलियन डॉलर खर्च किए। भारत में निरामई ने पिछले साल 6 मिलियन डॉलर की परियोजना बनाई। चौंकाने वाली बात तो यह है कि रोजगारों में एआइ के कौशल की प्रमुखता ने आम आदमी को चिंता में डाल दिया है। अब लोगों को हाइ आइक्यू संतान चाहिए। इसके लिए भी लोग मेडिकल समाधानों से उपाय हासिल करने को लाखों रुपए खर्च करने पर आमादा हैं। कैलिफोर्निया के बर्किले में जीनोम प्रोजेक्ट के सह संस्थापक बेंसन टिल्सेन का कहना है कि जेनेटिक जांच के लिए कई माता-पिता 45 लाख रुपए तक खर्च कर रहे हैं।
बहरहाल यह सुखद है कि एक तरफ अनूठे एआइ समाधान व मरीजों के लिए ऐप आधारित सटीक जांच व सुझाव के विकल्प ईजाद किए जा रहे हैं। वहीं जनहित और धन से मनोवांछित हित हासिल करने की होड़ ने पेचीदा बहस को जन्म दे दिया है। मामला फिर वही एआइ को लेकर कठघरे में है कि एआइ टूल्स से जान बचाना तो ठीक, पर धनबल से अप्राकृतिक सुपर जनरेशन का जन्म कितना जायज होगा। ऐसे में हेल्थ एआइ को प्रोत्साहित कर वेल्थ एआइ पर नियमन की नकेल कसनी ही होगी।
Updated on:
18 Dec 2025 03:24 pm
Published on:
18 Dec 2025 03:23 pm
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