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जम्मू-कश्मीर: आखिर कब तक शहीद होते रहेंगे जवान!

कश्मीर को अपनी आन-बान-शान का प्रतीक बताने वाली भाजपा ने महबूबा मुफ्ती के साथ सरकार बनाकर सवा सौ करोड़ देशवासियों के साथ विश्वासघात क्यों किया?

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Urukram Sharma

Feb 10, 2018

indian army, stone pelting

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जम्मू-कश्मीर को कब तक राजनीतिक चौसर की तरह इस्तेमाल किया जाता रहेगा। कब तक आतंकी दरिंदों को खुली छूट दी जाएगी? कब तक जवानों को शहीद होना पड़ेगा? कब तक सेना के हाथ बांधें रखे जाएंगे? कब तक देश के स्वर्ग को राजनीति का शिकार होना पड़ेगा? कब तक देश की सरकार बयानों से कश्मीर की समस्या का हल करती रहेगी? कल तक कश्मीर को अपनी आन-बान-शान का प्रतीक बताने वाली भाजपा ने महबूबा मुफ्ती के साथ सरकार बनाकर सवा सौ करोड़ देशवासियों के साथ विश्वासघात क्यों किया? आखिर सत्ता हासिल करने के पीछे भाजापा की क्या मजबूरी थी? फिर सत्ता हासिल करके हासिल किया हुआ? हालात जस के तस हैं, बल्कि पहले से भी बद्तर...रोज हमारे जवान आतंकियों की गोली का निशाना बन रहे हैं और देश की सरकार बयानों से मरहम लगाने का काम कर रही है। धिक्कार है, ऐसे नेताओं पर...ऐसी सरकार पर। एक तरफ भाजपा गठबंधन वाली महबूबा सरकार सेना पर मुकदमें दर्ज करवा रही है, जवानों पर पत्थर फेंकने वाले लोगों से मुकदमें वापस ले रही है। हद है बेशर्मी की। दोगलेपन की।

श्यामाप्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय ने ऐसी भाजपा की कल्पना तक नहीं की होगी। क्यों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने चुप्पी साध रखी है। क्या देश में राम मंदिर बनाना ही उनका लक्ष्य है, देश का मुकुट बचाना उनका धर्म नहीं है? चार साल पहले देश में भाजपा की सरकार बनने के बाद यह उम्मीद जागी थी कि बरसों से कश्मीर में चल रहे आतंकियों के खूनी खेल पर लगाम लगेगी? अलगाववादियों पर नकेल कसी जाएगी, उनकी सुविधाएं बंद होगी, उनको उनके कृत्यों के कारण देशद्रोह के मुकदमों का सामना करना पड़ेगी, पत्थर फेंकने वालों पर राष्ट्रद्रोह का केस लगेगा। लेकिन हकीकत सबके सामने है...ऐसा कुछ नहीं हुआ...सवा सौ करोड़ देशवासियों की उम्मीदें चकनाचूर होती दिख रही हैं, क्योंकि आतंकियों के हौसले पहले से कहीं ज्यादा बुलंद हो गए हैं। उन्होंने सेना और पुलिस को टारगेट बना लिया।

हाल ही जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने जम्मू के सेना के एक कैंप को निशाना बनाया। आतंकियों ने अपने नापाक इरादों को अंजाम देने और देश की सरकार को नकारा साबित करने के लिए अटैक किया। इसमें हमारे दो जवान शहीद हो गए। इससे न हमारे नेताओं का दिल पसीज रहा, ना ही इनकी मोटी खाल पर कोई असर हो रहा। एक बार सर्जिकल स्ट्राइक करके सरकार ने समझ लिया कि कश्मीर की समस्या का समाधान हो गया। बड़े बड़े भाषणों से कुछ नहीं होता। पाकिस्तान में बैठा आतंकी हाफिज सईद भारत के खिलाफ आग उगल रहा है। पाकिस्तान की सियासत उसका साथ दे रही है। पिद्दी-सा पाकिस्तान इतने बड़े भारत को आंखें दिखा रहा है। रोज सीज फायर का उल्लंघन कर रहा है। रोज हमारे जवान शहीद हो रहे हैं। इसका दर्द क्यों नहीं हो रहा इस सरकार को?

पिछले हफ्ते 2015 में गिरफ्तार किया गया लश्कर का खूंखार आतंकी नावेद उर्फ हंजुला अस्पताल से उसके साथी दिन दहाड़े छुड़ा कर ले जाते हैं। 2017 में अमरनाथ यात्रियों की बस पर आतंकी हमला होता है। पांच यात्रियोंं की मौत और 15 घायल हो जाते हैं। महबूबा और मोदी सरकार दिखावा करके दुख व संवेदना व्यक्त करके इतिश्री कर लेती है। 2016 में कश्मीर के उड़ी कैंप आतंकियों ने हमला किया। हमारे 18 जवान शहीद। इसके बाद थोड़ी सुध ली और सर्जिकल स्ट्राइक से पाकिस्तान और आतंकियों को जवाब देने का काम किया। क्या एक बार की स्ट्राइक पाकिस्तान और आंतकियों के लिए काफी है?

देश अब जवाब मांग रहा है, आखिर रोज रोज के आतंकी हमलों से कब तक कश्मीर रोता रहेगा। कब तक भारत का स्वर्ग लहू-लुहान होता रहेगा? भाजपा क्यों नहीं कश्मीर से हाथ खींचकर वहां खुलकर आतंकियों के खात्मा करने की सेना को छूट देती? क्यों नहीं देश का तिरंगा जलाने वालों को राष्ट्रद्रोह में गिरफ्तार करती? कश्मीर को बचाने के लिए सरकार कुर्बान करनी पड़े, तो क्या हर्ज है? अब देशवासी और मौका नहीं दे सकते। देश गोली का जवाब गोली से चाहता है। देश एक शहादत के बदले 10 आतंकियों के कलम किए हुए सिर चाहता है। तभी शहीदों के परिवारों और उनके बच्चों को अहसास होगा कि देश में मजबूत सरकार है। ये वक्त बयानों और भाषणों का नहीं...बल्कि एक्शन लेने का है। कश्मीर में धारा-370 खत्म करने, समान नागरिक आचार संहिता को लागू करने के कई दशकों से किए जा रहे वादे को पूरा करने का है। वरना इतिहास कभी माफ नहीं करेगा।